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गुरुग्राम के हादसे ने उड़ाई ऊंची-ऊंची बिल्डिंग्स में रहने वालों की नींद, जानें कंस्ट्रक्शन की क्वालिटी के साथ कैसे खेल कर जाते हैं घोटालेबाज बिल्डर

कुछ बिल्डर घपलेबाजी करते हैं। अथॉरिटीज को दिखाने के लिए घपलेबाज बिल्डर ग्राउंड फ्लोर या फिर फर्स्ट फ्लोर के लेंटर, प्लास्टर या दीवार का मैटेरियल टेस्टिंग के लिए लैब में भेज देते हैं

​क्या बताई जा रही हादसे की वजह

चार साल पहले यह टावर बनकर तैयार हुआ था। परिसर में तीन अन्य टावर हैं। 18 मंजिला टावर डी में चार बेडरूम के अपार्टमेंट हैं। आवास परिसर प्रबंधन ने इस बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिए मरम्मत के दौरान लापरवाही को जिम्मेदार बताया है। सोसायटी के लोग बिल्डिंग की क्वालिटी पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि कॉलोनी के 4 रिहायशी टावर का स्ट्रक्चर ऑडिट हुआ था लेकिन उसमें यह टावर शामिल नहीं था। पिछले साल भी 21 जुलाई को यहां एच टावर में एक फ्लैट का छज्जा गिर गया था। शिकायत भी हुई लेकिन डिवेलपर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।

देश में मौजूद है नेशनल बिल्डिंग कोड

एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में नेशनल बिल्डिंग कोड, कंस्ट्रक्शन एक्टिविटी में सेफ्टी को रेगुलेट करता है। अगर कोई बिल्डिंग इसके प्रावधानों के अनुपालन में असफल होती है तो बिल्डर को सजा का भी प्रावधान है। कुछ मामलों में अप्रूवल वापस लिया जा सकता है।

कैसे खेल कर जाते हैं घोटालेबाज बिल्डर

किसी भी बिल्डिंग के कंस्ट्रक्शन के दौरान लेंटर कितना मजबूत है, इसका क्वालिटी चेक होना चाहिए। इसके लिए देश में लैब्स भी हैं, जहां लेंटर के कॉन्क्रीट का सैंपल टेस्ट होता है। भारत में लैब और प्रावधान है तो सही लेकिन यह अनिवार्य रूप से सभी बिल्डर द्वारा फॉलो नहीं किया जाता है। कुछ बिल्डर घपलेबाजी करते हैं। अथॉरिटीज को दिखाने के लिए घपलेबाज बिल्डर ग्राउंड फ्लोर या फिर फर्स्ट फ्लोर के लेंटर, प्लास्टर या दीवार का मैटेरियल टेस्टिंग के लिए लैब में भेज देते हैं। इसके आधार पर सब कुछ ठीक होने की रिपोर्ट मिल जाती है लेकिन बिल्डर खेल यहां करते हैं कि पैसा बचाने के लिए बाकी फ्लोर्स के लिए उतना मजबूत कंस्ट्रक्शन मैटेरियल नहीं होता है। लेकिन लैब रिपोर्ट को दिखाकर यह साबित कर देते हैं कि पूरी की पूरी बिल्डिंग ही मजबूत है। फ्लैट्स और बिल्डिंग की बाहरी फर्निशिंग को देखकर लगता है कि अंदर से भी ये मजबूत होंगे। एक बार जब बिल्डिंग बनकर तैयार हो जाती है तो फिर क्वालिटी चेक के नाम पर कोई भी फ्लैट खरीदार छत या दीवार तो नहीं तुड़वा नहीं पाता।

रेडी टू मूव प्रॉपर्टी में ज्यादा रहता है जोखिम

रेडी टू मूव प्रॉपर्टी, पहले से तैयार यूनिट होती हैं। लिहाजा अगर वे एक बार पूरी तरह तैयार हो गईं तो उनकी कंस्ट्रक्शन क्वालिटी को लेकर बदलाव नहीं किया जा सकता। अगर आप किसी अंडर कंस्ट्रक्शन टावर में फ्लैट खरीद रहे हैं तो किसी एक्सपर्ट को साइट पर साथ ले जाकर बिल्डिंग की क्वालिटी को लेकर पड़ताल की जा सकती है। कंस्ट्रक्शन में इस्तेमाल होने वाले मैटेरियल की जांच की जा सकती है। अगर तैयार बिल्डिंग में फ्लैट ले रहे हैं तो क्वालिटी एश्योरेंस और क्वालिटी कंट्रोल टीम के साथ जांच की जा सकती है.

फ्लैट लेते वक्त किन बातों का रखें ध्यान

  • बिल्डर की हिस्ट्री जरूर चेक करें। वह रियल एस्टेट लाइन में कितने सालों से है, उसके प्रॉजेक्ट को लेकर कितना भरोसा किया जा सकता है।
  • अपार्टमेंट की बिल्डिंग का ग्राउंड लेवल और आसपास की जमीन के बारे में जांच कर लें। कहीं पानी भरने की कोई समस्या तो नहीं है, बिल्डिंग जिस जमीन पर है, वह गीली मिट्टी तो नहीं है आदि। मिट्टी की जांच की कॉपी मांग सकते हैं।
  • प्रॉजेक्ट को सभी संबंधित विभागों से मंजूरी मिली है या नहीं।
  • बिल्डिंग की जमीन किसी मुकदमे के तहत तो नहीं आती या फिर प्रॉजेक्ट अवैध निर्माण तो नहीं है।
  • फ्लैट बुक करने से पहले स्ट्रक्चर सर्टिफिकेट की कॉपी मांगें, जो इंजीनियर तैयार करता है।


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Pooja Pandey

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