प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शनिवार को जन्मदिन मनाया जा रहा है. इस दौरान पीएम मोदी ने ग्वालियर के कूनो नेशनल पार्क में पहुंचे. यहां उन्होंने नामीबिया से आए दो चीतों को छोड़ा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्यप्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में बने विशेष बाड़े में नामीबिया से हवाई मार्ग से लाए गए चीतों को छोड़ा, इसके बाद उन्होंने खुद अपने कैमरे से कुछ तस्वीरें भी क्लिक कीं.बताते चलें कि भारत में इस जानवर के विलुप्त होने के 70 सालों के बाद चीते लाए गए हैं. बोइंग के एक विशेष विमान ने कल रात को अफ्रीकी देश से उड़ान भरी थी और वह लकड़ी के बने खास तरीके बॉक्स में चीतों को लेकर करीब 10 घंटे की यात्रा के बाद भारत पहुंचा. चीतों को लाने के लिए विमान में खास इंतजाम किए गए थे. एक अधिकारी ने बताया कि विमान सुबह आठ बजे से कुछ देर पहले ही ग्वालियर हवाई अड्डे पर उतरा, इसके बाद इन्हें हेलिकॉप्टर की मदद से नेशनल पार्क तक पहुंचाया गया.
इस मौके पर उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि दशकों पहले, जैव-विविधता की सदियों पुरानी जो कड़ी टूट गई थी, विलुप्त हो गई थी,आज हमें उसे फिर से जोड़ने का मौका मिला है. आज भारत की धरती पर चीता लौट आए हैं. और मैं ये भी कहूँगा कि इन चीतों के साथ ही भारत की प्रकृतिप्रेमी चेतना भी पूरी शक्ति से जागृत हो उठी है.
क्या बोले पीएम मोदी?
चीतों को छोड़ने के बाद पीएम मोदी ने कहा, “मैं हमारे मित्र देश नामीबिया और वहाँ की सरकार का धन्यवाद करता हूं. जिनके सहयोग से दशकों बाद चीते भारत की धरती पर वापस लौटे हैं. दशकों पहले, जैव-विविधता की सदियों पुरानी जो कड़ी टूट गई थी, विलुप्त हो गई थी, आज हमें उसे फिर से जोड़ने का मौका मिला है. आज भारत की धरती पर चीता लौट आए हैं.”
प्रधानमंत्री ने कहा, “मैं ये भी कहूँगा कि इन चीतों के साथ ही भारत की प्रकृतिप्रेमी चेतना भी पूरी शक्ति से जागृत हो उठी है. ये दुर्भाग्य रहा कि हमने 1952 में चीतों को देश से विलुप्त तो घोषित कर दिया. लेकिन उनके पुनर्वास के लिए दशकों तक कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ. आज आजादी के अमृतकाल में अब देश नई ऊर्जा के साथ चीतों के पुनर्वास के लिए जुट गया है.”
उन्होंने कहा, “ये बात सही है कि जब प्रकृति और पर्यावरण का संरक्षण होता है तो हमारा भविष्य भी सुरक्षित होता है. विकास और समृद्धि के रास्ते भी खुलते हैं. कुनो नेशनल पार्क में जब चीता फिर से दौड़ेंगे, तो यहाँ का ग्रासलैंड इकोसिस्टम फिर से रिस्टोर होगा.”
दक्षिण अफ्रीका की सरकार रखेगी नजर
‘अफ्रीकन चीता इंट्रोडक्शन प्रोजेक्ट इन इंडिया’ 2009 में शुरू हुआ था. भारत ने चीतों के आयात के लिए नामीबिया सरकार के साथ समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए थे. चीतों में किसी तरह का कोई संक्रमण न हो इसके लिए गांवों के अन्य मवेशियों का भी टीकाकरण किया गया है.
चीतों के लिए 5 वर्ग किलोमीटर का एक विशेष घेरा बनाया गया है. दक्षिण अफ्रीका की सरकार और वन्यजीव विशेषज्ञ इन पर नजर रखेंगे. चीतों को भारतीय मौसम से लेकर यहां के माहौल में ढलने में एक से तीन महीने का वक्त लग सकता है.
Anonymous
September 17, 2022Nice