काम की बात टेक्नोलॉजी

एपल और गूगल की सिक्योरिटी को चकमा दे सकता है टिक टॉक! रिपोर्ट में हुआ खुलासा

टिक टॉक दूसरे सोशल मीडिया नेटवर्क की तुलना में अपने इंटरनल वर्क को छुपाता है और ऐसे में ये जानना मुश्किल है कि यह किसी डिवाइस से डेटा को किस हद तक माइन कर सकता है.

साइबर सिक्योरिटी रिसर्चर्स ने टिकटॉक की डेटा कलेक्शन टेकनीक पर सवाल उठाए हैं. इसकी लगातार बढ़ती पॉपुलैरिटी के बावजूद, शॉर्ट वीडियो ऐप को अक्सर यूजर की प्राइवेसी का उल्लंघन करने के लिए दोषी ठहराया गया है. अब एक नई रिपोर्ट में अब जिक्र किया गया है कि ये ऐप गूगल प्ले स्टोरऔर ऐप्पल ऐप स्टोर द्वारा लगाए गए सिक्योरिटी प्रोटोकॉल को भी बाइपास कर सकता है. नवंबर 2020 और जनवरी 2021 में “व्हाइट हैट” साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट्स द्वारा की गई दो रिसर्च की पुष्टि करने के बाद, रिपोर्ट में पांच एक्सपर्ट्स की एनालिसिस का हवाला देते हुए दावा किया गया है कि टिकटॉक “यूजर डेटा के लिए फुल-एक्सेस पास” क्स सकता है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि टिकटॉक एपल और गूगल के ऐप स्टोर पर कोड ऑडिट से बच सकता है, साथ ही डिवाइस ट्रैकिंग का बेहतर इस्तेमाल करने के लिए अपने बिहेवियर को बीच-बीच में बदलता है.

ब्राउजर वेब से डिवाइस में कन्वर्ट हो सकता है टिकटॉक 

इसे “बेहद असामान्य” बताते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहेवियर काफी हद तक फेसबुक और ट्विटर जैसे दूसरे सोशल मीडिया ऐप से अधिक है. दो “व्हाइट हैट” स्टडी का रिव्यू करने वाले एक साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट ने गूगल को बताया कि टिकटॉक ब्राउजर वेब से डिवाइस में कन्वर्ट हो सकता है, साथ ही “डिवाइस पर ही चीजों को क्वेरी कर सकता है.” यह टिकटॉक “कार्टे ब्लैंच” को एक डिवाइस तक पहुंच की अनुमति देता है.

फिर भी एक दूसरे एक्सपर्ट ने बताया कि ऐप दूसरे सोशल मीडिया नेटवर्क की तुलना में अपने इंटरनल वर्क को छुपाता है और ऐसे में ये जानना मुश्किल है कि यह किसी डिवाइस से डेटा को किस हद तक माइन कर सकता है. यह तब भरोसे का सवाल बन जाता है, जैसे कि आज भले ही ऐप कुछ भी बुरा नहीं कर रहा हो, इसका मतलब यह नहीं है कि वह ऐसा नहीं कर पा रहा है.

स्टडी में पाया गया कि टिकटॉक का सोर्स कोड डिवाइस आईडी का इस्तेमाल करता है जो ऐड इंटीग्रेशन के लिए एक पर्सनल डिवाइस को आइडेंटिफाई करता है. एक बार जब यह ऐड देने वालों के साथ इस आईडी को शेयर कर लेता है, तो वो समय के साथ “सभी डिवाइस और इंस्टॉल” पर लोगों को ट्रैक कर सकते हैं.

वेब ब्राउजर की तरह काम करता है ऐप

रिसर्चर्स ने यह भी पाया कि ऐप एक वेब ब्राउजर की तरह काम करता है. यह एक स्पेशल जावास्क्रिप्ट ब्रिज का इस्तेमाल करता है जो ऐप को फोन पर लॉन्च होने पर टिकटॉक के सर्वर से रिस्टोर करता है. यह टिकटॉक ऐप को यूजर्स के लिए अपडेट को आगे बढ़ाए बिना अपने बिहेवियर को बदलने की अनुमति देता है. इससे ऐप की सिक्योरिटी की जांच करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि ऐप के स्टेटिक एनालिसिस से इसका पता नहीं लगाया जा सकता है. टिकटॉक का कोड कई देसी लाइब्रेरी का इस्तेमाल करता है, जो इसे गूगल कोड विश्लेषण को बाइपास करने की परमीशन दे सकता है. इसका मतलब है कि इसके कोड डेवलपर्स के लिए पहले से उपलब्ध सिस्टम लाइब्रेरी का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं. यानी एक वेब ऐप के रूप में, टिकटॉक एपल और गूगल कोड ऑडिट को बाइपास कर सकता है.

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Pooja Pandey

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