यह कदम ट्रांसजेंडर पहचान को पहचानने और सम्मान देने और विभिन्न आधिकारिक और कानूनी संदर्भों में उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने के व्यापक प्रयासों का हिस्सा है।

नई दिल्ली – भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए (स्थायी खाता संख्या) आवेदनों में पहचान प्रमाणपत्रों को मान्यता देने की पुष्टि की है। यह निर्णय ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों को मान्यता देने और उनकी सामाजिक पहचान को सशक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पैन के लिए आवेदन करते समय उनके पहचान प्रमाणपत्र को मान्यता दी जाएगी, जो उनके लिंग पहचान को सही तरीके से दर्शाता है। इस निर्णय के माध्यम से, कोर्ट ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पहचान और अधिकारों के क्षेत्र में समानता सुनिश्चित करने का प्रयास किया है।
यह मामला तब सामने आया जब ट्रांसजेंडर समुदाय के कई सदस्यों ने पैन आवेदन प्रक्रिया के दौरान अपने पहचान प्रमाणपत्रों के मान्यता प्राप्त नहीं होने की शिकायत की थी। उनके पास लिंग पहचान प्रमाणपत्र होते हुए भी पैन के लिए आवेदन में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था।
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को एक नया अधिकार मिला है, जो उन्हें सरकार द्वारा जारी की गई महत्वपूर्ण पहचान दस्तावेजों में उनकी सही पहचान को दर्ज कराने में सक्षम बनाएगा। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि संबंधित विभाग और संस्थान इस निर्णय को लागू करें और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए सहज और सरल प्रक्रिया सुनिश्चित करें।
इस फैसले की सराहना करते हुए, ट्रांसजेंडर अधिकार समूहों ने इसे सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति बताया। उन्होंने उम्मीद जताई है कि यह निर्णय ट्रांसजेंडर समुदाय के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाएगा और उनके अधिकारों की रक्षा करेगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारत में ट्रांसजेंडर अधिकारों के लिए एक सकारात्मक बदलाव का प्रतीक है, जो न केवल कानूनी मान्यता प्रदान करता है बल्कि सामाजिक समावेशिता को भी प्रोत्साहित करता है।