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वायु प्रदूषण से ऐसे होती हैं साइनस, स्ट्रोक और फेफड़ों की बीमारियां

डॉक्टरों का कहना है कि हवा की गुणवत्ता बिगड़ने पर उन रोगियों को सावधान रहने की जरूरत है, जो पहले से ही फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहे हैं. अगर ये लोग प्रदूषित वातावरण में रहेंगे, तो इनकी सेहत बिगड़ सकती है.

भारत के प्रदूषण लेवल में बढ़ोतरी हुई है. रिपोर्ट में भारत को PM 2.5 (μg/m³) पर 58.1 के साथ पांचवां स्थान दिया गया है. यह स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय स्तरों का 10 गुना है. जब हवा की बात आती है, तो भारत का वार्षिक PM औसत 2.5 है, जो कि 2019 में क्वॉरंटीन-टाइम से पहले मापे गए लेवल में लौट आया है .वायु प्रदूषण का  स्वास्थ्य पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है. यह बीमारियों का दूसरा सबसे बड़ा कारण है. वायु प्रदूषण से निपटने में सालाना 150 अरब डॉलर से अधिक लागत का अनुमान है.  देश में वायु प्रदूषण के मुख्य कारण वाहनों से निकलने वाले हानिकारक पदार्थ, बिजली निर्माण, फैक्ट्रियों का धुआं, कंस्ट्रक्शन, खाना पकाने के लिए बायोमास जलाना और फसल जलाना है.

इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. राजेश चावला ने टीवी 9 को बताया कि वायु प्रदूषण से होने वाली कोई भी स्वास्थ्य समस्या कम समय में असर नहीं करती. वायु प्रदूषण का लोगों के स्वास्थ्य पर लंबे समय में प्रभाव पड़ता है. यह एक धीमी जहर की तरह है और शरीर में धीरे-धीरे बढ़ता है. यदि वायु प्रदूषण का प्रभाव तत्काल होता तो हम शुरुआती चरण में ही इससे निपट सकते थे. यह एक ना दिखने वाले दुश्मन की तरह है, बिना किसी को खबर दिए शरीर को नुकसान पहुंचाता रहता है. किसी भी व्यक्ति को तब तक पता नहीं चलेगा की खराब हवा उसके जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रही है, जब तक कि यह उसके रोजमर्रा के कामों में बाधा न डालने लगे और उसकी कार्य शक्ति कम न हो जाए.”

वायु प्रदूषण से जुड़ी सामान्य बीमारियां कौन सी हैं?

सालों से लोगों में देखे जाने वाली कुछ सामान्य बीमारियों में साइनोसाइटिस, स्ट्रोक की आशंका में बढ़त, बार-बार होने वाली एलर्जी, फेफड़ों में संक्रमण, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज  शामिल हैं. डॉ. चावला ने कहा “स्ट्रोक, ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और एलर्जी जैसी कुछ बीमारी लंबे समय के बाद दिखाई देती हैं. तत्काल समस्या केवल दमा  के रोगियों को होती है. जब हवा की गुणवत्ता बिगड़ती है, तो जिन रोगियों को पहले से ही फेफड़ों की बीमारी है, उन्हें सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि यह बीमारी को बढ़ा सकता है. बहुत से दमा के रोगी हैं जिन्हें हम दिल्ली जैसी जगहों पर खराब वायु गुणवत्ता के कारण ठीक नहीं कर पा रहे हैं. यही व्यक्ति जब अमेरिका जाता है तो वह ठीक हो जाता है. तो हां, वायु प्रदूषण यहां के लोगों की कार्य क्षमता को प्रभावित कर रहा है.”

वायु प्रदूषण से बिगड़ रही दमा के मरीजों की हालत

राजधानी के शालीमार बाग में फोर्टिस अस्पताल के आंतरिक चिकित्सा निदेशक डॉ संजय गोगिया ने कहा, “अगर हम विशेष रूप से वायु प्रदूषण के बारे में बात करते हैं, तो लोगों में सांस संबंधी समस्याएं विकसित हो रही हैं यानी कि फेफड़ों से संबंधित बीमारियां. इसका मतलब है कि रोगियों को सांस की तकलीफ अधिक होती है. वायु प्रदूषण बढ़ने के साथ ही दमा और सीओपीडी के मरीजों की हालत बिगड़ती जाती है.”

