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पाकिस्तान में पीटीआई प्रदर्शनकारियों की लॉकडाउन उल्लंघन पर इंटरनेट बंद, स्कूलों की छुट्टी और ट्रेनें रद्द

खान के हजारों समर्थकों ने अपने नेता की रिहाई से लेकर सरकार के इस्तीफे तक की मांगों को लेकर संसद के पास धरना देने के उनके आह्वान के जवाब में बैरिकेड्स तोड़कर राजधानी में मार्च किया।

पाकिस्तान में घटनाओं ने एक अप्रत्याशित मोड़ लिया है, जहां पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के प्रदर्शनकारियों ने सरकार द्वारा लागू किए गए कड़े राष्ट्रीय लॉकडाउन का उल्लंघन किया। जैसे-जैसे विरोध प्रदर्शन बढ़े, अधिकारियों ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कई कठोर कदम उठाए, जिनमें इंटरनेट सेवाओं को निलंबित करना, स्कूलों को बंद करना, ट्रेन सेवाओं को रद्द करना और ‘शूट एट साइट’ आदेश जारी करना शामिल है। सरकार के इन कदमों के पीछे कारण था कि पीटीआई नेताओं और उनके समर्थकों ने सत्ता में बैठे प्रशासन के खिलाफ सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन किया।

पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की अगुवाई में पीटीआई ने देशभर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया था, जिसमें मांग की गई थी कि जल्दी चुनाव कराए जाएं और खान को जिस नॉ-कॉन्फिडेंस वोट के जरिए सत्ता से हटाया गया था, उसे ‘गैरकानूनी’ घोषित किया जाए। इसके बाद, इस विरोध के दौरान इस्लामाबाद, लाहौर, कराची सहित विभिन्न शहरों में प्रदर्शकारियों और सुरक्षा बलों के बीच हिंसक झड़पें शुरू हो गईं, जिससे व्यापक हिंसा का माहौल बन गया।

विरोध के बढ़ने पर सरकार ने देशभर में कर्फ्यू लगाया और इंटरनेट सेवाओं को निलंबित कर दिया ताकि विरोध को नियंत्रित किया जा सके। सरकार ने इंटरनेट बंद करने के कारण के रूप में यह बताया कि इससे अफवाहों को फैलने से रोका जा सकेगा और स्थिति को नियंत्रण में रखा जा सकेगा। सोशल मीडिया पर पीटीआई नेता जो भारी निर्भर करते हैं, उनके प्रचार के लिए भी यह कदम प्रभावी रहा, जिससे प्रदर्शनकारियों को फिर से अपनी आवाज उठाने और संगठित होने में परेशानी हुई।

इंटरनेट बंद करने के अलावा, देशभर के स्कूलों को बंद कर दिया गया और प्रमुख परिवहन केंद्रों को स्थगित कर दिया गया। ट्रेन सेवाओं को इस उद्देश्य से रद्द किया गया ताकि प्रदर्शकारियों और पुलिस के बीच कोई संभावित टकराव न हो। स्कूलों के बंद होने और ट्रेन सेवाओं की रद्दीकरण ने लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर गहरा असर डाला, क्योंकि हजारों छात्र अपनी कक्षाओं में शामिल नहीं हो सके और यात्री परिवहन सेवाओं के रद्द होने के कारण फंसे रहे।

जैसे-जैसे हिंसा बढ़ी और इसे नियंत्रित करना संभव नहीं रहा, सरकार ने ‘शूट एट साइट’ आदेश जारी किया ताकि प्रदर्शनकारियों द्वारा की जा रही तबाही को रोका जा सके और नियंत्रण प्राप्त किया जा सके। यह आदेश ऐतिहासिक और अत्यधिक था, जिसमें कानून प्रवर्तन अधिकारियों को हिंसक भीड़ को तितर-बितर करने और आगे की हिंसा को रोकने के लिए घातक बल का उपयोग करने का अधिकार दिया गया। अधिकारियों का कहना था कि यह आदेश सार्वजनिक संपत्ति को बचाने और देश में कानून व्यवस्था को बहाल करने के लिए जरूरी था।

सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख शहरों में अतिरिक्त पुलिस और सेना को तैनात किया है कि प्रदर्शन और हिंसा न बढ़े। कई प्रमुख शहरों के विभिन्न हिस्सों में बैरिकेड्स और सुरक्षा घेरे लगाकर लोगों को इकट्ठा होने से रोका जा रहा है और हिंसा को फैलने से बचाया जा रहा है।

इसके बावजूद, विरोध प्रदर्शन देशभर में व्यवधान पैदा कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें जारी हैं, और कई क्षेत्रों में संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और हिंसा की खबरें आई हैं। स्थिति अब भी तनावपूर्ण है, और अगर इसे सही तरीके से नहीं संभाला गया तो इससे व्यापक अशांति फैल सकती है।

अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों ने सरकार द्वारा हिंसा के नियंत्रण के लिए किए गए कदमों और इंटरनेट बंद करने के फैसले पर चिंता जताई है। मानवाधिकार संगठनों ने सरकार के इस कदम की आलोचना की है और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के अधिकारों की रक्षा की मांग की है।

यह स्पष्ट है कि पीटीआई के नेतृत्व में चल रहे विरोध प्रदर्शनों को शांत करना अब भी अनिश्चित है। हालांकि, यह भी सच है कि जल्दी चुनावों की मांग जनता के बड़े हिस्से में गहरी है, जबकि सरकार सत्ता बनाए रखने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। ऐसे में, पाकिस्तान एक गंभीर राजनीतिक संकट से गुजर रहा है, जहां स्कूल बंद हैं, ट्रेनें रद्द हैं और इंटरनेट सेवा निलंबित है।

जैसे-जैसे स्थिति आगे बढ़ रही है, पूरी दुनिया इस पर नजर बनाए हुए है, क्योंकि पाकिस्तान की स्थिरता का क्षेत्रीय प्रभाव भी है। फिलहाल, सरकार का ध्यान विरोध प्रदर्शनों को नियंत्रित करने, शांति बहाल करने और हिंसा को बढ़ने से रोकने पर है। हालांकि, पाकिस्तान में वर्तमान राजनीतिक अशांति का देश के लोकतांत्रिक प्रक्रिया और लंबे समय तक अस्थिरता के खतरे पर व्यापक प्रभाव हो सकता है।

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Harshita Ahuja

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