लाला लाजपत राय जयंती: 28 जनवरी 1865 को पंजाब के मोगा जिले में जन्मे लाला लाजपत राय एक सफल राजनेता, वकील और लेखक थे. इनके पिता मुंशी राधाकृष्ण आजाद उर्दू के अध्यापक थे. जिन पर इस्लाम के सूफी मत का गहरा प्रभाव था.

लाला लाजपत राय जयंती: 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर की एक आम सभा में लाला लाजपत राय द्वारा कहे इस वाक्य की चर्चा के बिना हिंदुस्तान के आजादी की कोई भी कहानी पूरी नहीं होगी.
‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश हुकूमत के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी” राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रदूत लाला लाजपत राय की अद्वितीय भूमिका हमेशा अविस्मरणीय रहेगी.
‘शेर-ए-पंजाब ‘, ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन को हमारी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ,राजनीतिक चेतना,सांस्कृतिक गौरव और आर्थिक पहलू के साथ जोड़कर इस मुहिम को राष्ट्रव्यापी बना दिया. बिना लाजपत राय के नाम के स्वतंत्रता मुक्ति संग्राम का जिक्र कभी पूरा नहीं होगा, उन्होंने अपनी विचारधारा से एक पूरी पीढ़ी को प्रेरित किया.
इस पीढ़ी में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद ,सुखदेव,राजगुरु, और उधम सिंह जैसे अनेक राष्ट्रनायक हुए, जिन्होंने आजाद भारत के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की. लाला लाजपत राय लाल बाल पाल तिकड़ी के अहम कड़ी थे.
इस तिकड़ी ने कांग्रेस के गरम दल का नेतृत्व कर,भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई ऊर्जा से भर दिया. बढ़ते मतभेदों के कारण 1907 के सूरत महाअधिवेशन में कांग्रेस ’नरमदल’ व गरमदल’ में विभक्त हो गई, कांग्रेस के इस राष्ट्रीय अधिवेशन की अध्यक्षता रासबिहारी बोस कर रहे थे. दो गुटों में बंटी कांग्रेस के नरम दल का नेतृत्व मोतीलाल नेहरू कर रहे थे, जिसमें गोपाल कृष्ण गोखले और दादा भाई नौरोजी आदि शामिल थे.
जबकि गरम दल का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक कर रहे थे, जिसमें अरविंद घोष ,सुरेंद्रनाथ बनर्जी,लाला लाजपत राय और बिपिन चंद्र पाल जैसे क्रांतिकारी नेता शामिल थे. जिसमें 1905ई. में बंगाल विभाजन को लेकर काफी गहरे मतभेद थे. नरम दल ब्रिटिश हुकूमत के साथ समन्वय बनाकर भारत में राजकाज चलाना चाहता था, जबकि गरम दल पूरी तरह अंग्रेज शासन के खिलाफ था. इस विभाजन के परिणामस्वरूप स्वदेशी आंदोलन की शुरूआत हुई,जिसमें विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया. गरम दल के नेता स्वदेशी आंदोलन को पूरे देश में लागू करना चाहते थे,जबकि नरमदल के नेता सिर्फ इसे बंगाल तक सीमित रखना चाहते थे. कांग्रेस के दोनों घटकों में कई मुद्दों पर असहमति थी. साथ ही राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ और राष्ट्रगान ‘जन गण मण’ पर भी कांग्रेस में एकमत नहीं था. वक्त के साथ यह असहमति बढ़ती ही गई, पर स्वतंत्रता आंदोलन की धार कभी कमी नहीं आई.
प्रारंभिक जीवन
28 जनवरी 1865 को पंजाब के मोगा जिले में जन्मे लाला लाजपत राय एक सफल राजनेता, वकील और लेखक थे. इनके पिता मुंशी राधाकृष्ण आजाद उर्दू के अध्यापक थे. जिन पर इस्लाम के सूफी मत का गहरा प्रभाव था. पर इनसे इतर लाला लाजपत राय पर माता गुलाब देवी का धार्मिक प्रभाव ज्यादा था. बचपन से ही बहुमुखी प्रतिभा के धनी लालाजी ,प्रारंभिक शिक्षा के उपरांत वकालत की डिग्री ली और 1892 में लाहौर चले गए. यही पर आधुनिक हिंदू धर्म के सुधारवादी संप्रदाय आर्य समाज के संस्थापक रहे स्वामी दयानंद सरस्वती के साथ जुड़कर आर्य समाज के प्रचार प्रसार में विशेष भूमिका निभाई.
