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प्रशांत किशोर को मिली जमानत, BPSC परीक्षा विवाद को लेकर अनशन पर थे पटना में

पुलिस ने उनके समर्थकों को भी प्रदर्शन स्थल से हटा दिया; गांधी मैदान, जो एक प्रतिबंधित क्षेत्र है, पर अनशन करने के कारण किशोर के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।

राजनीतिक रणनीतिकार और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत किशोर को सोमवार को पटना पुलिस ने गांधी मैदान में गिरफ्तार किया, जहां वह बीपीएससी परीक्षा विवाद के समाधान की मांग करते हुए भूख हड़ताल पर थे। पुलिस ने जब प्रदर्शन स्थल से उनके समर्थकों को हटा दिया, तो किशोर को गिरफ्तार किया गया। किशोर, जो बीपीएससी परीक्षा प्रणाली में कथित गड़बड़ियों और मुद्दों को लेकर विरोध कर रहे थे, को एक प्रतिबंधित क्षेत्र में अनशन करने के आरोप में हिरासत में लिया गया।

बीपीएससी परीक्षा विवाद ने राज्य में छात्रों के बीच असंतोष को जन्म दिया है, जिसमें परीक्षा में अनियमितताओं और अन्यायपूर्ण प्रथाओं के आरोप लगाए गए हैं। प्रशांत किशोर, जो राजनीतिक अभियानों में अपनी भूमिका और राज्य स्तर पर सक्रियता के लिए प्रसिद्ध हैं, बीपीएससी परीक्षा प्रणाली की पारदर्शिता को लेकर अपनी चिंताओं को लेकर मुखर रहे हैं। उनकी भूख हड़ताल, जो उन उम्मीदवारों के लिए न्याय की मांग करने के रूप में शुरू हुई, जो परीक्षा प्रणाली से असंतुष्ट थे, सार्वजनिक आक्रोश का केंद्र बन गई।

यह घटना पटना के गांधी मैदान पर हुई, जो पटना का गौरव है और जो कई बार राजनीतिक रैलियों और सार्वजनिक बैठकों के लिए उपयोग किया गया है। हालांकि, इस स्थान को सुरक्षा खतरों के कारण अब प्रदर्शन स्थल के रूप में प्रतिबंधित कर दिया गया है, और इस कारण पुलिस ने किशोर को अनशन पर बैठने के कारण गिरफ्तार किया। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हटाया, लेकिन साथ ही किशोर के भूख हड़ताल के राजनीतिक संदर्भ को भी ध्यान में रखा, जिसने मीडिया और जनता का ध्यान आकर्षित किया।

पुलिस ने पहले किशोर के समर्थकों को स्थल से हटाया और फिर राजनीतिक रणनीतिकार को गिरफ्तार किया, क्योंकि उन्होंने एक प्रतिबंधित क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन किया था। अधिकारियों का कहना था कि इस क्षेत्र में सुरक्षा कारणों से ऐसे प्रदर्शन नहीं किए जा सकते, लेकिन किशोर की गिरफ्तारी पर विभिन्न राजनीतिक और छात्र संगठनों द्वारा आलोचना की गई।

कुछ ही घंटों बाद, प्रशांत किशोर को जमानत मिल गई और समाचार रिपोर्ट्स में उनके गिरफ्तारी के बाद रिहा होने की जानकारी आई। उनकी रिहाई के समय उनके समर्थकों ने उनकी गिरफ्तारी का विरोध किया और बीपीएससी परीक्षा में अनियमितताओं को लेकर अपनी शिकायतें व्यक्त कीं।

यह भूख हड़ताल, हालांकि व्यक्तिगत थी, बिहार के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में एक महत्वपूर्ण कदम बन गई। इस अनशन के माध्यम से एक लंबे समय से चल रही समस्या को सार्वजनिक ध्यान में लाया गया, जो राज्य के हजारों छात्रों को प्रभावित कर रही है। बिहार के सबसे प्रसिद्ध राजनीतिक हस्तियों में से एक किशोर के इस मुद्दे में शामिल होने से राज्य प्रशासनिक व्यवस्था में पारदर्शिता, शासन और जवाबदेही पर व्यापक चर्चा शुरू हो गई।

बीपीएससी परीक्षा को लेकर पिछले कुछ महीनों से विवाद चल रहा था, जिसमें उम्मीदवारों ने आयोग पर भ्रष्टाचार, परिणामों में देरी और चयन प्रक्रिया को लेकर आरोप लगाए हैं। इस मुद्दे ने उस समय तूल पकड़ा, जब उम्मीदवारों और छात्र संगठनों ने बिहार सरकार से जवाब और जवाबदेही की मांग शुरू की। एक निष्पक्ष परीक्षा प्रक्रिया की मांग और भ्रष्टाचार के आरोपों ने स्थिति को और अधिक संवेदनशील बना दिया। किशोर की भागीदारी ने इस मुद्दे को और बढ़ा दिया, जिससे यह पूरे समाज का ध्यान आकर्षित हुआ।

अपनी रिहाई के बाद, किशोर ने बीपीएससी प्रणाली में सुधार की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई और छात्रों के लिए न्याय की लड़ाई जारी रखने का संकल्प लिया। उनके समर्थकों और अन्य छात्र समूहों ने भी आगे के विरोध प्रदर्शन और प्रदर्शन की घोषणा की है, जिसमें संबंधित अधिकारियों से इस्तीफा मांगने और परीक्षा प्रक्रिया में निष्पक्षता और पारदर्शिता लाने की मांग की गई है।

किशोर की गिरफ्तारी और रिहाई ने असंतोष की लहर को और बढ़ा दिया है, साथ ही यह बिहार में परीक्षा संचालन के मामले में छात्रों और नागरिकों के बीच व्यापक गुस्से और निराशा को सामने लाया है। यह घटना बिहार की पारदर्शिता और भर्ती प्रणालियों के सामने आने वाली चुनौतियों को भी उजागर करती है।

फिर से, यह घटनाएँ प्रशांत किशोर द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन ने बिहार की शासन व्यवस्था और प्रशासनिक प्रक्रियाओं को गंभीर जांच के दायरे में ला दिया है। इस बहस के जारी रहने के बावजूद, अब यह देखना बाकी है कि राज्य सरकार सार्वजनिक चिंताओं को दूर करने के लिए त्वरित निर्णय लेती है, विशेष रूप से उन छात्रों की चिंताओं को जो महसूस करते हैं कि वे परीक्षा प्रक्रिया में पीछे छूट गए हैं।

इस समय यह देखना बाकी है कि अधिकारी बढ़ते दबाव का कैसे सामना करते हैं और क्या बीपीएससी परीक्षा प्रणाली में कोई वास्तविक सुधार किए जाएंगे ताकि जनता का विश्वास पुनः बहाल हो सके।

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Harshita Ahuja

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