महाकुंभ, जो पौष पूर्णिमा (13 जनवरी) को शुरू हुआ, दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मेला है, जिसमें दुनियाभर से श्रद्धालु आते हैं। यह महाकुंभ महाशिवरात्रि (26 फरवरी) तक जारी रहेगा।

प्रयागराज: महाकुंभ मेला 2025 अपने चरम पर पहुंच चुका है और इस बार इस धार्मिक मेले में एक ऐतिहासिक और विशेष घटना घटी, जब भारत की राष्ट्रपति, द्रौपदी मुर्मू ने संगम में पवित्र स्नान किया। राष्ट्रपति मुर्मू का यह दौरा न केवल आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण था, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपरा के प्रति उनके अपार श्रद्धा को भी दर्शाता है।
महा कुम्भ मेला, जो 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के दिन शुरू हुआ था, दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मेला है, जिसमें लाखों श्रद्धालु हर साल गंगा, यमुन और सरस्वती के संगम पर आकर पवित्र डुबकी लगाते हैं। इस साल महाकुंभ का आयोजन विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मेला 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन समाप्त होगा, और इस दौरान देश-विदेश से श्रद्धालु यहां आकर पुण्य अर्जित करेंगे।
राष्ट्रपति मुर्मू का ऐतिहासिक दौरा
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का महाकुंभ मेला में जाना एक ऐतिहासिक पल था। उन्होंने संगम में पवित्र स्नान कर न केवल अपनी आस्था प्रकट की, बल्कि पूरे देश को एकता और धार्मिक सौहार्द का संदेश भी दिया। राष्ट्रपति मुर्मू का संगम में स्नान करना भारतीय धार्मिक परंपराओं को मान्यता देने का प्रतीक बन गया। इस दौरान, उन्होंने देशवासियों के लिए शुभकामनाएं दी और कुम्भ मेला के आयोजन को सफल बनाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की सराहना की।
राष्ट्रपति के साथ उनके शिष्टमंडल में कई अन्य वरिष्ठ अधिकारी और मंत्री भी मौजूद थे, जिन्होंने महाकुंभ के विभिन्न पहलुओं का निरीक्षण किया। राष्ट्रपति मुर्मू ने इस अवसर पर राज्यपाल, मुख्यमंत्री और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों से भी मुलाकात की और महाकुंभ मेला के दौरान सुरक्षा व्यवस्था और श्रद्धालुओं के लिए उपलब्ध सुविधाओं पर चर्चा की।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
महाकुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक है। हर बार लाखों श्रद्धालु संगम पर आकर अपने पापों को धोने और मोक्ष की प्राप्ति के लिए पवित्र डुबकी लगाते हैं। इस बार का महाकुंभ मेला पहले से कहीं अधिक भव्य और ऐतिहासिक हो रहा है, जिसमें विश्वभर से लोग आकर भाग ले रहे हैं।
महाकुंभ मेला के दौरान कई धार्मिक अनुष्ठान और सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं, जो भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित करते हैं। यहां देशभर के साधु-संतों का जमावड़ा लगता है, जो अपने विचार और धार्मिक उपदेशों से श्रद्धालुओं को मार्गदर्शन देते हैं।
राष्ट्रपति का संदेश
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने महाकुंभ मेला में स्नान करने के बाद कहा, “यह मेरे लिए एक अत्यंत पवित्र और शुभ अवसर है। महाकुंभ मेला भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और एकता का प्रतीक है। यहां हर श्रद्धालु अपने जीवन के दुखों को समाप्त करने और शांति की प्राप्ति के लिए आता है। इस विशाल आयोजन को देखकर दिल बहुत प्रसन्न होता है।”
उन्होंने आगे कहा कि महाकुंभ मेला न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक प्रेरणा स्रोत है। यह हमें अपने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने की प्रेरणा देता है। उन्होंने देशवासियों से अपील की कि वे इस मेले का हिस्सा बनें और देश की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को समझें।
सुरक्षा और व्यवस्था पर विशेष ध्यान
महाकुंभ मेला के आयोजन में सुरक्षा और व्यवस्था का विशेष ध्यान रखा गया है। श्रद्धालुओं की भारी संख्या को देखते हुए प्रशासन ने विभिन्न सुरक्षा इंतजाम किए हैं, ताकि सभी लोग सुरक्षित रूप से स्नान कर सकें। इसके अलावा, प्रशासन ने साफ-सफाई और चिकित्सा सुविधाओं का भी पूरा ध्यान रखा है, ताकि मेले में शामिल होने वाले श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की समस्या का सामना न करना पड़े।
निष्कर्ष
महाकुंभ मेला 2025 के दौरान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का संगम में पवित्र स्नान करना भारतीय संस्कृति और परंपराओं के प्रति उनकी श्रद्धा का प्रतीक है। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह देश और दुनिया को एकता, शांति और भाईचारे का संदेश भी देता है। महाकुंभ मेला हर साल अपने विराट आकार और धार्मिक महत्व के कारण लाखों लोगों का ध्यान आकर्षित करता है, और इस साल भी यह आयोजन भारत की सांस्कृतिक धरोहर को सम्मानित करने का एक अद्वितीय अवसर बन चुका है।