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जयशंकर का चीन पर तीखा हमला, अफ्रीका में बीजिंग के ‘शोषण मॉडल’ को किया बेनकाब!

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए अफ्रीका के साथ बीजिंग के “शोषणात्मक संबंधों” को आलोचित किया, और भारत की अफ्रीका के प्रति आपसी लाभकारी दृष्टिकोण को रेखांकित किया।

नई दिल्ली: भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण बयान में चीन पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए अफ्रीका के साथ बीजिंग के “शोषणात्मक मॉडल” की आलोचना की। उन्होंने कहा कि भारत अफ्रीका के साथ अपनी साझेदारी को हमेशा आपसी लाभ और सहयोग के सिद्धांतों पर आधारित रखता है, जबकि चीन ने अफ्रीका में अपने “शोषणात्मक” तरीके अपनाए हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब चीन और भारत दोनों अफ्रीका महाद्वीप के साथ अपने रिश्तों को बढ़ाने के प्रयासों में जुटे हुए हैं।

जयशंकर ने यह बयान एक इंटरनेशनल कार्यक्रम में दिया, जहां उन्होंने भारत के विदेश नीति के संदर्भ में अफ्रीका के साथ मजबूत रिश्तों की अहमियत को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि भारत का अफ्रीका के साथ सहयोग किसी भी अन्य देश से अलग है क्योंकि इसमें पारदर्शिता, आपसी सम्मान और दीर्घकालिक दृष्टिकोण पर जोर दिया जाता है। जयशंकर ने चीन के अफ्रीका के साथ अपने संबंधों की तुलना करते हुए कहा कि चीन का दृष्टिकोण “शोषण” का है, जिसमें संसाधनों का दोहन और महाद्वीप के देशों का आर्थिक शोषण किया जाता है।

भारत और अफ्रीका के रिश्ते
भारत और अफ्रीका के बीच ऐतिहासिक और गहरे रिश्ते रहे हैं। भारतीय विदेश नीति में अफ्रीका को हमेशा एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। विशेष रूप से, भारत ने अफ्रीका में बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, शिक्षा, और कृषि के क्षेत्रों में कई परियोजनाओं पर काम किया है। इसके अलावा, भारत ने अफ्रीका के देशों को आर्थिक सहायता, तकनीकी सहायता, और मानव संसाधन विकास में भी योगदान दिया है। जयशंकर ने इस संदर्भ में भारत की अफ्रीका नीति को उजागर करते हुए कहा कि भारत अफ्रीका में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए किसी भी प्रकार का दबाव या शोषण नहीं करता है, बल्कि दोनों पक्षों के बीच समझ और साझेदारी को प्राथमिकता दी जाती है।

भारत ने अफ्रीका के देशों को हमेशा यह विश्वास दिलाया है कि उसकी नीति ‘विकासात्मक सहयोग’ पर आधारित है। जयशंकर ने कहा कि भारत की नीति “सबका साथ, सबका विकास” के सिद्धांत पर आधारित है, जिसमें अफ्रीका के देशों के साथ दीर्घकालिक और पारदर्शी साझेदारी की ओर अग्रसर होने का प्रयास किया जाता है।

चीन की अफ्रीका नीति
चीन ने पिछले कुछ वर्षों में अफ्रीका के देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूती से बढ़ाया है, विशेष रूप से आर्थिक और व्यापारिक सहयोग के क्षेत्र में। चीन ने अफ्रीका में बड़ी-बड़ी निवेश परियोजनाएं शुरू की हैं और इसके तहत कई अफ्रीकी देशों में अवसंरचना निर्माण, खनिज संसाधनों का दोहन और अन्य व्यापारिक गतिविधियां की हैं। हालांकि, चीन पर यह आरोप भी लगते रहे हैं कि वह अफ्रीका के संसाधनों का दोहन कर रहा है और उसकी नीतियां अफ्रीका के देशों के लिए दीर्घकालिक रूप से नुकसानदायक हो सकती हैं।

चीन ने अफ्रीका के देशों को बड़ी कर्ज राशियां दी हैं, जिनकी वापसी पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। इस कर्ज की अदायगी में विलंब और कर्ज के बोझ से अफ्रीकी देशों की स्थिति और भी जटिल हो गई है। आलोचकों का कहना है कि चीन की यह नीति अफ्रीका के देशों को कर्ज के जाल में फंसा रही है, जिसका असर उनकी आर्थिक स्वतंत्रता पर पड़ सकता है।

जयशंकर ने अपने बयान में इस “शोषणात्मक” दृष्टिकोण की आलोचना की और कहा कि भारत की नीति बिल्कुल अलग है। भारत अपने साझीदार देशों के विकास को प्राथमिकता देता है और उन्हें अपने संसाधनों का स्वतंत्र रूप से उपयोग करने का अवसर देता है।

अफ्रीका के लिए भारत की सहायता
भारत ने अफ्रीका के देशों के लिए कई विकासात्मक पहल की हैं। भारत ने अफ्रीकी देशों को स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, और ऊर्जा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहायता प्रदान की है। साथ ही, भारत ने अफ्रीका में कई बुनियादी ढांचे की परियोजनाएं शुरू की हैं, जैसे सड़कों और पुलों का निर्माण, पानी की आपूर्ति, और उर्जा परियोजनाएं।

भारत ने अफ्रीकी देशों के साथ व्यापारिक रिश्तों को भी मजबूत किया है। 2021 में भारत और अफ्रीका के बीच व्यापार 66 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था, जो दोनों पक्षों के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। जयशंकर ने कहा कि भारत अफ्रीका के देशों को अपने विकास में मदद करने के लिए तैयार है, न कि उन्हें शोषण के तहत लाने के लिए।

निष्कर्ष
भारत की अफ्रीका नीति में पारदर्शिता, सहयोग और दीर्घकालिक विकास को प्राथमिकता दी गई है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के शोषणात्मक मॉडल की आलोचना कर यह साबित कर दिया कि भारत का दृष्टिकोण कहीं अधिक स्थिर और सहायक है। भारत की अफ्रीका के प्रति इस सकारात्मक नीति से दोनों महाद्वीपों के रिश्ते और भी मजबूत होंगे, जो न केवल क्षेत्रीय, बल्कि वैश्विक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।

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Harshita Ahuja

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