जमानत शर्तों के अनुसार, AAP नेता मनीष सिसौदिया को दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति से संबंधित भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में सप्ताह में दो बार जांच अधिकारी को रिपोर्ट करना था।

एक महत्वपूर्ण विकास में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पूर्व दिल्ली उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत शर्तों में ढील दी, जो दिल्ली शराब नीति मामले से संबंधित है। कोर्ट के इस फैसले से सिसोदिया को राहत मिली, जिन्हें इस वर्ष की शुरुआत में दिल्ली शराब नीति के निर्माण और क्रियान्वयन में कथित भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के मामले में जमानत दी गई थी।
सिसोदिया को फरवरी 2023 में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने गिरफ्तार किया था। उन पर कई आरोप लगाए गए थे, जिनमें साजिश, भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग शामिल थे। उनकी गिरफ्तारी एक राजनीतिक मुद्दा बन गई थी और आम आदमी पार्टी के नेताओं ने इसे पार्टी की दिल्ली में नेतृत्व स्थिरता को कमजोर करने के लिए एक व्यापक राजनीतिक प्रतिशोध का हिस्सा बताया था। सिसोदिया को ट्रायल कोर्ट से जमानत दी गई थी, लेकिन जमानत शर्तों के तहत उनकी गतिविधियों और आंदोलनों पर कई प्रतिबंध लगाए गए थे, जिनमें मीडिया से बात करने या मामले पर सार्वजनिक बयान देने पर पाबंदी भी शामिल थी।
आज के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने सिसोदिया के वकीलों द्वारा प्रस्तुत की गई दलीलों पर विचार किया, जिसमें कहा गया था कि जमानत शर्तें कठोर हैं। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने तर्कों को सुना और सिसोदिया पर लगाए गए जमानत शर्तों में कुछ प्रावधानों में ढील दी। हालांकि कोर्ट ने जमानत की सभी शर्तों को पूरी तरह से हटाया नहीं, लेकिन सिसोदिया को सार्वजनिक बहसों में भाग लेने और पार्टी बैठकों में शामिल होने की अधिक स्वतंत्रता दी, कुछ शर्तों के साथ।
जमानत शर्तों में यह ढील सिसोदिया के समर्थकों और पार्टी के सदस्यों द्वारा स्वागत किया गया है, जिन्होंने लंबे समय से यह तर्क दिया था कि ये प्रतिबंध अत्यधिक कठोर थे और उनके लोकतांत्रिक गतिविधियों में भाग लेने के अधिकार का उल्लंघन कर रहे थे। यह निर्णय सिसोदिया के खिलाफ चल रही कानूनी लड़ाई में एक महत्वपूर्ण क्षण है, क्योंकि सिसोदिया लगातार अपनी निर्दोषता का दावा करते हुए इन आरोपों का मुकाबला कर रहे हैं।
दिल्ली शराब नीति मामला इस आरोप के इर्द-गिर्द घूमता है कि 2021 में दिल्ली सरकार द्वारा लाए गए शराब नीति से सार्वजनिक खजाने को नुकसान हुआ और शराब माफिया को लाभ हुआ। सिसोदिया, जो उस समय दिल्ली के शराब मंत्री थे, पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने नीति को इस तरह से तैयार किया, जिससे अनियमितताएँ और कथित घोटाले हुए। वह और दिल्ली सरकार के अन्य वरिष्ठ अधिकारी मामले की जांच के दौरान CBI द्वारा गिरफ्तार किए गए थे।
सिसोदिया के वकील लगातार यह दावा करते रहे हैं कि उन्हें इस मामले में फंसाया जा रहा है और उनके खिलाफ कोई ठोस साक्ष्य नहीं हैं। इसके बजाय, उनका कहना है कि यह मामला राजनीतिक प्रेरित है, जिसका उद्देश्य AAP के चुनावी अवसरों को नुकसान पहुँचाना है।
जमानत शर्तों में ढील से अब सिसोदिया को अपनी रक्षा तैयार करते समय अधिक स्वतंत्रता मिलेगी, और इसका असर मामले की गति पर भी पड़ेगा। उनके वकील यह संभावना जताते हैं कि वे जांच की वैधता पर सवाल उठा सकते हैं और शायद आरोपों को खारिज करवा सकते हैं या घटित करवा सकते हैं।
यह निर्णय इस चल रहे मामले में एक महत्वपूर्ण क्षण है और भविष्य की कानूनी कार्रवाई को प्रभावित कर सकता है। यह देखना बाकी है कि जमानत शर्तों में ढील से कानूनी विवाद का राजनीतिक रुख बदलता है या नहीं, क्योंकि trial की आगे की प्रक्रिया इस पर निर्भर करेगी।
यह निर्णय उस समय आया है जब AAP 2024 के आम चुनावों की तैयारी कर रही है, और सिसोदिया का मामला राजनीतिक चर्चा में एक महत्वपूर्ण बिंदु बना हुआ है। इस कदम के साथ, सुप्रीम कोर्ट ने यह संकेत दिया है कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए तैयार है कि कानूनी प्रक्रिया निष्पक्ष हो, जबकि इस मामले के चारों ओर चल रही राजनीतिक हलचल और बढ़ती जा रही है।