चीन के असीमित सहयोगी रूस के यूक्रेन युद्ध में फंसने के साथ, भारत को भविष्य में मास्को से अपनी सैन्य हार्डवेयर आपूर्ति श्रृंखला में किसी भी व्यवधान को रोकने के लिए विकल्पों की जांच करने की आवश्यकता है क्योंकि यह एलएसी के पार पीएलए से बढ़ते खतरे का सामना कर रहा है।

पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील के पास चीन की तरफ से दूसरा पुल बनाए जाने की खबरों के बीच भारतीय विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया आई है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने 19 मई को कहा कि जिस इलाके में निर्माण कार्य की बात कही जा रही है, वो दशकों से चीन के कब्जे में है.
उन्होंने कहा कि भारत ऐसे घटनाक्रमों पर कड़ी नजर रखता है. बागची ने यह भी कहा कि मीडिया रिपोर्ट्स में जिस कथित पुल की बात कही जा रही है, उसके बारे में यह साफ नहीं है कि ये दूसरा पुल है या फिर पहले से ही मौजूद पुल का विस्तार किया जा रहा है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने आगे कहा कि इस साल मार्च में चीन के विदेश मंत्री वांग यी भारत आए थे और हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर ने उन्हें हमारी अपेक्षाओं के बारे में बता दिया था. बागची ने बताया कि इस मुलाकात के बाद भारतीय विदेश मंत्री ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा था कि पूर्वी लद्दाख में अप्रैल 2020 में चीन की तरफ से सैन्य तैनाती की वजह से तनाव और संघर्ष की स्थिति पैदा हुई और दोनों देशों के बीच सामान्य स्थिति बहाल नहीं हो सकी. अरिंदम बागची ने यह भी कहा कि भारत चीन के साथ राजनयिक और सैन्य स्तर पर संवाद जारी रखेगा.
सैटेलाइट तस्वीरों से ‘खुलासा’
इससे पहले मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सैटेलाइट तस्वीरों के जरिए पता चला था कि चीन की सेना पैंगोग त्सो झील के अपने तरफ वाले इलाके में एक और पुल बना रही है ताकि सैन्य गतिविधियों को तेज किया जा सके. रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये नया पुल फिंगर 8 तक चीन की सैन्य गतिविधियों को आसान कर देगा.
बताया जा रहा है कि ये पुल जुलाई तक पूरा हो जाएगा. इसका निर्माण पूरा हो जाने पर खुर्नाक फोर्ट और रुटोग के बीच की दूरी उल्लेखनीय तौर पर कम हो जाएगी. ये दोनों ही इलाके चीन की सेन्य गतिविधियों के लिए काफी जरूरी हैं. अभी इनके बीच की दूरी लगभग 180 किलोमीटर है.
इससे पहले खबर आई थी कि चीन ने इस साल जनवरी और अप्रैल के बीच इसी इलाके में एक और पुल का निर्माण किया था. इस पुल के जरिए भी बख्तरबंद गाड़ियों को इधर से उधर भेजा जा सकता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारतीय सेना के अधिकारियों का कहना है कि इन खबरों से यही संकेत मिल रहा है कि चीन पीछे हटने को तैयार नहीं है और LOC की ही तरह भारत को पूर्वी लद्दाख में LAC पर भी सैनिकों की स्थाई तैनाती करनी होगी.
कांग्रेस का निशाना
इधर इन खबरों के बीच कांग्रेस पार्टी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा. पार्टी के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट करते हुए कहा कि चीन की तरफ से पैंगोग झील पर दूसरा पुल बनाए जाने को लेकर इस तरह की कमजोर प्रतिक्रिया हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खुले तौर पर समझौता करना है. सुरजेवाला ने आगे लिखा कि चीन हमारी क्षेत्रीय अखंडता का लगातार उल्लंघन कर रहा है और आत्मविश्वास खो चुकी मोदी सरकार हमारे इलाके लगातार चीन को सौंपती जा रही है. यह निंदनीय है. एक सप्ताह पहले आर्मी चीफ जनरल मनोज पांडे ने पूर्वी लद्दाख में फॉरवर्ड इलाकों का दौरा किया था. उन्होंने कहा था कि भारत इलाके में शांति और स्थिरता को बनाए रखना चाहता है. हालांकि, यह एकतरफा नहीं हो सकता. भारत और चीन के बीच मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में खूनी टकराव हुआ था. फिलहाल LAC पर दोनों पक्षों ने 50 से 60 हजार सैनिकों की तैनाती कर रखी है.
पूर्वी लद्दाख में क्यों है तनाव?
भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में तनाव को दो साल से ज्यादा गुजर गए हैं. जून 2020 में पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी के पास दोनों देशों की सेनाओं के बीच हिंसक झड़प भी हुई थी. तनाव कम करने के लिए दोनों देशों के बीच 15 दौर की बातचीत भी हो चुकी है, लेकिन अब भी मसला पूरी तरह शांत नहीं हुआ है. बताया जाता है कि अब भी LAC पर दोनों देशों के 50 से 60 हजार सैनिक तैनात हैं.
पूर्वी लद्दाख में कम से कम 12 जगहों पर दोनों देशों के बीच विवाद होने की बात कही जाती है. इन्हीं विवादित इलाकों में से एक पैंगॉन्ग त्सो को लेकर भी है. ये झील करीब 4,270 मीटर की ऊंचाई पर है. इसकी लंबाई 135 किमी है. इसका पूरा क्षेत्र 60 वर्ग किमी का है. इस झील के दो-तिहाई हिस्से पर चीन का कब्जा है. भारत के पास 45 किमी का हिस्सा आता है.