महात्मा गांधी ने जवाहर लाल नेहरू को 30 अप्रैल को रायबरेली भेजा, जहां उन्हें नमक सत्याग्रह को लेकर तैयारियों का जायजा लेना था. जवाहर लाल नेहरू तैयारियों से संतुष्ट थे और तय हुआ कि 8 अप्रैल को नमक बनाने की शुरुआत होगी.

देश की आजादी में रायबरेली के लोगों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है. आजादी के लिए विद्रोह की प्रबल भावना के कारण महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह के शुभारंभ की कमान भी रायबरेली को ही सौंपी थी. इस सत्याग्रह में केवल आमजन ही नहीं, बल्कि ब्रिटिश सरकार में काम करने वाले भारतीय और उनके परिजन भी सक्रिय रहे हैं. इसकी भी एक रोचक कहानी है.
दरअसल महात्मा गांधी ने जवाहर लाल नेहरू को 30 अप्रैल को रायबरेली भेजा, जहां उन्हें नमक सत्याग्रह को लेकर तैयारियों का जायजा लेना था. जवाहर लाल नेहरू तैयारियों से संतुष्ट थे और तय हुआ कि 8 अप्रैल को नमक बनाने की शुरुआत होगी. इसके लिए दो स्थानों का चयन किया गया, एक डलमऊ और दूसरा तिलक भवन. नमक सत्याग्रह को लेकर लोगों का जोश और उत्साह चरम पर था. उधर ब्रिटिश पुलिस भी नेताओं और कार्यकर्ताओं पर नज़र रख रही थी. लोगों को उनके घरों से उठाकर नजर बन्द किया गया था, हर तरफ खौफ का माहौल बना हुआ था.
ब्रिटिश अधिकारी के बेटे ने 51 रुपये में खरीदा था ‘नमक’
पूरे संयुक्त प्रांत में नमक बनाने की शुरुआत रायबरेली के तिलक भवन से हुई. पुलिस के कड़े पहरे और बड़े नेताओं की तिलक भवन में आवाजाही थी. वहां पर पंडित मोतीलाल नेहरू, कमला नेहरू, विजय लक्ष्मी पंडित, इंदिरा गांधी जैसे बड़े नेता पहले ही पहुंच गए थे. हालांकि अधिकारियों को भ्रमित किया जा रहा था, क्योंकि पुलिस अधिकारी किसी भी कीमत पर इस सत्याग्रह की शुरुआत होने नहीं देना चाह रहे थे. कड़े बंदोबस्त के बावजूद कार्यकर्ताओं के हूजूम के बीच ‘नामक’ बनाया गया और 10 ग्राम नमक की प्रतीक स्वरूप बोली भी लगाई गई. दिलचस्प बात यह है कि सबसे ज्यादा बोली मेहर चंद खत्री ने लगाई और उन्होंने 51 रुपये में 10 ग्राम नमक खरीदा.
ब्रिटिश अधिकारी थे लक्ष्मीनारायण
खत्री के पिता लक्ष्मीनारायण ब्रिटिश अधिकारी थे और रायबरेली के तत्कालीन उपायुक्त के मुख्य रीडर के पद पर थे. जैसे ही इसकी सूचना अधिकारियों को मिली हड़कंप मच गया और मेहर चंद की खोज शुरू हो गई. बाद में नमक खरीदने को लेकर लक्ष्मीनारायण पर कार्रवाई भी की गई थी. बावजूद इसके यह घटना इतिहास में दर्ज हो गई और रायबरेली से नमक सत्याग्रह के सफल शुभारंभ के बाद पूरे देश मे नमक बनाने की होड़ लग गई, जिसने आजादी के संघर्ष में एक अमिट छाप छोड़ी.