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यूपी में मुस्लिम सीटों से मिले सबसे ज्यादा वोट से उड़े बीजेपी के होश!

यूपी के पहले चरण में जिन सीटों पर चुनाव हो रहा है, उनमें से 90 फीसदी सीटों पर बीजेपी का कब्जा है. बीजेपी पिछले चुनाव में मुस्लिम बहुल सीटों पर भी कमल खिलाने में कामयाब रही थी जिसकी मुख्य वजह यह थी कि एक-एक सीट पर कई मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में किस्मत आजमा रहे थे. ऐसे में मुस्लिम वोटों के बिखराव का फायदा बीजेपी को मिला था. इसी तरह उत्तर प्रदेश में भी योगी सरकार को हराने के लिए मुसलमान एक तरफा सपा गठबंधन को वोट डालते नज़र आ रहे हैं.

उत्तर प्रदेश में दूसरे चरण के मतदान में 9 जिलों की 55 विधानसभा सीटों पर 62.82 फीसदी मतदान हुआ है. ये पिछले विधानसभा चुनाव में हुए इन सीटों पर मतदान के मुकाबले क़रीब 7 फीसदी कम है. लेकिन 3 मुस्लिम बहुल सीटों पर 72 फीसदी से ज्यादा वोटिंग हुई. यानि औसत से क़रीब 11 फीसदी ज्यादा वोट पड़े हैं. पिछले चुनाव में इन 55 सीटों पर 65.53 फीसदी वोटिंग हुई थी. पहले चरण में भी करीब पिछले चुनाव के मुकाबले 3 फीसदी कम मतदान हुआ था. लेकिन पहले चरण मे भी कई मुस्लिम बहुल सीटों पर औसत से क़रीब 10-11 प्रतिशत ज्यादा वोट पड़े थे. चुनाव विश्लेषक अब ये अनुमान लगाने में जुट गए हैं कि कम मतदान किसके लिए फायदेमंद है और किसके लिए नुकसानदेह.

यूपी में मतदान के प्रतिशत में थोड़ा सा भी ऊपर नीचे होने से सत्ता के समीकरण बदलने का इतिहास रहा है. पिछले दो चुनाव में मतदान घटने बढ़ने से हुए सत्ता परिवर्तन पर नज़र डालने से यह अंदाजा लगाना आसान हो जाएगा कि उत्तर प्रदेश में चुनावी ऊंट किस करवट बैठने जा रहा है. 2017 में दूसरे चरण वाली इन 55 सीटों पर 65.53 फीसदी मतदान हुआ था. 2012 में इन 55 सीटों पर 65.17 फीसदी वोट पड़े थे. 2012 की तुलना में 2017 में वोटिंग में करीब 0.36 फीसदी का इजाफा हुआ. पिछले तीन चुनावों में इन 55 सीटों के नतीजों का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि जब-जब वोट प्रतिशत बढ़े हैं तो उस समय की विपक्षी दलों को फायदा हुआ. 2012 में सपा को 29 और 2017 में भाजपा को यहां 33 सीटों का फायदा हुआ था. इस बार इन 55 सीटों पर 3 फीसदी वोटिंग घटी है. पुराने रिकॉर्ड के हिसाब से देखें तो इस बार मुख्य विपक्ष यानि सपा गठबंधन को बड़ा फायदा होता दिख रहे है.

55 सीटों में 18 सीटों पर 40 से 55 फीसदी तक मुस्लिम मतदाता हैं

दूसरे चरण में जिन नौ जिलों की 55 सीटों पर 62.82 फीसदी मतदान हुआ है. इन सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. पिछली बार यानि 2017 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों की आपसी टक्कर की वजह से बीजेपी 38 सीटों पर जीती थी. जबकि सपा-कांग्रेस गठबंधन को 17 सीटें मिली थीं. सपा को 15 और कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं. बसपा और आरएलडी का खाता तक नहीं खुला था, इस बार भी इन 55 सीटों पर सपा गठबंधन के 19, बसपा के 23, कांग्रेस 21 और ओवैसी की पार्टी के 19 मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में है. इन चार पार्टियों के 77 मुस्लिम उम्मीदवारों के चुनाव मैदान में होने से ये माना जा रहा था कि बीजेपी को इससे फायदा होगा. क्योंकि 24 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों के बीच मुस्लिम वोट हासिल करने के लिए अपसी कड़ा संघर्ष है. 11 सीटों पर दो उम्मीदवार आमने हैं, 9 सीटों पर तीन तो चार सीटों पर चार-चार मुस्लिम उम्मीदवार अमने-सामने हैं.

चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुतबिक रामपुर सदर पर 58.80, संभल पर 57.40, मुरादाबाद 59.48, कुंदरकी पर 65.48, अमरोहा नगर पर 65.76, बेहट पर 72.21, सहारनपुर देहात पर 70.50 और धामपुर पर 63.94 प्रतिशत मतदन हुआ है. इन सभी विधानसभा सीटों पर 55 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं. इसी तरह 40 से 50 प्रतिशत मुस्लमि मतदाताओं वाली विधानसभा सीटों में देवबंद पर 65.00, नकुड़ पर 72.90, कांठ पर 67.07, ठाकुरद्वारा पर 72.35, नहटौर पर 59.60, नगीना पर 61.02, बिजनौर पर 61.70, चांदपुर पर 68.76, नूरुपुर पर 63.30 और बढ़ापुर पर औसतन 64.80 प्रतिशत वोट पड़े. मतदान के इस पैटर्न से माना जा रहा है कि मुस्लिम बहुल इलाकों में वोटिंग को लेकर ज्यादा उत्साह दिखा है. पहले चरण में भी मतदान की यही पैटर्न रहा था. दोनों चरणों में पिछले चुनाव से कम मतदान लेकिन मुस्लिम बहुल सीटों पर औसत से ज्यादा मतदान के निहितार्थ ढूंढे जा रहे हैं.

2012 और 2017 में कैसे बदला गणित

2012 में यूपी में पहली बार समाजवादी पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी. तब सपा को इन 55 सीटों में 40 पर जीत मिली थी. तब मुख्य विपक्षी दल रही बसपा को इन 55 सीटों में 8, और भाजपा को सिर्फ 4 सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस के खाते में 3 सीटें आई थीं. 2017 में भाजपा ने इन 55 सीटों में से 38 सीटें जीत ली थीं. जबकि 2012 में से उसे महज 4 सीटें मिली थीं. यानि उसे 33 सीटों का फायदा हुआ था. सपा को 2017 में इस इलाके में 24 सीटों का नुकसान हुआ था. बसपा को 8 और कांग्रेस को एक सीट का नुकसान हुआ था. सपा को यहां की 55 में से 15 और कांग्रेस को दो सीटों पर जीत मिली. जबकि बसपा और आरएलडी को एक भी सीट नहीं मिली थी.

2007 और 2012 में कैसे बदले समीकरण

2012 में इन 55 सीटों पर 2007 के मुकाबले 11 फीसदी ज्यादा वोट पड़े. इससे सारे पुराने समीकरण बदल गए. तब बसपा को 35 सीटों का नुकसान हुआ था. 2007 में इन्हीं 55 सीटों पर 49.56 फीसदी वोटिंग हुई थी. तब प्रदेश में पहली बार बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी. बसपा ने 35 सीटें जीती थीं. सपा को 11 और बीजेपी को महज़ 7 सीटें मिलीं थीं. और और बसपा की सरकार बनी थी. लेकिन 2012 में इन 55 सीटों पर 65.17 फीसदी वोटिंग हुई थी. इस बार वोटिंग में तकरीबन 11 फीसदी का इजाफा हुआ. इसका फायदा मुख्य विपक्षी दल सपा को हुआ. सपा को यहां 55 में से 40 सीटों पर जीत मिलीं यानि 29 सीटों का फायदा हुआ. वहीं बसपा को 35 सीटों का नुकसान हुआ.दूसरे चरण वाली 55 सीटों पर 2007 से लेकर 2017 तक के मत प्रतिशत और विभिन्न पार्टियों को मिली सीटों के विश्लेषण से अंदाजा होता है कि वोट प्रतिशत बढ़ने से विपक्षी दल को फायदा हुआ है और सत्ताधारी पार्टी को झटका लगा है. अगर यही ट्रेंड इस बार भी जारी रहता तो सत्ताधारी बीजेपी को बड़ा नुकसान होता दिख रहा है. जबकि बीजेपी को चुनौती दे रहा समाजवादी पार्टी का गठबंधन फायदे में नज़र आ रहा. पहले दो चरणों के मतदान से ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश का चुनाव पश्चिम बंगाल की तर्ज पर चल पड़ा है. वहां बीजेपी को हराने के लिए मुसलमानों ने एकजुट होकर ममता बनर्जी कि तृणमूल कांग्रेस को एकतरफा वोट दिया था. इसी तरह उत्तर प्रदेश में योगी सरकार को हराने के लिए मुसलमान एक तरफा सपा गठबंधन को वोट डालते नज़र आ रहे हैं शायद यही वजह है कि देशभर में हिजाब और बुर्के पर चले विवाद के बीच उत्तर प्रदेश में चुनाव में मुस्लिम इलाकों में बंपर वोटिंग हो रही है. इससे बीजेपी के होश उड़े हुए हैं.

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Pooja Pandey

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