गोगिया ने एक गंभीर बात बताई कि “क्रॉनिक साइनोसाइटिस के मरीज अस्पताल वापस आ रहे हैं क्योंकि उन्हें बार-बार परेशानी होती है. वायु प्रदूषण हृदय रोगों और फेफड़ों के कैंसर से भी जुड़ा हुआ है. नवजात शिशुओं में भी कुछ विकास संबंधी समस्याएं हो सकती हैं.”

बिगड़ती वायु गुणवत्ता से बच्चे कैसे प्रभावित होते हैं?

जैन मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ प्रियम मिश्रा ने कहा कि खराब वायु गुणवत्ता बच्चों में स्वास्थ्य समस्याओं का एक प्रमुख कारण है. “वायु प्रदूषण भ्रूण को प्रभावित कर रहा है और जीवन भर ऐसा करना जारी रखता है. हमने सांस तंत्र के निचले हिस्से में संक्रमण, एलर्जी, आस्थमा, ब्रॉन्काइटिस के मामलों बढ़त देखी है. बच्चों की अस्पताल में भर्ती भी बढ़ रही है. वायु प्रदूषण खराब सोचने समझने और याद रखने जैसे संज्ञानात्मक कार्य को भी प्रभावित करता है. इससे लोगों में एडीएचडी में बढ़ रही है और विकास भी प्रभावित हो रहा है.”

उन्होंने कहा कि इससे मधुमेह, हृदय रोग और त्वचा की एलर्जी का खतरा बढ़ जाता है. “हमें निश्चित रूप से चिंतित होने की जरूरत है क्योंकि इससे हमारे बच्चों को खतरा है , हम उन्हें सांस लेने के लिए साफ हवा नहीं दे सकते हैं.”

क्या वायु की खराब गुणवत्ता के कारण कोई अन्य अंग प्रभावित होते हैं?

खराब एयर क्वॉलिटी देश में कैंसर के बढ़ने के लिए भी जिम्मेदार है. राजधानी में इंस्टीट्यूट ऑफ पैथोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ सौरभ वर्मा ने टीवी9 को बताया कि वायु प्रदूषण निश्चित रूप से फेफड़ों के कैंसर में योगदान देता है. “हमारे आस-पास कुछ भी शुद्ध नहीं है. हवा दूषित है और भोजन दूषित है. ताजे दिखने वाले फलों और सब्जियों में रसायन होते हैं, सफेद और ताजा दिखने वाली फूलगोभी को कॉपर सल्फेट से धोया जाता है, ये सभी कैंसर को जन्म देते हैं. जबकि इस मामले में चिकित्सा में बहुत शोध और प्रगति हुई है और सर्जरी करने के नए तरीके ढूंढे गए हैं, पर दुख की बात है कि बीमारियों की संख्या केवल बढ़ती जा रही है.”

यह कितनी चिंताजनक बात है कि कोई भी भारतीय शहर WHO द्वारा निर्धारित मानकों को पूरा नहीं कर पा रहा है. डॉ. गोगिया ने निष्कर्ष में कहा कि “आज हालात सच में चिंताजनक हैं. हम अखबारों में पढ़ते हैं कि भारत की वायु गुणवत्ता खराब हो रही है. ऐसे दस्तावेज मौजूद हैं जो स्वास्थ्य की परेशानियों को सीधे वायु प्रदूषण से जोड़ते हैं. हम सभी जानते हैं कि प्रदूषण हमारी जीवनशैली और स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है लेकिन अब भी अगर हम किसी ऐसे आंकड़े का इंतजार करते रहे जो साफ तौर पर इसके लिए प्रदूषण को ही जिम्मेदार ठहराता हो तो समझिए कि हम इस लड़ाई को लड़ने से पहले ही हार चुके हैं. इसलिए स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करने के लिए हम सभी को अपनी जिम्मेदारी उठानी होगी.”

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Pooja Pandey

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