संयुक्त राज्य अमेरिका से सफल प्रत्यर्पण के बाद, राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने तहव्वुर राणा को गुरुवार शाम इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुँचने के तुरंत बाद औपचारिक रूप से गिरफ्तार किया और उन्हें पटियाला हाउस स्थित एनआईए विशेष अदालत में पेश किया।

नई दिल्ली, 11 अप्रैल 2025 — भारत को 26/11 मुंबई आतंकी हमलों के एक अहम आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा की आखिरकार प्रत्यर्पण के ज़रिए अमेरिका से सौगात मिल गई है। अमेरिकी मार्शल्स द्वारा राणा को भारतीय अधिकारियों को सौंपे जाने के बाद देश की सुरक्षा एजेंसियों को अब इस मामले की गहराई से पड़ताल करने का अवसर मिलेगा। यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक और सुरक्षा संबंधी सफलता मानी जा रही है।
तहव्वुर राणा: कौन है यह व्यक्ति?
तहव्वुर हुसैन राणा पाकिस्तान में जन्मा एक पूर्व सैन्य चिकित्सक है, जिसने बाद में कनाडा की नागरिकता ली और अमेरिका जाकर ‘फर्स्ट वर्ल्ड इमिग्रेशन सर्विसेज’ नाम से एक इमिग्रेशन फर्म स्थापित की। वह शिकागो में रहता था और अपने पुराने स्कूल के दोस्त डेविड कोलमैन हेडली के संपर्क में आया, जोकि लश्कर-ए-तैयबा के लिए काम कर रहा था।
हेडली ने मुंबई पर हमला करने से पहले कई बार भारत का दौरा किया और होटल ताज, ओबेरॉय ट्राइडेंट, नरीमन हाउस जैसी जगहों की रेकी की। इन यात्राओं में राणा की फर्म का इस्तेमाल किया गया था।
26/11 हमला और राणा की भूमिका
26 नवंबर 2008 को हुए मुंबई हमलों ने पूरी दुनिया को हिला दिया था। पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों ने समुद्री रास्ते से मुंबई पहुंचकर तीन दिन तक शहर को बंधक बनाए रखा, जिसमें 166 लोग मारे गए और 300 से ज्यादा घायल हुए।
इस हमले की साजिश रचने में राणा की भूमिका तब उजागर हुई जब हेडली ने अमेरिकी अदालत में राणा के खिलाफ बयान दिए। हेडली ने कहा था कि राणा को मुंबई मिशन के बारे में जानकारी थी और उसने लश्कर-ए-तैयबा की योजना को समर्थन दिया था। हालांकि अमेरिकी अदालत ने राणा को सीधे तौर पर हमले की साजिश में दोषी नहीं ठहराया लेकिन उसे आतंकी साजिश में भागीदारी के अन्य मामलों में 14 साल की सजा सुनाई गई।
प्रत्यर्पण की प्रक्रिया: भारत की लंबी लड़ाई
भारत सरकार ने 2011 में ही राणा के प्रत्यर्पण के लिए औपचारिक अनुरोध किया था। लेकिन अमेरिकी न्याय प्रणाली में लंबी कानूनी प्रक्रिया और राणा की ओर से प्रत्यर्पण के खिलाफ दायर याचिकाओं ने इस मामले को लंबे समय तक अटका कर रखा।
जनवरी 2025 में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने भारत की अपील को मानते हुए राणा के प्रत्यर्पण को मंजूरी दी। इसके बाद अमेरिकी मार्शल्स द्वारा उसे भारत को सौंप दिया गया। दिल्ली एयरपोर्ट पर उसे NIA और अन्य सुरक्षा एजेंसियों की मौजूदगी में लिया गया और तुरंत ही सुरक्षा घेरे में दिल्ली के एक विशेष केंद्र पर लाया गया।
भारत में अगला कदम
राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा राणा को हिरासत में लेकर उससे पूछताछ शुरू कर दी गई है। एजेंसी के सूत्रों का मानना है कि राणा से पूछताछ के दौरान कई नए खुलासे हो सकते हैं, जोकि 26/11 की गहरी साजिश और लश्कर-ए-तैयबा के नेटवर्क को उजागर कर सकते हैं।
NIA जल्द ही राणा के खिलाफ एक विस्तृत चार्जशीट दाखिल करने की तैयारी में है। इसमें उसकी भूमिका, हेडली से संपर्क, पाकिस्तान के खुफिया एजेंसियों से संभावित जुड़ाव और अन्य आतंकी साजिशों के बारे में विस्तृत जानकारी शामिल होगी।
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और अंतरराष्ट्रीय संदेश
राणा के भारत प्रत्यर्पण को लेकर राजनीतिक गलियारों में भी हलचल रही। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इसे एक “ऐतिहासिक न्याय” बताया और कहा कि यह 26/11 के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि है। कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि UPA सरकार के समय से ही इस प्रत्यर्पण की कोशिशें शुरू हुई थीं और यह न्याय की दिशा में एक समर्पित प्रयास का नतीजा है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस कदम को आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक सहयोग का प्रतीक माना जा रहा है। अमेरिका द्वारा इस प्रत्यर्पण को मंजूरी देना दोनों देशों के बीच मजबूत सुरक्षा साझेदारी को दर्शाता है।
पीड़ितों के परिवारों की प्रतिक्रिया
मुंबई हमलों में अपने प्रियजनों को खोने वाले परिवारों ने राणा के प्रत्यर्पण का स्वागत किया है। कई पीड़ितों ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि यह एक “देर से मिली लेकिन जरूरी न्याय” की दिशा में कदम है। उनके मुताबिक, यह जरूरी है कि सिर्फ जमीन पर हमला करने वाले नहीं, बल्कि उसके पीछे की साजिश रचने वाले भी कानून के शिकंजे में आएं।
क्या उम्मीद की जा सकती है आगे?
विशेषज्ञों का मानना है कि तहव्वुर राणा की गिरफ्तारी और प्रत्यर्पण भारत की आतंकरोधी रणनीति में एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है। इससे न केवल लश्कर-ए-तैयबा के नेटवर्क का विश्लेषण करने का मौका मिलेगा बल्कि यह भी तय किया जा सकेगा कि भारत की सुरक्षा एजेंसियां किस तरह से विदेशी संदिग्धों को न्याय के कटघरे में ला सकती हैं।
राणा से मिलने वाली जानकारी का उपयोग भारत पाकिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी कर सकता है, ताकि यह सिद्ध किया जा सके कि आतंकवादी गतिविधियों में राज्य प्रायोजित समर्थन किस तरह से दिया जा रहा है।
निष्कर्ष
तहव्वुर राणा का भारत प्रत्यर्पण सिर्फ एक आरोपी की गिरफ्तारी नहीं है, यह भारत की दृढ़ इच्छाशक्ति, कूटनीतिक कौशल और न्याय व्यवस्था पर विश्वास का प्रतीक है। अब जब राणा भारत की न्यायिक प्रक्रिया में शामिल हो चुका है, देश उम्मीद करता है कि 26/11 जैसे कृत्यों के पीछे जो भी चेहरे हैं, उन्हें न्याय के कठघरे में लाया जाएगा और भविष्य में ऐसे किसी भी हमले को रोकने की दिशा में यह कदम एक मजबूत मिसाल पेश करेगा।