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ट्रंप के 104 प्रतिशत शुल्क के बाद चीन ने अमेरिकी आयात पर 84 प्रतिशत शुल्क लगाया

चीन ने अपनी ताज़ा कार्रवाई में सभी अमेरिकी उत्पादों पर 84 प्रतिशत शुल्क लगा दिया है, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार। चीन के वित्त मंत्रालय ने इस कदम की घोषणा करते हुए कहा कि नए शुल्क 10 अप्रैल से प्रभावी होंगे।

चीन ने अपनी ताज़ा व्यापारिक नीति के तहत सभी अमेरिकी उत्पादों पर 84 प्रतिशत का शुल्क लगाने का निर्णय लिया है। इस कदम के बाद दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव और बढ़ने की संभावना जताई जा रही है। चीन के वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को इस नए शुल्क के बारे में घोषणा की और कहा कि यह शुल्क 10 अप्रैल से प्रभावी होगा। इस कदम के बाद, दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में और तनाव पैदा हो सकता है, जो पहले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए 104 प्रतिशत शुल्क की वजह से प्रभावित थे।

चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक युद्ध
चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक युद्ध पिछले कुछ वर्षों से चल रहा है। यह युद्ध 2018 में उस समय शुरू हुआ जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर ट्रेड डिफिसिट और बौद्धिक संपदा की चोरी का आरोप लगाते हुए कड़े शुल्क लगाए थे। इसके जवाब में, चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिए थे। तब से दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में तनाव बढ़ गया और यह वैश्विक व्यापार व्यवस्था को भी प्रभावित करने लगा।

वर्तमान में, दोनों देशों के बीच लगभग 600 बिलियन डॉलर का व्यापार होता है। चीन पर आरोप है कि वह अपनी व्यापारिक नीतियों के जरिए विदेशी कंपनियों से तकनीकी जानकारी और बौद्धिक संपदा की चोरी करता है, जबकि चीन का कहना है कि अमेरिकी कंपनियां अपनी नीतियों के तहत चीन में अपने व्यापार को सही ढंग से संचालित नहीं कर रही हैं। इन दोनों देशों के बीच व्यापारिक विवादों का नतीजा यह निकला कि दोनों ने एक-दूसरे के उत्पादों पर भारी शुल्क लगा दिए हैं, जिससे वैश्विक व्यापार में भी अस्थिरता आई है।

84 प्रतिशत शुल्क का प्रभाव
चीन ने अब अमेरिकी उत्पादों पर 84 प्रतिशत का शुल्क लगाने का निर्णय लिया है, जो कि एक बड़ा कदम है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे अमेरिका के कई प्रमुख उत्पादों की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे अमेरिकी कंपनियों को चीन में अपनी बिक्री में गिरावट का सामना करना पड़ सकता है। इससे चीन में अमेरिकी उत्पादों की मांग में कमी हो सकती है और अमेरिकी कंपनियों को अपने व्यवसाय में नुकसान हो सकता है।

इस निर्णय से अमेरिकी कृषि उत्पादों जैसे सोया बीन, मक्का, और सूअर के मांस पर भी प्रभाव पड़ेगा, जो पहले से ही चीन के उच्च शुल्कों के कारण प्रभावित हो चुके हैं। चीन ने पहले ही अमेरिका से इन कृषि उत्पादों का आयात कम कर दिया था, और अब 84 प्रतिशत शुल्क से इन उत्पादों की कीमतों में और वृद्धि हो सकती है।

चीन की सरकार का कहना है कि यह कदम अमेरिकी नीतियों के खिलाफ एक प्रतिक्रिया है और यह व्यापारिक युद्ध को और बढ़ावा दे सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, चीन का यह कदम अमेरिका के व्यापारिक दबाव का जवाब है, जो उसे अपने उत्पादों पर भारी शुल्क लगाने के लिए मजबूर कर रहा है।

