कॉफी को पसंद करने वालों की कमी नहीं है, हो सकता है आप भी इसके दीवाने हों. भारत में कॉफी के आने का भी दिलचस्प इतिहास रहा है. विशेषज्ञों के अनुसार कॉफी एक फल है जिसे सुखाने के बाद पीसकर तैयार किया जाता है. आइए जानते हैं कॉफी से जुड़ी कुछ रोचक बातें..

पूरी दुनिया में कच्चे तेल के बाद कॉफी का व्यापार सबसे अधिक होता है. कॉफी ही ऐसा पेय पदार्थ है जो पानी के बाद सबसे ज्यादा पिया जाता है. इसका अर्थ यही है कि कॉफी में कुछ ऐसे तत्व हैं जो मनुष्य के शरीर, उसके मस्तिष्क और उसकी जुबान को बेहद आकर्षित करते हैं. हाल यह रहा है कि कभी धर्माचार्यों ने कॉफी के सेवन को धर्म-विरोधी माना और शराब की तरह इस पर भी प्रतिबंध लगाने का प्रयास किया. लेकिन कॉफी में ऐसी बात थी कि यह सारे ‘बंधनों’ को तोड़कर आज पूरे विश्व में अपने जलवे दिखा रही है. इसकी खोज का इतिहास भी बड़ा रोचक है. गुमनाम से क्षेत्र से निकलकर काफी पूरे विश्व पर राज कर रही है.
कॉफी के मूल स्वाद से निकले कई जानदार स्वाद
कॉफी एक फ्रूट है, जिसे पेड़ से तोड़कर सुखाने के बाद पीसकर तैयार किया जाता है. इसमें ऐसा ‘नशा’ है कि लोगों के अलावा बड़ी कंपनियों ने इसके मूल बीज में अनेक स्वाद भर दिए, लेकिन स्वाद की सनसनी और उत्तेजना कायम रखी. आज पूरे विश्व में ब्लैक कॉफी के अलावा एस्प्रेसों , कैपेचीनो अमेरिकैनो , आईरिश , टर्किश इटेलियन एस्प्रेसो , लात्ते के जलवे हैं. दुनिया के किसी भी एयरपोर्ट या बड़े रेल्वे स्टेशन पहुंचेंगे तो वहां शानदार कॉफी चेन आपका स्वागत करती नजर आएगी, जिनमें सबसे मशहूर नेस्कैफे के अलावा स्टारबक्स, कैफे नीरो, कॉस्टा ग्रेस आदि के आउटलेट शामिल हैं. ऐसा क्या है कॉफी में, जबकि विशेषज्ञ कहते हैं कि कॉफी किसी भी समस्या या बीमारी का इलाज नहीं है, यह सिर्फ उसके बचाव व प्रभाव को कुछ हद तक कम करने में मददगार हो सकती है.
इथियोपिया से निकली कॉफी
पहले कॉफी के इतिहास की बात कर ली जाए. अमेरिका स्थित ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी के वनस्पति विज्ञान व पैथोलॉजी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर व भारतवंशी सुषमा नैथानी ने अपनी हिंदी में लिखी पुस्तक ‘अन्न कहां से आता है’, के अध्याय ‘औपनिवेशक कृषि: बागान कथा’ में कॉफी के इतिहास व उसके प्रसार के बारे में डिटेल जानकारी दी है और बताया है कि किस तरह कॉफी, चाय व गन्ना ने गुलाम प्रथा को मजबूत बनाया. पुस्तक के अनुसार नवीं शताब्दी में इथियोपिया के लोगों ने कॉफी के स्फूर्तिदायक गुणों को सबसे पहले पहचाना. किंवदंती है कि वहां के एक पहाड़ी गांव के ‘कल्दी’ नामक चरवाहे ने अपनी बकरियों को एक झाड़ी के बेर खाने के बाद उन्मत्त होकर उछलते-कूदते देखा. उसने जिज्ञासावश कुछ बेर अपने मुंह में डाले तो उसे ताजगी महसूस हुई और पूरे दिन की थकान मिटती लगी. इस घटना ने पहली बार कॉफी को पहचान दिलाई.
