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सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम निर्णय: ‘मियां-तियां’ और ‘पाकिस्तानी’ कहने पर धार्मिक भावनाओं का उल्लंघन नहीं!

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “बेशक, दिए गए बयान खराब स्वाद में हैं। हालांकि, यह शिकायतकर्ता की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के बराबर नहीं है। इसलिए, हमारा यह मानना है कि अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 298 के तहत भी बरी किया जाना चाहिए।”

हाल ही में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें उसने यह स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति को ‘मियां-तियां’ या ‘पाकिस्तानी’ जैसे शब्दों से संबोधित करना अपराध की श्रेणी में नहीं आता है। हालांकि, न्यायालय ने यह भी कहा कि इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग सामाजिक दृष्टिकोण से अनुचित और अपमानजनक हो सकता है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन व्यक्तियों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं करने का निर्णय लिया, जो इस प्रकार के शब्दों का उपयोग करते हैं, लेकिन समाज में इसके नकारात्मक प्रभावों को रेखांकित किया।

मामला क्या था?
यह मामला उस वक्त सुर्खियों में आया जब एक व्यक्ति ने अपने खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए एक अन्य व्यक्ति के खिलाफ अदालत का रुख किया था। अभियुक्त ने कथित रूप से उसे ‘मियां-तियां’ और ‘पाकिस्तानी’ कहकर अपमानित किया था। इससे पीड़ित ने तर्क किया था कि यह उसकी जातीयता और देशभक्ति पर सीधा हमला है, जो उसके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। उसने यह भी कहा कि इस तरह की टिप्पणियाँ न केवल उसे व्यक्तिगत रूप से अपमानित करती हैं, बल्कि समाज में भी एक नफरत की भावना को बढ़ावा देती हैं।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए माना कि, हालांकि इन शब्दों का उपयोग निश्चित रूप से अपशब्द हो सकता है और व्यक्ति की गरिमा को ठेस पहुंचा सकता है, लेकिन ये शब्द किसी अपराध की श्रेणी में नहीं आते। अदालत ने यह भी कहा कि यदि ये शब्द किसी व्यक्ति की भावनाओं को आहत करते हैं, तो यह मामला मानहानि या अन्य सिविल मुकदमे का हो सकता है, लेकिन इसे अपराध की श्रेणी में डालना उचित नहीं होगा।

न्यायालय का विचार
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति ने अपने फैसले में कहा कि भारत में विविधता और सांस्कृतिक भिन्नताओं का सम्मान किया जाता है। यहां तक कि अगर किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य को ‘पाकिस्तानी’ कहकर संबोधित किया जाता है, तो यह उसकी पहचान, धर्म, या राष्ट्रीयता को लेकर सिर्फ एक टिप्पणी हो सकती है, जो व्यक्तित्व की स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि देश में नागरिकों के विचारों और उनके द्वारा उपयोग किए गए शब्दों पर कोई कड़ा प्रतिबंध नहीं हो सकता, बशर्ते वे संविधान द्वारा सुनिश्चित किए गए अधिकारों का उल्लंघन न करते हों।

समाज में संवेदनशीलता का महत्व
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे अपराध नहीं माना, लेकिन इसने समाज में संवेदनशीलता और शब्दों के प्रभाव को लेकर एक महत्वपूर्ण संदेश दिया। न्यायमूर्ति ने कहा कि अपशब्दों और नफरत फैलाने वाली टिप्पणियों से समाज में तनाव और असहमति बढ़ सकती है। विशेषकर, समाज में समरसता और एकता बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि हम अपने शब्दों और क्रियाओं के प्रति सतर्क रहें। यही कारण है कि अदालत ने व्यक्तियों से आग्रह किया कि वे किसी भी विवादास्पद शब्द या टिप्पणी का इस्तेमाल करने से बचें, जो दूसरों को आहत कर सकती है।

कानूनी पहलू
यह फैसला भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत अपराधों से संबंधित नहीं था, लेकिन अदालत ने यह स्पष्ट किया कि यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की जाती है, तो वह उस व्यक्ति के अधिकारों के उल्लंघन का कारण बन सकता है। ऐसे मामलों में सिविल मुकदमे की प्रक्रिया अपनाई जा सकती है, लेकिन किसी व्यक्ति को अपराधी ठहराना सही नहीं है। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोई सजा या दंड देने की आवश्यकता नहीं महसूस की।

समाज पर प्रभाव
इस फैसले का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। जहां एक ओर इस निर्णय ने यह साफ किया कि नफरत फैलाने वाली टिप्पणियों को कानूनी अपराध के रूप में नहीं देखा जा सकता, वहीं दूसरी ओर इसने समाज को यह याद दिलाया कि किसी भी व्यक्ति को अपमानित करना, चाहे वह शब्दों से हो या अन्य रूपों में, समाज में असमानता और नफरत को बढ़ावा दे सकता है। समाज के सभी वर्गों को एक-दूसरे के प्रति अधिक सहिष्णु और संवेदनशील होना चाहिए।

निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि शब्दों का इस्तेमाल करते समय हमें अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। ‘मियां-तियां’ या ‘पाकिस्तानी’ जैसे शब्दों का प्रयोग हो सकता है कि किसी को व्यक्तिगत रूप से आहत न करे, लेकिन यह समाज में नफरत और पूर्वाग्रह को बढ़ावा दे सकता है। अदालत ने यह सही कहा कि ऐसे शब्द अपराध नहीं हैं, लेकिन इनका प्रयोग समाज में नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। इसलिए, हमें अपने शब्दों का चयन करते समय और दूसरों के साथ अपने व्यवहार में अधिक संवेदनशील होना चाहिए, ताकि हम एक समान और शांतिपूर्ण समाज की ओर अग्रसर हो सकें।

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Harshita Ahuja

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