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पोलियो की ओरल वैक्सीन से बच्चों को हो सकता है लकवा: डॉ. जैकब जॉन

डॉ. जैकब जॉन का कहना है कि भारत में पोलियो की इनएक्टिवेटेड वैक्सीन के स्थान पर ओरल वैक्सीन का इस्तेमाल किया जाता है. जबकि विकसित देशों में ओरल वैक्सीन का प्रयोग नहीं होता है.

भारत के शीर्ष वायरोलॉजिस्ट डॉ. टी जैकब जॉन का कहना है कि पोलियो  की ओरल वैक्सीन इनएक्टिवेटेड पोलियो वैक्सीन  की तुलना में कम प्रभावी होती है. उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन  34 सालों से पोलियो को जड़ से मिटाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अभी तक सफल नहीं हुआ है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में घोषणा की है कि पोलियो को मिटाने का उनका लक्ष्य बढ़ाकर अब 2026 कर दिया गया है. डॉ जॉन ने कहा कि अल्बर्ट साबिन द्वारा डोनेट किए गए ओपीवी का मालिकाना हक विश्व स्वास्थ्य संगठन के पास है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए ओपीवी का फायदा यह है कि वे इसकी क्वॉलिटी और लाइसेंस को कंट्रोल कर सकते हैं.

दूसरी ओर आइपीवी एक फ्री-मार्केट वैक्सीन है. सभी अमीर देश केवल आइपीवी का इस्तेमाल करते हैं. सोचिए, वे बहुत सस्ते ओपीवी की तुलना में आइपीवी के लिए ज्यादा भुगतान करने को तैयार क्यों हैं? क्योंकि उन्होंने महसूस किया है कि ओपीवी वैक्सीन लकवा का कारण बन सकती है. वहीं, दूसरी तरफ आइपीवी पूरी तरह से सुरक्षित है. ये देश नहीं चाहते कि उनके बच्चे कभी भी ओपीवी की वजह से लकवाग्रस्त हों. लेकिन, भारत जैसे विकासशील देश अभी भी ओपीवी (टाइप- III पोलियो के लिए) का इस्तेमाल करते हैं. डॉ. जॉन ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ‘वाइल्ड पोलियो वायरस’ को पोलियो के रूप में परिभाषित करती है, जबकि ‘वैक्सीन-डिराइव्ड वायरस’ को पोलिया के बदले ‘वैक्सीन का एडवर्स रिएक्शन’ बताती है. जॉन ने समझाया कि, “ विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि उनकी जिम्मेदारी वाइल्ड वायरस पोलियो को खत्म करना है. टीके से प्रेरित वायरस को खत्म करना नहीं.”

भारत में अभी भी पोलियो के कुछ मामले हैं जिनकी रिपोर्ट नहीं की जा रही है.

डॉ जॉन ने कहा कि हम पूरी तरह से पोलियो उन्मूलन पर गर्व नहीं कर सकते. उन्होंने कहा, “हमारे यहां अभी भी पोलियो से जुड़े कुछ मामले आते हैं, लेकिन इन्हें मीडिया के सामने नहीं आने दिया जाता है.” हम अभी भी इंजेक्टेबल वैक्सीन की जगह ओरल पोलियो वैक्सीन का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसे विकसित देशों ने बहुत पहले ही रद्द कर दिया है. उन्होंने कहा, “भारत बायोटेक को जल्द ही आइपीवी का निर्माण करना चाहिए और बाजारों को इससे भर देना चाहिए. जापान, दक्षिण कोरिया, स्वीडन, ब्रुनेई, ताइवान, मलेशिया, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका जैसे देश केवल आइपीवी का इस्तेमाल करते हैं. वे अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए ओपीवी को अपनी सीमाओं में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देते हैं. क्योंकि वे ओपीवी के जरिए टीके से प्रेरित पोलियो के खतरों के बारे में जानते हैं.”

गरीब देशों को स्ट्रैंड लेने की जरूरत

डॉ. ने कहा कि गरीब देशों को ओरल पोलियो वैक्सीन के खिलाफ एक स्टैंड लेने की जरूरत है. डॉ जॉन ने समझाया, “हाल ही में, पाकिस्तान में 100 से अधिक ओपीवी कर्मचारियों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, एक पूरे अस्पताल को जला दिया गया क्योंकि वे ओरल पोलियो वैक्सीन ऑफर कर रहे थे. उन्हें आइपीवी से कोई आपत्ति नहीं है, वे ओपीवी को न कह रहे हैं. वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन इस बात पर अड़ा है कि वे आइपीवी नहीं देंगे. इसलिए, पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम अब भी जारी है.”

