प्रियंका गांधी के साथ-साथ विपक्षी सांसदों ने भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ संदेश वाले प्लेकार्ड और टोट बैग्स संसद परिसर में ले जाकर विरोध प्रदर्शन किया।

बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के समर्थन में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी और कई विपक्षी सांसदों ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ कथित अत्याचारों की निंदा करने वाले प्लेकार्ड और टोट बैग्स उठाए। यह विरोध भारतीय संसद परिसर में हुआ, जहां विपक्षी नेताओं ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की।
विरोध और प्रतीकात्मक इशारा
राजनीतिक गतिविधियों के बीच, प्रियंका गांधी और विपक्षी सांसद संसद भवन के सामने जमा हुए और बांग्लादेश में हिंदू और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों को उजागर करने वाले प्लेकार्ड उठाए। उन्होंने “बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के साथ खड़े हैं” जैसे संदेश वाले टोट बैग्स भी उठाए, जो उनके बांग्लादेश में हिंसा और मानवाधिकारों का उल्लंघन करने के खिलाफ घोर विरोध को दर्शाते थे।
यह प्लेकार्ड और बैग्स एक प्रतीकात्मक विरोध का हिस्सा थे, जिसका उद्देश्य बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के प्रति किए जा रहे दुर्व्यवहार पर अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करना था, खासकर अक्टूबर 2021 में दुर्गा पूजा समारोह के बाद हिंदू मंदिरों, घरों और व्यापारिक स्थलों पर हमलों की रिपोर्टों के बाद। मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, इन हमलों में धार्मिक स्थलों का अपमान, व्यक्तियों के खिलाफ हिंसा और समुदायों का विस्थापन हुआ। विपक्षी नेताओं, जिनमें प्रियंका गांधी भी शामिल हैं, ने इस विरोध के माध्यम से पीड़ितों के साथ एकजुटता दिखाने और इस मुद्दे को हल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग की।
राजनीतिक संदर्भ
विपक्षी सांसदों का यह विरोध सिर्फ बांग्लादेश की स्थिति के प्रति प्रतिक्रिया नहीं था, बल्कि यह भारत में व्यापक राजनीतिक कथा का हिस्सा था। विपक्षी नेताओं ने वर्तमान सरकार की अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर नीति की आलोचना की है, चाहे वह भारत के भीतर हो या पड़ोसी देशों में। विपक्षी नेता भारतीय सरकार के 2019 में पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ भी मुखर रहे हैं, जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से गैर-मुसलमान शरणार्थियों को शीघ्र नागरिकता प्रदान करता है। जबकि सरकार का कहना है कि CAA एक मानवीय कदम है, विपक्ष का कहना है कि यह मुसलमानों के खिलाफ भेदभाव करता है और धार्मिक समुदायों के बीच तनाव को बढ़ाता है।
विपक्ष के लिए, संसद में यह विरोध सरकार की उस नीति की आलोचना करने का एक अवसर था, जिसे वे अल्पसंख्यक अधिकारों के प्रति पक्षपाती मानते हैं। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की दुर्दशा को उजागर कर, उन्होंने भारत की विदेश नीति और घरेलू अल्पसंख्यकों के प्रति सरकार के दृष्टिकोण के बीच के अंतर को सामने लाने की कोशिश की।
प्रियंका गांधी की भूमिका
कांग्रेस की सबसे प्रमुख चेहरे प्रियंका गांधी ने इस विरोध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और यह स्पष्ट किया कि वह क्षेत्र में अल्पसंख्यक अधिकारों के मुद्दे पर खड़ी हैं। गांधी हमेशा भारत की धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों के बारे में मुखर रही हैं, और जब इन अधिकारों का उल्लंघन होता है तो वह इसे उजागर करती हैं। उन्होंने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों के खिलाफ प्रतिरोध जताया और भारतीय सरकार के विदेशी मामलों में मानवाधिकारों के मुद्दे पर सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता को रेखांकित किया।
प्रियंका गांधी ने कहा, “बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदू समुदाय के खिलाफ हो रही हिंसा एक गंभीर चिंता का विषय है। हम उनके साथ एकजुटता दिखाते हैं और सरकार से इन अत्याचारों के खिलाफ मजबूत कदम उठाने की मांग करते हैं।”
सरकार और मानवाधिकार संगठनों की प्रतिक्रिया
संसद में हुआ यह विरोध दोनों राजनीतिक पक्षों से प्रतिक्रियाओं का कारण बना। विपक्षी सांसदों ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए सरकार से हस्तक्षेप की मांग की, वहीं भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेताओं ने इस विरोध को एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दे को घरेलू लाभ के लिए राजनीति में लाने की कोशिश करार दिया। उन्होंने कहा कि भारत को अपनी आंतरिक चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और दूसरे देश के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
मानवाधिकार संगठनों ने विपक्ष के इस विरोध का स्वागत किया और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता जताई। इन संगठनों का कहना है कि भारतीय सरकार को बांग्लादेश पर दबाव डालकर वहां के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए, खासकर जब कि धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं।
निष्कर्ष
जैसे-जैसे स्थिति बढ़ रही है, प्रियंका गांधी और विपक्षी सांसदों का यह विरोध भारत में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक अधिकारों के संवर्धन में भारत की भूमिका को लेकर महत्वपूर्ण बहस का कारण बना है। यह विरोध क्षेत्र में धार्मिक समानता की लड़ाई और भारत की विदेश नीति के जटिल मुद्दों को उजागर करता है, जो अक्सर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय एजेंडे से जुड़े होते हैं।
यह विरोध राजनीतिक मंच पर एक चर्चा का विषय बन गया है, और इसके दोनों पक्षों की तरफ से इस मुद्दे को सुलझाने के लिए अपने दृष्टिकोण सामने आएंगे। फिलहाल, विपक्ष का यह साहसिक कदम यह याद दिलाता है कि धार्मिक समानता और मानवाधिकारों की लड़ाई अब भी खत्म नहीं हुई है, और यह केवल भारत में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जारी रहनी चाहिए।