असली शुरुआत यमन से, प्रतिबंध भी लगे
वैसे कॉफी को पीने की शुरुआत 13वीं सदी में यमन में हुई. वहां के सूफियों व धर्मावलंबियों ने इसे भून-पीसकर चूर्ण बनाया और पानी में उबालकर पीना शुरू किया. इसको पीने के बाद उन्हें पढ़ने-लिखने व धार्मिक विमर्श करने में मदद मिलती थी, क्योंकि उन्हें अचानक ही स्फूर्ति मिलने लगती और थकान गायब हो जाती. धीरे-धीरे यह लोकप्रिय हो गई और पूरे अरब में कॉफी हाउस (कहवा घर) खुल गए. वहां आम लोगों के अलावा यात्री, कलाकार, साहित्यकार, धर्मगुरु मिलते और दुनियाभर के विषयों पर बात करते. वहां खूब राजनैतिक बहसें होती. इससे शासन में नाराजगी बढ़ी. बताते हैं कि 16वीं से 17वी सदी के बीच तुर्की, मक्का, मिस्र समेत कई अरब देशों ने इन कहवा घरों पर रोक लगाई, लेकिन ये जितनी तेजी से बंद होते, उतनी तेजी से खुल जाते.
मयखाने से भी बदतर बताए गए कॉफी हाउस
इसी दौरान 17वीं सदी में ही यूरोप के लोगों का कॉफी से परिचय हुआ. तुर्की के राजदूत सुलेमान आगा ने पेरिस के शाही राजदरबार को इसका परिचय करवाया, जो इसका दीवाना हो गया. इस सदी के आखिर तक यूरोप के सभी प्रमुख शहरों में कॉफी हाउस आम हो गए थे. वर्ष 1715 तक लंदन में ही 2000 से ज्यादा कॉफी हाउस खुल चुके थे. ये कॉफी हाउस भी सामाजिक व राजनैतिक बहस के अड्डे बन गए थे. उस दौरान कुछ विद्वानों का मानना था कि कॉफी हाउस मयखानों से भी बदतर होते हैं और वे षड़यंत्र के अड्डे बन सकते हैं. विशेष बात यह है कि चार्ल्स द्वितीय ने साल 1675 में कहा था कि कॉफी हाउस में असंतुष्ट लोग मिलते हैं और सत्ता के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार करते हैं.
भारत में चोरी कर लाए गए कॉफी के बीज
17वीं सदी तक कॉफी की खेती उत्तरी अफ्रीका और अरब देशों में ही होती थी. एकाधिकार को लेकर अरब सौदागर सतर्क रहते थे कि कॉफी उनके देश से बाहर न जाने पाए. वे इसकी खेती व प्रोसेसिंग किसी को नहीं बताते थे. अरब के बाहर सिर्फ उबली या भूनी कॉफी के दाने ही जा सकते थे, ताकि उनके पौधे नहीं उगाए जा सकें. विदेशियों को कॉफी फार्म देखने की इजाजत नहीं थी. बताते हैं कि 1600 के आसपास सूफी हजयात्री बाबा बुदान पहली बार अरब से कॉफी के सात बीज चुराकर लाने में सफल हुए. उन्होंने दक्षिण भारत के मैसूर में कॉफी को पहली बार उगाया. वर्ष 1616 में एक डच जासूस ने अरब से कॉफी के बीज चुराए, जिनसे डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने जावा, सुमात्रा, बाली, श्रीलंका, सूरीनाम में कॉफी के बागान शुरू किए. इन बागानों में वहां के मूल निवासियों को दास बनाकर काम करवाया गया और उनका भरपूर शोषण हुआ. यही वह समय था, जब कॉफी पूरे विश्व के पटल पर नजर आने लगी.