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चीन ने अमेरिकी आयातों पर 15% तक के प्रतिशोधी शुल्क लगाए, चिकन, मक्का और कपास पर बड़ा हमला!

अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा कनाडा, मेक्सिको और चीन पर लगाए गए शुल्क प्रभावी होते ही बाजारों में गिरावट

अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा कनाडा, मेक्सिको और चीन पर लगाए गए शुल्कों के प्रभावी होने के बाद, वैश्विक बाजारों में भारी गिरावट देखने को मिली है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने व्यापार युद्ध के तहत इन देशों से आयातित उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने का निर्णय लिया था, जिससे निवेशकों के बीच चिंता फैल गई और बाजारों में अस्थिरता आई।

अमेरिकी शुल्कों का प्रभाव
अमेरिकी राष्ट्रपति की यह व्यापार नीति, जिसे ‘अमेरिकन फर्स्ट’ के तहत लागू किया गया है, मुख्य रूप से विदेशी देशों से अमेरिकी बाजारों में आने वाले उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने का प्रस्ताव करती है। राष्ट्रपति ने कनाडा, मेक्सिको और चीन जैसे प्रमुख व्यापारिक साझेदारों पर 15% तक के शुल्कों की घोषणा की थी, जिसके परिणामस्वरूप इन देशों से आने वाली वस्तुओं की कीमतें बढ़ने की संभावना जताई जा रही थी।

विशेष रूप से, चिकन, मक्का, और कपास जैसे कृषि उत्पादों को इसका मुख्य लक्ष्य बनाया गया था, जिनकी आपूर्ति इन देशों से होती है। इन शुल्कों के लागू होते ही, वैश्विक व्यापार में असंतुलन और आपूर्ति शृंखलाओं में बाधाएं उत्पन्न होने का खतरा बढ़ गया है, जिससे बाजारों में गिरावट आई।

भारत पर भी असर
अमेरिका के इस निर्णय का प्रभाव केवल इन देशों पर ही नहीं, बल्कि भारतीय बाजारों पर भी पड़ा है। भारतीय निर्यातकों के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण बन गई है, क्योंकि अमेरिका के शुल्कों के कारण चीन, कनाडा और मेक्सिको से प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है। इसके परिणामस्वरूप भारतीय उत्पादों की मांग में कमी आ सकती है, जिससे निर्यातकों के लिए अधिक कठिनाइयां पैदा हो सकती हैं।

भारत, जो अमेरिका का एक बड़ा व्यापारिक साझीदार है, इस व्यापार युद्ध के कारण अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो सकता है। विशेष रूप से, अगर इन देशों से आने वाले उत्पादों की कीमतों में वृद्धि होती है, तो भारतीय उत्पादों को अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है।

बाजार में गिरावट
अमेरिका के शुल्कों के प्रभावी होते ही, वैश्विक बाजारों में भारी गिरावट आई है। भारतीय शेयर बाजार भी इस निर्णय से प्रभावित हुए हैं, और सेंसेक्स और निफ्टी में गिरावट दर्ज की गई है। निवेशकों का विश्वास इस फैसले से कम हुआ है, और बाजार में अनिश्चितता का माहौल बन गया है।

शेयर बाजारों में गिरावट के कारण निवेशक अधिक सतर्क हो गए हैं और अब वे अपने निवेशों को वापस लेने की योजना बना रहे हैं। यह गिरावट विशेष रूप से व्यापारिक और कृषि संबंधित कंपनियों के शेयरों में देखी गई, क्योंकि इन क्षेत्रों पर अमेरिकी शुल्कों का असर सबसे ज्यादा हो सकता है।

विशेषज्ञों की राय
आर्थ‍िक विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका का यह कदम वैश्विक व्यापार में और भी अस्थिरता उत्पन्न कर सकता है। वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएं पहले ही कोविड-19 महामारी के कारण प्रभावित हो चुकी थीं, और अब इस शुल्क वृद्धि के कारण इन शृंखलाओं में और भी बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि इन शुल्कों से न केवल अमेरिका और इन देशों के बीच व्यापार प्रभावित होगा, बल्कि यह पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। अगर अन्य देश भी अमेरिका के खिलाफ प्रतिशोधी शुल्क लगाते हैं, तो यह वैश्विक व्यापार युद्ध को और बढ़ा सकता है, जिससे दुनिया भर में अर्थव्यवस्था के लिए संकट पैदा हो सकता है।

कनाडा, मेक्सिको और चीन की प्रतिक्रिया
कनाडा, मेक्सिको और चीन, तीनों ही देशों ने अमेरिकी शुल्कों पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। कनाडा और मेक्सिको ने अमेरिका से बातचीत के जरिए इस मुद्दे का समाधान निकालने की कोशिश की है, जबकि चीन ने व्यापार युद्ध को और बढ़ाने की धमकी दी है।

चीन ने कहा है कि वह अमेरिकी शुल्कों का जवाब अपनी ओर से अतिरिक्त शुल्क लगाकर देगा और अगर यह स्थिति बनी रहती है, तो चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में और तनाव आ सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं की चिंता
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी वैश्विक आर्थिक संस्थाओं ने भी इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त की है। इन संस्थाओं का मानना है कि अमेरिका का यह कदम वैश्विक आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकता है, और इससे विशेष रूप से विकासशील देशों की स्थिति और भी जटिल हो सकती है।

निष्कर्ष
अमेरिका द्वारा कनाडा, मेक्सिको और चीन पर लगाए गए शुल्कों के प्रभावी होने के बाद वैश्विक बाजारों में गिरावट का दौर शुरू हो चुका है। इससे न केवल व्यापारिक संबंध प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि निवेशकों के लिए भी अनिश्चितता का माहौल बन गया है। यह कदम पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, और आने वाले दिनों में इसके परिणामों का और अधिक गहरा असर देखने को मिल सकता है।

हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह व्यापार युद्ध और बढ़ता है, तो इससे वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में और अधिक असंतुलन हो सकता है। वहीं, भारत जैसे देशों के लिए भी यह चुनौतीपूर्ण स्थिति बन सकती है, क्योंकि व्यापारिक प्रतिशोध के कारण निर्यातकों को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

इसलिए, सभी देशों को इस व्यापारिक संकट से बचने के लिए संवाद और सहयोग की प्रक्रिया को बढ़ावा देना होगा, ताकि वैश्विक अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखा जा सके।

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Harshita Ahuja

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