इस वर्किंग पेपर में बेसल मानक अपनाए जाने के बाद से बैकिंग शेयरों के प्रति बाजार की प्रतिक्रिया का आकलन किया गया है.

भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से बेसल मानकों को लागू किए जाने पर बैंकिंग शेयरों का प्रदर्शन काफी हद तक सकारात्मक रहा है. आरबीआई वर्किंग पेपर के मुताबिक अक्टूबर 1998 में बेसल मानक लागू किए जाने के बाद से घरेलू बैंकों के शेयरों की स्थिति काफी हद तक सकारात्मक रही है. अक्टूबर 1998 से लेकर मार्च 2016 के बीच आरबीआई ने बैंकों के लिए बेसल मानकों को छह चरणों में लागू किया था. इस वर्किंग पेपर के मुताबिक, बेसल मानकों के सिर्फ दो चरणों में ही घरेलू बैंकों के शेयरों में गिरावट दर्ज की गई थी. इस वर्किंग पेपर में व्यक्त विचार एक्सपर्ट्स के हैं और यह आरबीआई के आधिकारिक रुख को व्यक्त नहीं करता है.
RBI के सहायक महाप्रबंधक गौरव सेठ, परियोजना वैज्ञानिक सुप्रिया कट्टी और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर के प्रोफेसर बी वी फणी के योगदान से तैयार इस वर्किंग पेपर में बेसल मानक अपनाए जाने के बाद से बैकिंग शेयरों के प्रति बाजार की प्रतिक्रिया का आकलन किया गया है.
इस अध्ययन में यह पाया गया कि बेसल-1 मानक लागू किए जाने के समय बैंक बाजार से पूंजी जुटाने के लिए अच्छी तरह तैयार नहीं थे. लेकिन उसके बाद के चरणों में बेसल मानकों का बाजार का अनुकूल रुख देखने को मिला. तीसरे चरण का मानक 30 दिसंबर 2011 को लागू करने के पहले बाजार ने नकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी लेकिन बाद में बैंकिंग शेयरों का मूल्यांकन 2.03 फीसदी बढ़ गया था.
हर चरण को बाजार का मिला साथ
चौथे चरण के बेसल मानक 2 मई 2012 को लागू किए गए थे और सभी 34 बैंकिंग शेयरों ने कुल 5.82 फीसदी की बढ़त हासिल की थी. इस वर्किंग पेपर के मुताबिक, 27 मार्च 2014 को लागू पांचवे चरण के मानकों का भी बाजार ने सकारात्मक स्वागत किया था. इसी तरह मार्च 2016 में लागू हुए छठवें चरण के मानकों को भी बाजार का साथ मिला था. तीसरे, चौथे, पांचवें और छठे चरण के दौरान, बेसल III मानदंड लागू किए गए थे.
बैंकों की निगरानी पर बेसल कमिटी समझौतों का एक सेट जो कैपिटल रिस्क, मार्केट रिस्क और ऑपरेशनल रिस्क के संदर्भ में बैंकिंग रेग्युलेटर्स पर सिफारिशें देती हैं. मानदंडों के मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वित्तीय संस्थाएं अपनी लायबिलिटी व अप्रत्याशित घाटों की पूर्ति के लिए पर्याप्त पूंजी अपने पास सुरक्षित रखें.