चीन का व्यापारिक दृष्टिकोण
चीन ने पहले भी कई बार यह कहा था कि वह किसी भी परिस्थिति में अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करेगा। चीन का यह कदम उसी नीति का हिस्सा है, जिसमें वह अपने आर्थिक और व्यापारिक हितों को बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाता है। चीनी सरकार का मानना है कि यह शुल्क उसके देश की उद्योगों और कंपनियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यक है।

चीन ने यह भी कहा कि वह हमेशा अपने व्यापारिक रिश्तों को सुधारने के लिए तैयार है, लेकिन यह सुधार किसी एक पक्ष के हितों के आधार पर नहीं हो सकता। चीनी अधिकारियों का मानना है कि दोनों देशों के बीच एक समान और निष्पक्ष व्यापारिक संबंध होना चाहिए, जिसमें दोनों पक्षों को बराबरी का अवसर मिले।

अमेरिका की प्रतिक्रिया
अमेरिका ने पहले ही चीन के इस कदम पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि चीन का यह कदम व्यापारिक समझौतों की अवहेलना है और इससे दोनों देशों के बीच किसी तरह की शांति की उम्मीद कम हो सकती है। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (USTR) रॉबर्ट लाइटहाइजर ने कहा कि चीन के इस कदम से दोनों देशों के बीच बातचीत और समझौता करने के प्रयासों को भी धक्का लग सकता है।

अमेरिका ने यह भी कहा कि वह इस निर्णय के खिलाफ वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (WTO) में जा सकता है। हालांकि, यह देखा जाएगा कि क्या चीन अपनी नीतियों में कोई बदलाव लाता है या फिर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता ही जाएगा।

वैश्विक व्यापार पर प्रभाव
चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव का असर न केवल इन दोनों देशों पर पड़ता है, बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। दोनों देशों के बीच व्यापारिक युद्ध के कारण वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में अस्थिरता उत्पन्न होती है, और इससे अन्य देशों की कंपनियों पर भी प्रभाव पड़ता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह व्यापारिक युद्ध और बढ़ता है तो इससे वैश्विक विकास दर में कमी आ सकती है। चीन और अमेरिका दोनों ही वैश्विक अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े हिस्सेदार हैं, और इन दोनों देशों के बीच व्यापारिक विवाद का असर दुनिया भर की व्यापारिक और वित्तीय स्थिरता पर पड़ सकता है।

भविष्य की दिशा
चीन का यह कदम यह संकेत देता है कि वह अमेरिकी दबाव को स्वीकार नहीं करेगा और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाएगा। हालांकि, यह भी देखा जाएगा कि क्या दोनों देशों के बीच बातचीत का कोई नया मार्ग निकलता है। अमेरिकी प्रशासन ने कई बार यह संकेत दिया है कि वह चीन के साथ व्यापारिक समझौता करने के लिए तैयार है, लेकिन इसके लिए चीन को अपनी नीतियों में बदलाव करना होगा।

यह संभव है कि भविष्य में दोनों देशों के बीच व्यापारिक समझौते की दिशा में कुछ सकारात्मक कदम उठाए जाएं, लेकिन फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि क्या दोनों पक्ष इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाएंगे।

निष्कर्ष
चीन द्वारा अमेरिकी उत्पादों पर 84 प्रतिशत शुल्क लगाने का निर्णय दोनों देशों के बीच बढ़ते व्यापारिक तनाव को और जटिल बना सकता है। यह कदम न केवल चीन और अमेरिका के लिए, बल्कि वैश्विक व्यापार के लिए भी एक बड़ा संकेत है। यह दिखाता है कि व्यापारिक युद्ध केवल दो देशों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि इसका असर दुनिया भर में महसूस किया जाता है। हालांकि, भविष्य में दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लिए कुछ प्रयास किए जा सकते हैं, लेकिन फिलहाल यह स्थिति और अधिक जटिल हो सकती है।

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Harshita Ahuja

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