समर्थकों और कार्यकर्ताओं के जनसमूह को इस बात का जरूर अहसास करा दिया कि ज्यादातर सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला होगा। समर्थक भी अपने नेता को देखने और सुनने के लिए कई जिलों से पहुंचे थे। इस दौरान बसपा की सोशल इंजीनियरिंग का नजारा भी देखने को मिला।

यूपी विधानसभा चुनाव में राजनीतिक पंडित ज्यादातर सीटों पर दो पार्टियों के बीच ही कांटे की टक्कर मान रहे है। लेकिन सोमवार को प्रयागराज के केपी कालेज मैदान में बसपा प्रमुख मायावती की जनसभा में उमड़ी समर्थकों और कार्यकर्ताओं की भीड़ ने राजनीतिक पंडितों के सारे दावों को झुठला दिया। समर्थकों और कार्यकर्ताओं के जनसमूह को इस बात का जरूर अहसास करा दिया कि ज्यादातर सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला होगा। समर्थक भी अपने नेता को देखने और सुनने के लिए कई जिलों से पहुंचे थे। इस दौरान बसपा की सोशल इंजीनियरिंग का नजारा भी देखने को मिला।
मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार
2007 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए सत्ता पर काबिज हुई थी। लेकिन उसके बाद से सत्ता की दौड़ में वह लगातार पीछे रही है। 2012 में समाजवादी पार्टी और 2017 में भारतीय जनता पार्टी को यूपी की जनता ने सत्ता की चांभी सौंपी थी। उसके बाद से ही लगातार राजनीतिक पंडित सूबे में भाजपा और सपा के बीच ही कांटे की टक्कर का दावा करते रहे।
सोशल इंजीनियरिंग को अपनाते हुए बसपा ने इस बार सभी वर्ग के लोगों को प्रत्याशी के रूप में शामिल किया। यहीं कारण है कि जिले की 12 विधान सभा सीटों पर पार्टी ने ज्यादातर नए चेहरों को मौका दिया है। दूसरी तरफ कोर वोटरों के दम पर एक बार फिर से बसपा ने इस बात को साबित कर दिया कि चुनावी समर में वह भी पूरे दमखम से उतरी है।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी प्रयागराज में हुई जनसभा में इसका अहसास करा दिया कि चुनाव के परिणाम में बड़ा उलट फेर होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। पार्टी अगर सत्ता में नहीं आयी, तो किंग मेकर की भूमिका में आ सकती है।
भीड़ को मत में परिवर्तित करना चुनौती
जनसभा में उमड़ी भीड़ वोटों में कितना परिवर्तित होती है। यह तो मतगणना के दिन ही पता चलेगा। लेकिन मायावती की जनसभा उमड़े जनसमूह को देखकर दूसरी पार्टी के प्रत्याशी जरूर अपने चुनाव को लेकर नई रणनीति बनाने पर विचार जरूर कर रहे होंगे। बसपा प्रमुख की जनसभा ने पार्टी के प्रत्याशियों में भी नई जान फूंक दी है। जिससे उनका उत्साह भी कई गुना बढ़ गया।
ब्राम्हण वोटरों पर भी साधने में जुटी रही मायावती
केपी कालेज मैदान में जनसभा के दौरान मायावती ब्राम्हण वोटरों को भी साधती दिखाई दी। जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भाजपा को ब्रम्हणों की पार्टी कहा जाता था, लेकिन आज सबसे ज्यादा ब्राम्हणों की उपेक्षा भाजपा में ही हो रही है। यही कारण है कि ब्राम्हण समाज बहुजन समाज पार्टी के साथ खड़ा है।