रूस और यूक्रेन के बीच जंग होती है तो इस तबाही का असर दुनिया के कई देशों पर पड़ेगा। किसी मुल्क में महंगाई बढ़ेगी तो कहीं लोगों की थाली में दो वक्त की रोटी भी मुश्किल हो जाएगी। इसकी एक मुख्य वजह यह है कि रूस दुनिया में गेहूं का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है और यूक्रेन इस मामले में 5वें स्थान पर है।

रूस-यूक्रेन संकट पर चीन साफतौर पर कुछ भी बोलने से बच रहा है. एक तरफ वो ‘सुरक्षा’ और नाटो के खतरे का जिक्र करते हुए रूस का समर्थन कर रहा है, तो दूसरी तरफ यूक्रेन का जिक्र करते हुए स्वतंत्रता और संप्रभुता की रक्षा के गीत गा रहा है. ऐसे में वो किसकी तरफ है, इसपर संशय बना हुआ है. लेकिन अब चीनी मीडिया ने ही गलती से अपने देश की पोल खोल दी है. चीन ऐसा क्यों कर रहा है, इसके पीछे की वजह कुछ और नहीं बल्कि ताइवान ही है.एक चीनी आउटलेट ने रूस-यूक्रेन कवरेज पर अपने खुद के सेंसरशिप निर्देशों को गलती से लीक कर दिया है. एक रिपोर्ट में ये दावा किया गया है. इससे चीन की चालाकी सीमने आ गई है. इससे पता चला है कि चीनी मीडिया को निर्देश है, ‘अमेरिका और चीन को बिना नाराज किए, रूस के साथ भावनात्मक और नैतिक सपोर्ट बनाए रखें.’ इससे ताइवान पर कब्जे की मंशा का भी पता चला है. निर्देशों में कहा गया है, ‘ध्यान रखें भविष्य में ताइवान मामले पर अमेरिका से टकराने के लिए चीन को रूस की जरुरत पड़ेगी.’
न्यूज आउटलेट ने सोशल मीडिया पर की पोस्ट
रूसी-यूक्रेन संघर्ष पर रिपोर्ट और टिप्पणियों के प्रसार के लिए विस्तृत सेंसरशिप निर्देश, गलती से लीक हो गए
शिमियन अकाउंट (बीजिंग न्यूज)।
*रेन ज़िनयांग,संभवतः, पीपुल्स डेली, सिन्हुआ एजेंसी और सीसीटीवी को संदर्भित करता है
सरकारी पोर्टल से लीक हुए निर्देश
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीजिंग न्यूज की हॉरिजन न्यूज वेबसाइट ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए ये निर्देश गलती से लीक किए हैं. ये पोस्ट मंगलवार को चीन के ट्विटर जैसे प्लैटफॉर्म वीबो पर किया गया है. हालांकि पोस्ट को बाद में डिलीट कर दिया गया. वाशिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट में ये जानकारी सामने आई है. बता दें चीन ने हाल के वर्षों में रूस के साथ अपने रिश्ते को मजबूत किया है और दोनों देश तेजी से सक्रिय आर्थिक पार्टनर भी बन गए हैं. कार्नेगी मॉस्को सेंटर थिंक टैंक के अनुसार, चीन और रूस के बीच व्यापार 2004 में 10.7 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2021 तक 140 बिलियन डॉलर हो गया है.
चीन में मीडिया को स्वतंत्रता नहीं
चीन ने प्रेस की स्वतंत्रता का पूरी तरह गला घोंट दिया है. यहां न्यूज आउटलेट सरकारी हस्तक्षेप के बिना काम नहीं कर सकते हैं. वहीं ताइवान की बात करें, तो यह एक गृह युद्ध के बाद 1949 में मुख्य चीनी भूभाग से राजनीतिक रूप से अलग हो गया था. इसके केवल 15 औपचारिक राजनयिक सहयोगी हैं लेकिन वो अपने व्यापार कार्यालयों के जरिए अमेरिका और जापान समेत सभी प्रमुख देशों के साथ अनौपचारिक संबंध रखता है. चीन इस संप्रभु देश मानने से इनकार करता है. उसका कहना है कि वह ताइवान को अपने हिस्से में शामिल कर लेगा.