भारत में रहकर, स्थानीय कॉलेज और यूनिवर्सिटी से अपनी मेडिकल डिग्री पूरी करने की आस लगाए बैठे छात्रों को सरकार और नेशनल मेडिकल कमीशन ने बड़ा झटका दिया है।

रूस और यूक्रेन का युद्ध छिड़ने की वजह से हजारों मेडिकल स्टूडेंट्स भारत लौट आए थे. कोर्स बीच में छूट जाने की वजह से ये छात्र मांग कर रहे हैं कि उन्हें भारत के विश्विविद्यालयों और मेडिकल कॉलेजों में एडमिशनल दिलाया जाए. यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. अब केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि इन स्टूडेंट्स को भारत के कॉलेजों में एडमिशन नहीं दिलाया जा सकता. केंद्र सरकार ने कहा है कि नेशनल मेडिकल कमीशन ऐक्ट इस तरह से एडमिशन की इजाजत नहीं देता.
सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से एफडिवेट जमा किया गया है. स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव ने जो एफिडेविट सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया है उसमें कहा गया है कि इस तरह की छूट देने से देश में मेडिकल शिक्षा का स्तर प्रभावित होगा. दरअसल, आनन-फानन में भारत आने को मजबूर हुए मेडिकल स्टूडेंट्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और इस मामले में दखल देने की मांग की थी.
सरकार ने कोर्ट में बताई एडमिशन न देने की वजह
केंद्र सरकार ने यह भी कहा है कि ये मेडिकल स्टूडेंट विदेश में पढ़ाई करने गए, इसकी दो वजहे हैं. पहली- NEET में इनकी रैंकिंग खराब थी, दूसरी- यूक्रेन जैसे देशों में मेडिकल की पढ़ाई काफी सस्ती है. ऐसे में खराब मेरिट वाले स्टूडेंट्स को मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन देना सही नहीं होगा. इसके अलावा, ये स्टूडेंट भारत के मेडिकल कॉलेजों की फीस भी नहीं चुका पाएंगे.
मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशू धूलिया ने गुरुवार को इस मामले की सुनवाई अगले दिन के लिए टाल दी है. दरअसल, लोकसभा की विदेश मामलों की संसदीय समिति ने अपनी एक रिपोर्ट में स्वास्थ्य मंत्रालय को सुझाव दिया था कि एक बार के अपवाद के रूप में इन छात्रों को एडमिशन दे दिया जाए. इसी रिपोर्ट के भरोसे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है.