पोलियो को मिटाने की तारीख बदलती रहती है

उन्होंने कहा कि पहले पोलियो उन्मूलन का लक्ष्य 2000 था. तब से विश्व स्वास्थ्य संगठन पोलियो उन्मूलन के लिए एक अरब डॉलर सालाना खर्च कर रहा है, ज्यादातर टाइप- I के लिए. उन्होंने कहा “इजराइल में एक टीकारहित बच्चे में टीका से प्रेरित पोलियो वायरस टाइप 3 की पुष्टि हुई थी. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दो तथ्यों को जानते हुए भी, 2012 में इसके समाप्त होने के बाद भी, वाइल्ड टाइप- III टीका देना बंद नहीं किया था. पहला यह कि सबिन टाइप- III वैक्सीन वायरस, वैक्सीन वायरस से प्रेरित पोलियो का सबसे आम कारण है. वाइल्ड टाइप- III के उन्मूलन के बाद भी इसे न रोकना अनैतिक था. दूसरा, टाइप- III वैक्सीन देने की कोई आवश्यकता नहीं थी, लेकिन यह क्यों दिया जा रहा है मुझे नहीं पता.”

उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1999 में टाइप-II के समाप्त होने के बाद भी टाइप-II पोलियो वैक्सीन को देना नहीं रोका. डॉ जॉन ने कहा “इस तरह के पोलियो का आखिरी मामला उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में देखा गया था. मैंने विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ इसे रोक देने के लिए विनती की और अपनी बात रखने के लिए बहस भी की. लेकिन उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी. चौदह साल बाद, 2014 में, उन्होंने टाइप- II पोलियो वैक्सीन को खत्म करने का फैसला किया. 2016 में टाइप -1 प्लस टाइप- III देना शुरू किया गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि टाइप- II पोलियो भी गायब हो जाएगा, यह एक मैथमेटिकल मोड पर आधारित था. मैंने विश्व स्वास्थ्य संगठन से कहा कि यह निष्क्रिय रहेगा और फिर से वापस आ जाएगा और 2020 में ऐसा हुआ भी – 25 अफ्रीकी देश वैक्सीन-प्रेरित पोलियो वायरस से ग्रस्त हैं.”

पोलियो श्वसन संक्रमण है जो मल-मौखिक मार्ग से नहीं फैलता

डॉ जॉन ने यह भी कहा कि पोलियो कोविड की तरह ही एक श्वसन के जरिए फैलने वाला संक्रमण है और यह faecal-oral route (मल-मौखिक मार्ग) से नहीं फैलता है. उन्होंने कहा कि “दुनिया को यह कहकर गुमराह किया गया है कि पोलियो मल-मौखिक मार्ग से फैलता है.” डॉ जॉन ने कहा, “लेकिन यह साबित करने के लिए उनके पास कोई प्रमाण नहीं है. यह कोविड की तरह ही एक श्वसन संक्रमण है. कोविड नाक, गले और फेफड़ों में संक्रमण का कारण बनता है, पोलियो आंत में संक्रमण का कारण बनता है और रीढ़ की हड्डी में पहुंच जाता है. आज अफ्रीका में अमीर और गरीब के बीच विभाजन के कारण सैकड़ों बच्चे लकवाग्रस्त हो रहे हैं. किसी को यह जानने के लिए महामारी विज्ञान और नैतिकता को समझना होगा कि कब बेनिफिट-रिस्क रेश्यो स्वीकार्य से अस्वीकार्य हो जाता है. फिनलैंड या स्वीडन को देखें स्वीडन ने अपने क्षेत्र में ओपीवी की एक बूंद को भी अंदर आने की इजाजत नहीं दी. आइपीवी पर कभी भी किसी प्रतिकूल प्रतिक्रिया का आरोप नहीं लगा है. स्वच्छता के जरिए दुनिया में कहीं भी पोलियो को नियंत्रित नहीं किया गया है.”

जागरूकता जरूरी है

डॉ जॉन ने  कहा कि उन्होंने पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम में समानता, नैतिकता और विज्ञान लाने के लिए एक विस्तृत रोडमैप तैयार किया है. पोलियो उन्मूलन के सबसे बड़े और सबसे महत्वाकांक्षी सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के चलते असमानता को बल मिला. डॉ जॉन ने अपने निष्कर्ष में कहा, “सार्वजनिक स्वास्थ्य का पर्याय समानता है. फायदे और जोखिम समान रूप से साझा किए जाने चाहिए. सार्वजनिक स्वास्थ्य का मतलब यही है. लेकिन पोलियो उन्मूलन में, अमीर और गरीब देशों के बीच विभाजन को बल दिया गया है.”

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Pooja Pandey

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