उत्तर प्रदेश और मणिपुर में स्थिति साफ है, वहां योगी आदित्यनाथ और एन बीरेन सिंह ही एक बार फिर मुख्यमंत्री की शपथ लेंगे. लेकिन गोवा और उत्तराखंड में मामला उलझ गया है. एक तरफ जहां पुष्कर सिंह धामी की मुश्किलें इसलिए बढ़ी हैं कि वह खुद चुनाव हार गए हैं, तो दूसरी ओर प्रमोद सांवत की राह में यशवंत राणे हैं.

मुख्यमंत्रियों के नाम पर पिछले पांच दिनों से चल रहे रहस्य से अब पर्दा उठने वाला है. 10 मार्च को पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद से अटकलों का बाज़ार गर्म था, खासकर गोवा और उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों के चयन पर. जहां भगवंत मान कल पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले हैं, इसमें कोई संशय नहीं था कि उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ और मणिपुर में एन बीरेन सिंह एक बार फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे, मामला गोवा और उत्तराखंड में कहीं अटकता दिख रहा था. वैसे बीजेपी ने चारों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में जनता के सामने पेश किया था, पर उत्तराखंड में पिछले वर्ष हुए पश्चिम बंगाल चुनाव की पुनरावृति हुई.
जैसे पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की जीत हुई पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद चुनाव हार गईं, ठीक उसी तरह उत्तराखंड में बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए. गोवा में मुख्यमंत्री पद पर रहस्य का काला बादल पिछले शनिवार से मंडराता दिख रहा था जब स्वास्थ मंत्री विश्वजीत राणे राज्यपाल पी एस श्रीधरन पिल्लै से मिलने राजभवन पहुंचे. राणे 2014 में कांग्रेस पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हुए थे और 2019 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर के निधन के बाद से ही उनकी नज़र मुख्यमंत्री की कुर्सी पर टिकी थी, पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने प्रमोद सावंत को राणे के ऊपर प्राथमिकता दी. राज्यपाल से मिलने के बाद राणे ने कहा कि उनकी मुलाकात शिष्टाचार के नाते हुई थी और वह राज्यपाल को अपने चुनाव क्षेत्र वालपई आने का निमंत्रण देने गए थे.
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के नाम पर मामला उलझ गया है
बीजेपी ने कल आख़िरकार चार राज्यों में मुख्यमंत्री पद के चयन की प्रक्रिया शुरू की और सभी चार राज्यों के लिए केन्द्रीय पर्यवेक्षक और सह-पर्यवेक्षक के नामों की घोषणा हुई. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास उत्तर प्रदेश में, केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह और मिनाक्षी लेखी उत्तराखंड में, निर्मला सीतारमण और किरण रिजीजू मणिपुर में तथा नरेन्द्र सिंह तोमर और एल मुरुगन गोवा में पर्यवेक्षक और सह-पर्यवेक्षक नियुक्त किए गए. यह मान कर चलना चहिए कि बीजेपी आलाकमान ने मुख्यमंत्रियों का चयन कर लिया है और केंद्रीय पर्यवेक्षों की टीम बीजेपी विधायक दल की बैठक में उन नामों पर सिर्फ संवैधानिकता की मुहर लगाने का काम करेगी.
2017 के चुनाव में परिणाम 11 मार्च को आया था. जहां उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में बीजेपी को दो-तिहाई बहुमत मिला था त्रिवेन्द्र सिंह रावत तथा योगी आदित्यनाथ ने क्रमशः 18 और 19 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, बीजेपी ने गोवा और मणिपुर में जहां पार्टी ने जोड़-तोड़ की बदौलत त्रिशंकु विधासभा में कांग्रेस पार्टी से पीछे रहने के बावजूद सरकार का गठन किया था, बिना समय गवाए सरकार बना ली थी. गोवा में 14 मार्च और मणिपुर में 15 मार्च को मनोहर पर्रीकर और एन बीरेन सिंह ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. पर चूंकि इस बार बीजेपी को मणिपुर में पूर्ण बहुमत मिला है और गोवा में 40 सीटों वाली विधानसभा में 20 सीटों पर जीत, यानि बहुतमत से सिर्फ एक सीट कम, बीजेपी को कोई जल्दीबाजी नहीं थी.
राज्यों में मुख्यमंत्री कौन होगा इसका फैसला पीएम मोदी करते हैं
गोवा में महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी जिसके दो विधायक चुने गए हैं और तीन निर्दलीय विधायकों ने बीजेपी को अपना समर्थन देने की घोषणा की है, और पार्टी के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या है. गोवा में एक संवैधानिक संकट सामने आ रहा था. कल नवनिर्वाचित विधानसभा का पहला सत्र शुरू होने वला है और पहले दिन चुने हुए प्रतिनिधियों को विधायक के रूप में शपथ दिलाई जाएगी, लगने लगा था कि विधानसभा में प्रमुख दल के नेता के बारे में कोई जानकारी नहीं होगी. अब उम्मीद की जा रही है कि शायद ऐसा नहीं होगा और सदन को पता होगा कि उनका नेता कौन होगा.
जब पार्टी को इसी प्रक्रिया से गुजरना था तो फिर पांच दिनों की देरी क्यों हुई यह समझ से परे है, क्योंकि यह सर्वविदित है कि बीजेपी में किसी राज्य का मुख्यमंत्री कौन होगा इसका फैसला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करते हैं, जिसमें वह अपने करीबी अमित शाह से सलाह लेते हैं. जनता कि चाहत होती है कि चुनाव के बाद जल्द से जल्द सरकार का गठन हो, वह जान सकें कि क्या उनका विधायक मंत्री बना है और फिर नवगठित सरकार चुनावी वादों को पूरा करने की कार्यवाही यथाशीघ्र शुरू करे. उम्मीद यही की जानी चाहिए कि इन चारों राज्यों में इस दिशा में अब बिना और समय गवाए काम शुरू कर देगी.