ट्रंप ने कहा कि चीन पर अभूतपूर्व 145 प्रतिशत शुल्क लगाने के बाद भी बातचीत जारी है। यह कदम बीजिंग द्वारा 2 अप्रैल को घोषित की गई वैश्विक स्तर पर व्यापक टैक्स नीति के जवाब में उठाया गया था, जिसे ट्रंप ने “लिबरेशन डे” टैरिफ का नाम दिया था।

अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध एक बार फिर तेज हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीनी सामानों पर 245 प्रतिशत तक की रिकॉर्ड आयात शुल्क लगाने की घोषणा कर दी है, जिसे अब तक का सबसे बड़ा टैरिफ कदम माना जा रहा है। इसके बावजूद ट्रंप ने विश्वास जताया है कि अमेरिका और चीन के बीच “बहुत अच्छा” व्यापार समझौता जल्द होगा। उन्होंने कहा कि बातचीत जारी है और परिणाम सकारात्मक हो सकते हैं।
क्या है ‘लिबरेशन डे’ टैरिफ?
2 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति ट्रंप ने एक व्यापक वैश्विक टैरिफ नीति की घोषणा की थी, जिसे उन्होंने “लिबरेशन डे” टैरिफ करार दिया। इस नीति के तहत अमेरिका ने कई देशों से आयात होने वाले प्रमुख उत्पादों पर भारी शुल्क लगाए। चीन द्वारा इस कदम के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करते हुए अमेरिकी उत्पादों पर बदले में टैरिफ लगाए जाने के बाद, ट्रंप प्रशासन ने पलटवार करते हुए 145% से बढ़ाकर 245% तक टैरिफ कर दिया।
ट्रंप ने कहा:
“हम चीन के साथ बहुत अच्छा समझौता करने जा रहे हैं। भले ही हमने टैरिफ बढ़ाए हैं, बातचीत बंद नहीं हुई है। चीन जानता है कि अमेरिका अब कमजोर नहीं है।”
चीन की प्रतिक्रिया
चीन ने अमेरिका के इस कदम की तीव्र निंदा की है। बीजिंग ने कहा कि यह ‘एकतरफा आर्थिक आक्रमण’ है और इससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को खतरा है। चीनी विदेश मंत्रालय ने अमेरिका पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाया।
चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा:
“अमेरिका के टैरिफ निर्णय से न केवल चीन, बल्कि पूरे वैश्विक व्यापार को नुकसान होगा। हम अपने हितों की रक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे।”
अमेरिकी व्यापारियों और उपभोक्ताओं पर प्रभाव
विशेषज्ञों का कहना है कि इतने उच्च टैरिफ का असर अमेरिकी उपभोक्ताओं पर पड़ सकता है। इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े, खिलौने, घरेलू उपकरण जैसे कई क्षेत्र चीन पर निर्भर हैं। आयात महंगा होने से खुदरा कीमतें बढ़ सकती हैं।
न्यू यॉर्क स्थित इकनॉमिक पॉलिसी सेंटर के प्रमुख जेरेमी हार्टमैन ने कहा:
“इतनी ऊँची दरों से उपभोक्ताओं को दैनिक जीवन में झटका लगेगा। छोटे व्यवसायों के लिए यह नीति नुकसानदेह साबित हो सकती है।”
ट्रंप की रणनीति क्या है?
विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप इस नीति के ज़रिए चीन को घुटनों पर लाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका उद्देश्य चीन को व्यापार नियमों में पारदर्शिता और अमेरिका के हितों की रक्षा के लिए मजबूर करना है। ट्रंप का यह भी कहना है कि चीन वर्षों से अमेरिका का व्यापारिक शोषण करता रहा है और अब समय आ गया है कि अमेरिका इसका जवाब दे।
ट्रंप ने एक रैली में कहा:
“हमारे कारखानों को बंद कर चीन में शिफ्ट किया गया। अब वो दिन गए। हम अपनी ताकत वापस लाएंगे।”
अमेरिका की घरेलू राजनीति पर असर
2024 के राष्ट्रपति चुनावों के बाद ट्रंप के फिर से सत्ता में आने के बाद यह उनकी सबसे प्रमुख आर्थिक नीति बन कर उभरी है। इससे उनके समर्थकों में जोश है, खासकर उन औद्योगिक क्षेत्रों में जहां चीन से आयात ने नौकरियों को प्रभावित किया था। लेकिन आलोचक इसे अल्पकालिक राष्ट्रवाद बताते हैं।
डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता एलिजाबेथ वॉरेन ने कहा:
“यह नीति अमेरिका को विश्व मंच से अलग-थलग कर सकती है और मध्यम वर्ग की कमर तोड़ सकती है।”
वैश्विक बाजार की प्रतिक्रिया
अमेरिका के इस फैसले का असर दुनिया भर के शेयर बाजारों पर पड़ा है। टोक्यो, लंदन, शंघाई और मुंबई जैसे प्रमुख बाजारों में गिरावट दर्ज की गई। अमेरिकी डॉव जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज में भी 600 अंकों की गिरावट आई।
भारतीय बाजार पर भी असर पड़ा है। सेंसेक्स में 500 अंकों की गिरावट और रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ। निवेशकों में अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है।
भारत का रुख
भारत ने इस मामले में संतुलित रुख अपनाया है। वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि भारत को फिलहाल चिंता नहीं है, लेकिन वैश्विक मंदी के संकेतों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा:
“भारत अमेरिका और चीन दोनों के साथ व्यापारिक संबंध बनाए रखना चाहता है। हम सावधानी से स्थिति पर नज़र रख रहे हैं।”
आगे की राह
विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर अमेरिका और चीन के बीच यह टकराव यूं ही जारी रहा, तो यह वैश्विक अर्थव्यवस्था को मंदी की ओर धकेल सकता है। IMF और WTO ने भी चेतावनी दी है कि व्यापार युद्ध से वैश्विक GDP में 1 से 1.5 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है।
लेकिन यदि ट्रंप और शी जिनपिंग की सरकारें बातचीत से रास्ता निकालने में सफल हो जाती हैं, तो यह बाजार और निवेशकों के लिए राहत की बात होगी।
निष्कर्ष
245 प्रतिशत टैरिफ का यह फैसला केवल आर्थिक नीति नहीं, बल्कि एक वैश्विक राजनीतिक संदेश है। अमेरिका यह दिखाना चाहता है कि वह अब व्यापार में अपने हितों के साथ कोई समझौता नहीं करेगा। ट्रंप के इस कदम से अमेरिका में समर्थकों की संख्या बढ़ सकती है, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभाव उपभोक्ताओं, व्यापारियों और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाल सकते हैं। अब यह देखना होगा कि यह व्यापार युद्ध बातचीत से सुलझता है या और विकराल रूप लेता है।