राजनीतिक जीवन
एक समय बाद लाला लाजपत राय वकालत छोड़ कर पूरी तरह स्वाधीनता आंदोलन में जुट गए । दुनिया के सामने भारत में ब्रिटिश शासन द्वारा किए जा रहे अत्याचारों को दिखाने और बताने के लिए वह 1913 में जापान,1914 में ब्रिटेन, 1917 में यूएस गए। 1917 से 1920 तक वह अमेरिका में रहे। इसी दौरान उन्होंने न्यूयॉर्क में इंडियन होमरूल लीग की स्थापना की। यहीं से भारत के लिए यंग इंडिया पत्रिका का संपादन भी किया। वहां से लौटने के बाद जालियांवाला बाग हत्याकांड के खिलाफ ब्रिटिश शासन के विरोध में आंदोलन शुरू किया, साथ ही 1920 में गांधीजी द्वारा रालेट एक्ट के खिलाफ चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन का भी पंजाब में नेतृत्व किया। उन्होंने कांग्रेस के विशेष सत्र की अध्यक्षता भी की. इसके बाद संविधान सभा के सदस्य भी चुने गए.
लाला लाजपत राय की मृत्य
संवैधानिक सुधारों के तहत 3 फरवरी 1928 को साइमन कमीशन भारत पहुंचा तो, इस कमीशन में एक भी भारतीय प्रतिनिधि नहीं देखकर भारतीयों का गुस्सा भड़क गया. साइमन वापस जाओ के नारों से पूरा देश गूंज उठा और पूरे देश में उसका विरोध होने लगा. 30 अक्टूबर, 1928 को साइमन कमीशन जब लाहौर पहुँचा, तो जनता के आक्रोश के मद्देनजर यहां धारा 144 लगा दी गई. साइमन कमीशन पर अस्वीकृति जताने के लिए लालाजी के साथ-साथ कई क्रांतिकारियों ने लाहौर रेलवे स्टेशन पर ही उन्हें काले झंडे दिखाए. इसी दिन लाला लाजपत राय साइमन कमीशन के असम्मति में शांतिपूर्ण रैली का नेतृत्व कर रहे हैं थे,पुलिस अधीक्षक जेम्स एस्कॉर्ट ने जुलूस को रोकने के लिए लाठीचार्ज का आदेश दिया. पुलिस ने लाला लाजपत राय को मुख्य निशाना उन पर लाठी बरसायी. जिससे वह बुरी तरह जख्मी हो गए और 17 नवंबर 1928 को उनका निधन हो गया. इनकी मृत्यु ने पूरे देश को झकझोर दिया.
इनकी मौत के ठीक एक महीने बाद 17 दिसंबर 1928 को गलत पहचान की वजह से ब्रिटिश पुलिस के जूनियर अफसर जेपी सांडर्स की गोली मारकर हत्या कर दी गई. इसी मामले में सुखदेव,राजगुरु और भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई थी.
लाला लाजपत राय द्वारा लिखित पुस्तकें
कैथरीन मेयो नाम की एक विदेशी महिला पत्रकार ने भारतीय संस्कृति और जनजीवन को गलत संदर्भों में दर्शाते हुए, मदर इंडिया नाम की एक पुस्तक लिखी. जिसके जवाब में लाला लाजपत राय ने अनहैप्पी इंडिया नामक पुस्तक लिखकर उनके द्वारा किए गए दावों को तर्कसंगत बातों से खारिज कर दिया. इसके अलावे आर्य समाज, यंग इंडिया ,इंग्लैंड टू इंडिया, इवोल्यूशन जापान, इंडिया विल टू फ्रीडम, मैसेज ऑफ़ भगवत गीता ,पॉलिटिकल फ्यूचर ऑफ इंडिया,डिप्रेस्ड क्लासेस जैसी पुस्तकों की रचना की। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उनका योगदान अतुलनीय हैं, उनके द्वारा संपादित उर्दू दैनिक “वंदे मातरम” और अंग्रेजी पत्र “द पीपुल”है। इसके अलावा पंजाबी पत्र का संपादन भी किया.
लाला लाजपत राय की देश के लिए किए गए योगदानों की एक लंबी फेहरिस्त हैं, पर वर्तमान में जो पंजाब नेशनल बैंक हैं. इसकी स्थापना लाला लाजपत राय ने ही की थी.