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झारखंड का अद्भुत दुर्गा मंदिर,इस मंदिर में 16 दिनों की होती है नवरात्रि,जानें क्या है रहस्य

झारखंड में अनेक दुर्गा मंदिर हैं लेकिन इस मंदिर का इतिहास कुछ अगल है। इसकी कहानी सुनकर हर कोई यहां एक बार आना चाहेगा। झारखंड की तमाम बड़ी हस्तियां समय समय पर यहां पहुंच कर पूजा अर्चना करती हैं। आइए जानते हैं इसकी विशेषता।

शारदीय नवरात्र की शुरुवात हो चुकी है, पूरे भारत वर्ष के सनातन धर्मावलंबी मां अम्बे की भक्ति में लीन है. ऐसे तो हमारे देश में कई ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर हैं, लेकिन इस शारदीय नवरात्र के पावन अवसर पर हम झारखंड के अति प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर की पूजा और परंपरा से आपको रूबरू करवा रहे है. इस मंदिर से जुड़ी पूजा की परंपरा और इससे जुड़ी हुई रोचक कहानियां देश के बाकी मंदिरों से बिल्कुल अलग है.

देश में जहां 9 दिनों तक नवरात्र की पूजा होती है वही नक्सल प्रभावित जिले लातेहार के प्रखंड मुख्यालय चंदवा से दस किलोमीटर दूर स्थित सैकड़ों साल पुराना एक प्राचीन मंदिर है. जिसे मां उग्रतारा नगर मंदिर के नाम से जाना जाता है. सालो पुराने इस प्राचीन महान मंदिर से जुड़ी कई कहानियां हैं. जो इसे अन्य मंदिरों से खास बनाती हैं. यह मंदिर मंदारगिरी पहाड़ पर स्थित है. इसे भक्त शक्तिपीठ भी कहते हैं. सबसे विशेष बात यह है कि इस मंदिर में 16 दिनों तक नवरात्र मनाने की परंपरा है.

इस दिन से शुरू हो जाते है नवरात्र

लातेहार जिले में स्थित मां उग्रतारा नगर मंदिर में 16 दिनों की विशेष नवरात्रि की पूजा होती है. आश्विन कृष्ण पक्ष नवमी यानी जितिया पर्व के ठीक दूसरे दिन से ही कलश स्थापित कर के माँ दुर्गा की पूजा शुरू हो जाती है. इसके बाद दुबारा से नवरात्र के प्रथम दिन कलश स्थापित करने के बाद अष्ठभुजी माता की पूजा की जाती है. वही आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी को पूजा सम्पन्न होती है. ऐसी मान्यता है कि मां उग्रतारा नगर मंदिर में मांगी गई हर मुराद पूरी होती है. यहां लाल पुष्प मां को चढ़ाने की परंपरा है. इस मंदिर में देश के कई राज्यो से भक्त विशेष कर नवरात्रि पूजा के दौरान आते हैं.

राजा ने महल में बनवाया था माता का मंदिर

मां उग्रतारा नगर मंदिर से जुड़ी एक कहानी काफी प्रचलित है, कहा जाता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व एक राजा जिनका नाम पितांबर शाही था. वो एक बार लातेहार जिले के ही मनकेरी जंगल में शिकार के लिए गए थे. शिकार के दौरान राजा को बहुत प्यास लगी. राजा ने अपने करवां को एक तालाब के पास रोका. तालाब में पानी पीने के दौरान राजा के हाथ में देवी की प्रतिमा आ गई. राजा कुछ समझ नहीं पाए और उन्होंने देवी की प्रतिमा को वापिस से उसी तालाब में डाल दिया. फिर राजा अपने करवां को लेकर शिकार के लिए आगे बढ़ गए.

उसी रात राजा ने सपने में देखा कि वही देवी मां उन्हें अपनी प्रतिमा को राजमहल में पहुंचाने को कह रही हैं. सुबह जब राजा उठे और उसी तालाब के तरफ गए. जहां पानी पीने के दौरान उन्हें देवी की प्रतिमा मिली थी. देवी की उसी प्रतिमा को लाकर राजा ने अपने महल में स्थापित कर दिया. राजमहल में ही राजा ने देवी का एक मंदिर भी बनवाया, कहा जाता है कि उस जमाने मे मंदिर के कार्य करने के लिए राजा ने कर्मचारी नियुक्त किया था.

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Pooja Pandey

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