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यूपी बॉर्डर की आखिरी पंचायत में कौन किसको और क्यों वोट कर रहा है जानिए

मोहंद मुसलमानों का गढ़ है. लेकिन, कहानी में कुछ ट्विस्ट है. इस गांव के कई मुसलमान कभी राजपूत थे. लेकिन कई पीढ़ियों पहले उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया. हालांकि वे अब भी इलाके के हिंदू राजपूतों के साथ सामाजिक-सांस्कृतिक संबंध बनाए हुए हैं.

पश्चिम यूपी के सहारनपुर से एक घंटे की दुरी के बाद आप मोहंद नदी के किनारे एक हरे भरे जंगल के बीच पहुंचते हैं. अगर यहां विशाल भारद्वाज की फिल्म का किरदार लंगड़ा त्यागी होता तो उसने अपनी देहाती, पश्चिमी यूपी वाली शैली में नदी के महत्व को समझाया होता: उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच का अंतर बस यह नदी है. अगर आप नदी को हटा दें तो उत्तराखंड कहां है और उत्तर प्रदेश कहां है यह करोड़ों का सवाल है.

मोहंद नदी के उत्तर में कुछ मीटर की दूरी पर ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इस तरफ का आखिरी ग्राम पंचायत गणेशपुर है. पंचायत में तीन गांव-गणेशपुर, मोहंद और श्योदी नगर आते हैं. ये सभी बेहट विधानसभा क्षेत्र में आते हैं. इन गांवों का बसावट ऐसी है कि गणेशपुर पंचायत पूरे उत्तर प्रदेश की राजनीति का एक छोटा रूप प्रस्तुत करता है. अगर आपको जानना है कि यूपी के अलग-अलग जाति समूह किस तरह से वोटिंग करते हैं तो आपको गणेशपुर से आगे नहीं जाना होगा.

बीजेपी का गढ़ गणेशपुर

गणेशपुर एक ठाकुर बहुल गांव है. इसके 2200 मतदाताओं में आधे ठाकुर हैं, जिस समुदाय से यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आते हैं. गणेशपुर की भूमि इतनी उपजाऊ है कि आप यहां पर मनोज कुमार का गीत – मेरे देश की धरती सोना उगले-उगले हीरे मोती – गा सकते हैं. गांव में रहने वाले 62 साल के धर्मपाल राणा कहते हैं, ”यहां सिर्फ 20 फीट नीचे पानी मिलता है. पानी सिर्फ 20 फीट की गहराई पर मौजूद है. आम, स्ट्रॉबेरी, अमरूद सब कुछ यहां उगता है.” लगभग शाम हो चुकी है. धर्मपाल राणा, उनके दोस्त धर्मवीर राणा और दो और राणा (साफ है यहां पर राणाओं की भरमार है) एक चाय की दुकान के सामने रखी खाटों पर लेटे हैं. उनके पीछे हरे भरे खेतों में सूरज का डूबना मन मोह रहा है. पीछे आप उत्तराखंड की पहाड़ियों को देख सकते हैं. आपको लगेगा कि यही जन्नत है.

वे बताते हैं कि हर रात 4-5 हाथी और नील गाय के झुंड खेतों में घुस कर फसलों को नष्ट कर देते हैं, “जीवन कठिन है. हमें पूरी रात जागते रहना होता है.” संक्षेप में कहें तो गणेशपुर के लोगों के जीवन में न तो पैसा है, न रोजगार. उनके जीवन में एक दिन की शांति तक नहीं है. फिर भी वे योगी आदित्यनाथ सरकार को ही वोट देंगे. इतनी कठिनाइयों के बावजूद वे ऐसा क्यों करेंगे?

“हम ठाकुर हैं. यह हमारी पार्टी है, योगी हमारे मुख्यमंत्री हैं,” राणा चहकते हुए बताते हैं. साफ है उनकी उम्मीदें अभी खत्म नहीं हुई है. इन राणाओं में से एक स्थानीय अखबार के पन्ने खोलता है. इसे पढ़ें, वह कहता है, ”पहले ये पन्ने अपराध-चोरी, बलात्कार, हत्या की खबरों से भरे हुए होते थे. अब ये दूसरी ख़बरों से भरे होते हैं.” धर्मवीर राणा कहते हैं, ”हम सुरक्षित महसूस करते हैं. हमारी बहन-बेटी आज़ादी से घूम सकती हैं, हमारे मवेशी अब चोरी नहीं होते.”

बीजेपी को वोट देने के और भी कारण हैं. उनमें से एक पेंशन भी है. धर्मपाल राणा कहते हैं, “हर महीने मेरे खाते में 2000 रुपये आते हैं. सरकार हमें मुफ्त राशन भी देती है और हमें मुफ्त कोरोना के टीके भी लगे हैं. यह सब काफी अच्छा है.”

