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मायावती ने मुस्लिमों पर खेला बड़ा दांव, बसपा को मिलेगी जीत या बिगड़ेगा सपा का खेल?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के मुस्लिम कैंडिडेट की चर्चा हो रही है, लेकिन अब तक बसपा सुप्रीमो मायावती का मुस्लिम प्रेम जमकर दिखाई दिया है. बसपा ने अब तक घोषित 225 सीटों में से 60 पर मुस्लिम प्रत्‍याशी उतारे हैं, जो कि 26 फीसदी बैठता है. वहीं, 2017 में बसपा ने 24 फीसदी मुस्लिम कैंडिडेट उतारे थे. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मायावती ने इस बार दलित-मुस्लिम समीकरण को साधने के साथ सपा को नुकसान पहुंचाने की खातिर ये बड़ा दांव खेला है. वहीं, सपा ने अब तक 45 मुस्लिमों को टिकट दिया है.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान बसपा सुप्रीमो मायावती का मुस्लिम प्रेम जमकर हिलोरें मार रहा है. इस मामले में ऐसा लग रहा है कि इस बार पिछले चुनाव के रिकॉर्ड को भी बसपा ध्वस्त कर देगी. अभी तक बसपा ने कुल 403 सीटों में से 225 सीटों पर अपने कैंडिडेट घोषित किये हैं. इनमें से 60 सीटों पर उन्होंने मुस्लिम प्रत्‍याशी उतारे हैं. यानी अभी तक कुल 26 फीसदी सीटें मुस्लिमों को दी हैं.

इससे पहले 2017 के विधानसभा चुनाव में मायावती ने कुल 403 सीटों में से 99 सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट लड़ाए थे, जो कि 24 फीसदी थे. हालांकि 99 में से महज 5 ही जीत पाये थे. यानी स्ट्राइक रेट महज पांच फीसदी रहा था. अब बड़ा सवाल ये है कि क्या इस बार के चुनाव में बसपा के मुस्लिम प्रत्‍याशी कुछ ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज कर सकेंगे. इसके साथ एक सवाल ये भी है कि कहीं अपनी जीत से ज्यादा सपा को तो नुकसान नहीं पहुंचायेंगे.

यूं बसपा ने मुस्लिमों पर खेला दांव
इसे विशेषज्ञों से समझेंगे, लेकिन उससे पहले ये जान लेते हैं कि इस चुनाव में अभी तक मायावती ने किस चरण में कितने मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं. शुरुआत करते हैं सबसे लेटेस्ट लिस्ट से. चौथे चरण की सीटों के लिए मायावती ने 60 सीटों में से 53 पर अपने कैंडिडेट उतार दिये हैं. इनमें से 16 सीटों पर मुस्लिमों को उतारा गया है. तीसरे चरण की सभी 59 सीटों में से बसपा ने 5 मुस्लिमों को उतारा है. जबकि दूसरे चरण की सभी 55 सीटों पर बसपा ने 23 मुस्लिम उतारे हैं. इसी तरह पहले चरण की 58 सीटों में से 16 पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं. यानी अभी तक घोषित कुल 225 सीटों में से बसपा ने 60 सीटों पर मुस्लिम कैंडिडेट उतारे हैं. ये आंकड़ा 26.66 फीसदी पहुंचता है. 2017 में 24 फीसदी मुस्लिम कैंडिडेट बसपा ने उतारे थे.

मायावती ने साधा दलित-मुसलमान समीकरण
बहरहाल, 2017 में बसपा के 99 मुस्लिम कैंडिडेट में से सिर्फ 5 ही जीत पाये थे. ऐसे में फिर से वही दांव चलकर मायावती क्या कोई गलती कर रही हैं या फिर उनकी कोई पुख्ता रणनीति है. वरिष्ठ पत्रकार उमर रशीद ने ऐसा करने के पीछे कई कारण गिनाए. पहला तो ये कि मायावती कभी नहीं चाहेंगी कि सपा उनसे वोट प्रतिशत के मामले में आगे निकल जाये. ज्यादातर मुस्लिम कैंडिडेट को उतारकर वो दलित-मुसलमान गठजोड़ के सहारे इस कोशिश में लगी हैं कि जीत चाहे जितनी सीटों पर मिले, लेकिन उनका वोट प्रतिशत न गिरे. साथ ही ये भी रणनीति है कि सपा को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाया जाए. मायावती को भाजपा से ज्यादा सपा से सियासी खतरा रहता है. मायावती को हमेशा डर रहता है कि उसका वोटबैंक टूटकर सपा में जा सकता है. इस बार तो अखिलेश ने उनके दलित वोटबैंक में सेंधमारी की भरपूर कोशिशें भी की हैं.

इस गणित को आंकड़े भी पुष्ट करते हैं. 2017 के चुनाव में बसपा को सपा से कम सीटें जरूर मिली थीं, लेकिन उसका वोट प्रतिशत उससे ज्यादा था. बसपा को 22.23 फीसदी और सपा को 21.82 फीसदी वोट मिले थे. विधानसभा के चुनाव में कुछ हजार वोट से जीत-हार होती है. ऐसे में मुस्लिम वोटबैंक चाहे जितना भी सपा के तरफ दिख रहा हो, लेकिन बसपा के मुस्लिम कैंडिडेट को कुछ तो वोट मिलेंगे ही. यही सपा के लिए नुकसानदायक साबित होंगे.

सपा और भाजपा पर लगाया ये आरोप
बसपा का ये स्टैंड तब है जब इस चुनाव में शुरू से ही मायावती ये कहती रही हैं कि भाजपा और सपा चुनाव को साम्प्रदायिक रंग देना चाह रही हैं. उन्होंने फिर से ट्वीट करके कहा है कि यूपी विधानसभा चुनाव में जिस प्रकार से धर्म व जाति की राजनीति हावी है और मीडिया में भी ऐसी खबरें भरी पड़ी रहती हैं उससे ऐसा लगता है कि यह सब सपा और बीजेपी की मिलीभगत के तहत ही हो रहा है और वे चुनाव को हिन्दू-मुस्लिम व जातीय नफरती रंग देना चाहती हैं. जनता सतर्क रहे.बता दें कि 28 जनवरी की शाम तक मायावती ने विधानसभा की कुल 403 सीटों में से 225 पर अपने कैंडिडेट उतारे हैं. अभी तो 178 सीटें बाकी हैं. ऐसे में संभावना यही दिख रही है कि 2017 के चुनाव से कम टिकट मुस्लिम कैंडिडेट को नहीं मिलेंगे. प्रदेश में मुस्लिम वोटर 19 फीसदी के करीब हैं. ऐसे में कोई ये आरोप नहीं लगा सकता कि बसपा ने उनकी संख्या के हिसाब से भागीदारी का ख्याल नहीं रखा.

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Pooja Pandey

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