
मध्य एशिया के उज्बेकिस्तान में हाल ही में संपन्न हुए शंघाई सहयोग संगठन के एजेंडे से इतर एक द्विपक्षीय बैठक में रूस ने पाकिस्तान को मदद देने की बात कही है. रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने पाक पीएम शहबाज शरीफ से कहा कि हम पाकिस्तान को गेहूं और गैस दे सकते हैं. स्वाभाविक है कि रूस के इस बयान ने भारत को बड़ा झटका लगा. क्योंकि भारत अपने पुराने मित्र रूस से ऐसी उम्मीद बिल्कुल नहीं करता कि वह उसके दुश्मन मुल्क को मदद मुहैया कराए. भारत ने रूस के इस बयान पर आपत्ति भी जताई है. लेकिन इस बीच सबसे बड़ा सवाल जो उभर कर आया है वो यह कि आखिर रूस ऐसा कर क्यों रहा है. जबकि रूस यह भलिभांती जानता है कि पाकिस्तान भारत का दुश्मन है.
यूं तो विदेशी मामलों के पंडित रूस के इस बयान के अलग-अलग मतलब निकाल रहे हैं और भारत को सावधान रहने की बात कर रहे हैं, लेकिन कुछ जानकारों का मानना है कि परदे के पीछे की तस्वीर कुछ और भी हो सकती है. पाकिस्तान के नजदीक जाने का मतलब यह नहीं है कि रूस अपने दशकों पुराने मित्र भारत से दूरी बना रहा है. उसकी रणनीति पाकिस्तान को अमेरिका के प्रभाव से निकालना भी हो सकती है. क्योंकि पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन के बाद अमेरिका का दखल ज्यादा बढ़ा है. जबकि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की रूस के साथ नजदीकि किसी से छिपी नहीं थी. इमरान खान ही वो पहले पाक प्रधानमंत्री थे जो सत्ता से बेदखल होने से ऐन पहले रूस की यात्रा कर गए थे. हालांकि रूस से नजदीकि की कीमत उनको सत्ता से हटने के रूप में चुकानी पड़ी थी, जिसमें उन्होंने अमेरिका का हाथ होना बताया था, जिसमें सच की बहुत गुंजाइश है.
ऐसे में अमेरिका के प्रति पाकिस्तान के झुकाव को रूस बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है. दूसरा क्योंकि अफगानिस्तान में रूस का सीधा दखल है तो वह चाहता है कि पाकिस्तान भी अफगानियों के साथ मधुर संबंध बनाकर रहे. यही वजह है कि रूस ने पाकिस्तान के लिए अपने गैस के भंडार खोलने का एलान किया है, जिसके लिए कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के माध्यम से एक नई पाइपलाइन बनाने की बात भी कही है. हालांकि पाकिस्तान का रूस के इस प्रस्ताव पर क्या रुख होगा यह तो भविष्य ही बताएगा, लेकिन भारत के लिए इससे अभी कोई खतरा नजर नहीं आ रहा है.