दिलजीत दोसांझ ने फिल्म में कमाल की एक्टिंग की है. ये फिल्म नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है. दिलजीत के साथ फिल्म में अमायरा दस्तूर भी नजर आ रही हैं.

अली अब्बास जफर ने प्राइम वीडियो के लिए ‘तांडव’ सीरीज बनाई और इस पर खूब तांडव हुआ भी। अब वह ‘जोगी’ लेकर आए हैं। नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई उन दिलजीत दोसांझ की नई फिल्म, जिनका हिंदी सिनेमा में नाम कमाने का सपना लंबे समय से रहा है।
अली अब्बास जफर जब से यशराज फिल्म्स से अलग हुए हैं, उनके प्रशंसकों को उनसे उम्मीदें बहुत रही हैं। ‘मिस्टर इंडिया’ के रीबूट वर्जन से लेकर ‘बड़े मियां छोटे मियां’ के मॉडर्न अवतार तक अली अब्बास जफर की हर नई फिल्म का एलान बड़े परदे पर बड़ा धमाका होने की उम्मीदें जगाता है। उम्मीद ये भी जागती है कि हिंदी सिनेमा में आजाद आवाजें अब भी बाकी हैं और फिल्मी परिवारों के बाहर से आने वाले भी यहां अपने बूते अपना सिक्का चलाने लायक बन सकते हैं। अली ने प्राइम वीडियो के लिए ‘तांडव’ सीरीज बनाई और इस पर खूब तांडव हुआ भी। अब वह ‘जोगी’ लेकर आए हैं। नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई उन दिलजीत दोसांझ की नई फिल्म, जिनका हिंदी सिनेमा में नाम कमाने का सपना लंबे समय से रहा है।
दोस्ती और प्यार की कहानी
नेटफ्लिक्स ओरिजनल के रूप में बनी फिल्म ‘जोगी’ शुरू होती है तो एक आशंका सी मन में जागती है। आशंका इस बात की कि एजेंडा फिल्मों के दौर का कहीं ये भी कोई नया एजेंडा तो नहीं है। 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुई हिंसक घटनाओं और मारकाट से फिल्म शुरू होती है तो मन सिहर सा उठता है। लगता है कि अली अब्बास जफर शायद ‘तांडव’ पर लगे आरोपों का पश्चाताप फिल्म ‘जोगी’ में करने जा रहे हैं लेकिन धीमी गति के समाचार सी आगे बढ़ती फिल्म शुरुआत के 20-25 मिनट बाद जब रवानी में आती है तो पता चलता है कि लिफाफा देखकर मजमून भांपने की कोशिश हर बार सही नहीं होती। फिल्म ‘जोगी’ दोस्ती और प्यार की कहानी है। दोस्ती भी उन तीन दोस्तों की जिनमें एक सिख है, एक हिंदू है और एक मुसलमान।
भरोसे को कसौटी पर कसती कहानी
हिंदी सिनेमा में दोस्तों की दिलेरी अब कम ही देखने को मिलती है। और, खालिस दोस्ती पर बनी फिल्में तो शायद इन दिनों के फिल्मकार सोचते भी नहीं हैं। फिल्म ‘जोगी’ सही समय पर कही जा रही एक ऐसी सही कहानी है जिसकी आज के समय में जरूरत भी काफी है। एक हंसता खेलता संयुक्त परिवार है। सब सुबह सुबह तैयार हो रहे हैं। कोई दफ्तर जा रहा है। कोई दुकान खोलने निकलने वाला है। बच्चे स्कूल की तैयारी में है। और, महिलाएं गरमा गरम पराठे तैयार कर रही हैं। लेकिन, इन खुशियों को आग लगती है प्रधानमंत्री पर चली ताबड़तोड़ गोलियों से। भरोसे का कत्ल वहां हुआ है जहां से देश चलता है। और, गली, मोहल्ले और नुक्कड़ों का सुबह शाम का भरोसा एकाएक दांव पर लग जाता है
हालात में उलझी प्रेम कहानी
दिलजीत दोसांझ यहां एक ऐसे सिख युवक के रूप में सामने आते हैं, जिसको अपने घरवालों से प्यार है। मोहल्ले वालों में उसकी जान बसती है। उसके दिल का एक कोना कमली के लिए भी धड़कता है। बेरोजगार युवकों को इस देश में प्रेम करने की मनाही है। और, नौकरी मिल भी जाए तो भी अपना प्रेम उन्हें मिल जाएगा, इसकी गारंटी नहीं होती। लड़कियां अपने मन से अपना साथी नहीं चुन पाती हैं और ऐसे में कहीं कोई ऊंच नीच हो जाते तो जिनसे साथ देने की उम्मीद होती है, वही सबसे बड़े दुश्मन नजर आते हैं। लेकिन, चुनौती यहां एक पूरी कौम को बचाने की है। जाहिर है समय कुर्बानी मांगता है। जोगी इसके लिए ही बना है। दोस्त मदद को सामने आते हैं। दुश्मनी के नए चेहरे भी सामने आते हैं।
सभी कलाकारों ने किया है बेहतरीन काम
फिल्म में दिलजीत ने काफी अच्छी एक्टिंग की है. साथ ही फिल्म के बाकी कलाकारों ने भी बेहतरीन काम किया है. इस बार दिलजीत का किरदार दोस्ती के भरोसे, प्यार की उम्मीदों और समाज की जिम्मेदारियों की कसौटियों पर एक साथ कसता नजर आता है. जाति, धर्म, संप्रदाय को एक खास चश्मे से देखने की कोशिश में इस फिल्म ने बहुत ही सजगता से अपनी कहानी कह दी