समाजवादी पार्टी का गढ़ मोहंद

आप बीजेपी के पक्ष में जितने भी तर्क सुनते हैं वे गणेशपुर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर बिलकुल बदल जाते हैं. इसका प्राथमिक कारण है कि मोहंद मुसलमानों का गढ़ है. लेकिन, कहानी में कुछ ट्विस्ट है. इस गांव के कई मुसलमान कभी राजपूत थे. लेकिन कई पीढ़ियों पहले उन्होंने इस्लाम धर्म अपना लिया. हालांकि वे अब भी इलाके के हिंदू राजपूतों के साथ सामाजिक-सांस्कृतिक संबंध बनाए हुए हैं. कई हिंदू राजपूत घरों में दुल्हन की शादी तब तक नहीं होती जब तक कि आसपास के गांवों के राजपूत मुसलमान भात (मामा से शादी का उपहार) नहीं भेजते.

ग्रामीणों की शिकायत है कि सब बेकार बैठे हैं, “बच्चे पूरे दिन गिल्ली-डंडा खेलते हैं क्योंकि स्कूल बंद हैं और उनके माता-पिता के पास ऑनलाइन क्लास के लिए पैसे नहीं हैं. युवा ताश खेलते हैं और बड़े दिन भर कोनों में बैठे रहते हैं. वो चिल्लाते हैं और शिकायत करते हैं.” एक पैर वाले एक दिव्यांग बुजुर्ग मुसलमान बैसाखी के सहारे चलते हैं. वो नाराजगी के साथ तेज आवाज में बोलते हैं, “बीजेपी नहीं चाहती कि हम सम्मान से रहें. वह चाहती है कि हम दूसरे दर्जे के नागरिक की हैसियत से रहें. हम अपने सम्मान और गरिमा की रक्षा के लिए समाजवादी पार्टी को वोट देंगे.” क्या इन्हें राशन और पेंशन मिलती है? “सरकार हमें कुछ खास नहीं देती मगर हमसे अपेक्षा करती है कि हम भूल जाएं कि आवारा मवेशी हमारी फसल को नष्ट कर रहे हैं, हमारे बच्चे बेकार बैठे हैं क्योंकि रोजगार के अवसर नहीं हैं. क्या आप हमसे इन खैरातों को महत्व देने की उम्मीद करते हैं?” बैसाखी के सहारे खड़ा दिव्यांग बताता है, जिसके पास बैठे दूसरे लोग सहमति में सिर हिलाते हैं.

मायावती की आस श्यौदी नगर

गणेशपुर पंचायत के तीसरे गांव में अनुसूचित जाति के मतदाताओं का वर्चस्व है. इनमें मुख्य रूप से जाटव और बंजारे हैं. इनमें से कुछ हाईवे पर सड़क किनारे बने ढाबे पर बैठे हैं. 24 साल के सचिन कुमार जाटव हैं. पिछले दो चुनावों में उन्होंने मायावती की बसपा को वोट दिया. इस बार भले ही चुनाव पूर्व सर्वेक्षण बहुजन समाज पार्टी को ज्यादा सीटें नहीं दे रहे हैं, बावजूद इसके वे इस साल भी ऐसा ही करने का इरादा रखते हैं. वे ऐसी पार्टी को वोट क्यों देंगे जिसके जीतने की संभावना नहीं है? सचिन कुमार का एक सरल और मार्मिक उत्तर आता है: “हमारे पास कोई विकल्प नहीं है. अगर हम किसी दूसरी पार्टी को भी वोट देते हैं तो लोग यही सोचेंगे कि हमने बसपा को वोट दिया है. हमारी गिनती कहीं नहीं होती.”बेहट से भाजपा के उम्मीदवार नरेश सैनी हैं जो कांग्रेस से बीजेपी में आए हैं. उन्होंने 2017 का विधानसभा चुनाव जीता था. उनके खिलाफ समाजवादी पार्टी से मुस्लिम उम्मीदवार उमर अली खड़े हैं. तीसरे उम्मीदवार बहुजन समाज पार्टी के रहीस अली भी मुसलमान हैं. बेहट में करीब 51 फीसदी मुसलमान हैं. हिंदुओं में अनुसूचित जाति के मतदाताओं का प्रतिशत लगभग 30 है. इनके बाद वहां पर राजपूत और सैनी हैं. अब जब आपने ये पता लगा लिया है कि कौन किसे वोट कर रहा है तो बेहट के चुनाव का परिणाम का अंदाजा लगाना आपके लिए बच्चों का खेल होना चाहिए.

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Pooja Pandey

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