बीजेपी अखिलेश सरकार के राज की गुंडागर्दी का मुद्दा उठा रही और बीजेपी सरकार में बेहतर हुई क़ानून व्यवस्था के मुद्दे पर ज़ोर शोर से प्रचार कर वोट मांग रही है. बीजेपी का कहना है कि उसने यूपी से अपराध ख़त्म कर लॉ एंड ऑर्डर का राज स्थापित किया है.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में राजनीतिक सरगर्मी अपने उफान पर है. 10 फरवरी को पहले चरण की वोटिंग होनी है. वैसे वोट मांगने के तरीके और मुद्दे पुराने हैं, लेकिन कोरोना महामारी ने प्रचार के तरीकों में थोड़ा ट्विस्ट जरूर ला दिया है. सबका मकसद एक है, वोटरों को लुभाना और यूपी की सियासत में बहुमत पाना. लेकिन सवाल यह है कि इस बार अपनी बात सही तरीक़े से जनता तक पहुंचाने में कौन कामयाब होगा?
परे उत्तर प्रदेश में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का रोल बड़ा अहम है. इसीलिए वक्त-वक्त पर इसे अलग करने की मांग उठती रहती है. ये ऐसा क्षेत्र है जो किसी भी पार्टी की जीत हार तय कर सकता है. 2017 की ही बात कर लीजिए. यहां कि 76 में से 66 सीटें जीतने के बाद बीजेपी ने सरकार बना ली थी. वहीं राहुल गांधी और अखिलेश यादव के युवा गठबंधन को महज़ 6 सीटों पर ही जीत मिली थी. मायावती की माया भी काम नहीं आई थी और उन्हें भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश सिर्फ 3 सीटों पर जीत हासिल हुई थी.
बीजेपी के पास बेहतर क़ानून का मुद्दा
बीजेपी अखिलेश सरकार के राज की गुंडागर्दी का मुद्दा उठा रही और बीजेपी सरकार में बेहतर हुई क़ानून व्यवस्था के मुद्दे पर ज़ोर शोर से प्रचार कर वोट मांग रही है. बीजेपी का कहना है कि उसने यूपी से अपराध ख़त्म कर लॉ एंड ऑर्डर का राज स्थापित किया. योगी आदित्यनाथ अपनी रैलियों में लगातार ये कह रहे हैं की काम भी और लगाम भी. यानि बीजेपी यूपी के लोगों को ये बताने में लगी है कि राज्य में विकास कार्यों के साथ-साथ अपराधियों पर लगाम भी लगाई गई है.
पश्चिमी उत्तप्रदेश में मुस्लिमों की आबादी 26 फीसदी के क़रीब है और बीजेपी की कोशिश है कि अपने आक्रामक प्रचार से मुस्लिमों के ख़िलाफ़ हिंदुओं को लामबंद किया जा सके. यही वजह है कि बार-बार बीजेपी के नेता भाषणों में मुज़फ़्फ़र नगर दंगों का ज़िक्र करते हैं. साथ ही बीजेपी की सरकार में कानून व्यवस्था बेहतर करने का दावा भी करते हैं. बीजेपी की कोशिश है कि वोटों का ध्रुवीकरण कर सत्ता में बने रहें. वहीं विपक्ष की कोशिश है कि बीजेपी ध्रुवीकरण की राजनीति करने में क़ामयाब न हो पाए. एक और बड़ा मुद्दा है अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण. इसके साथ ही बीजेपी ने काशी और मथुरा में भी अयोध्या जैसा काम करने का कार्ड खेला है. साथ ही चौबीस घंटे बिचली, सड़क और सभी बुनियादी सुविधाएं देने का वादी भी दोहराया जा रहा है. आरोप- प्रत्यारोप का दौर जारी है, दावे और वादों का सिलसिला भी चल रहा है. तय जनता को करना है कि उनकी तरक्की कौन करेगा.
एसपी-लोकदल गठबंधन का असर क्या होगा
इस बार बीजेपी को विधानसभा चुनाव में मात देने के लिए समाजवादी पार्टी और आरएलडी ने हाथ मिलाया है. इस बार अखिलेश और जयंत चौधरी योगी आदित्यनाथ से दो-दो हाथ करने के लिए साथ आए हैं. दोनों नेताओं ने लगातार कई साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बीजेपी की नाकामियों को गिनाने का काम किया और मुस्लिम वोट बैंक को साथ में लाने की जुगत में भी लगे हैं. चौंकाने वाली बात ये है कि इस बार बीएसपी चीफ बहन जी ज्यादा एक्टिव नजर नहीं आ रही हैं. हालांकि पश्चिमी यूपी में मायावती का अच्छा ख़ासा प्रभाव है. यहां के वोटर्स इसे कैसे लेंगे ये देखना होगा. क्योंकि अभी तक जिस तरीक़े से मायावती को इन सभी सीटों पर प्रचार करना चाहिए था, वैसा नहीं हुआ है.
यूपी में कुल सात चरणों में वोटिंग होनी है, जिसमें पहले चरण का मतदान फ़रवरी में होना है और 10 फ़रवरी को ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी सीटों पर वोट डाले जाएंगे. अभी से पश्चिमी उत्तर प्रदेश के नतीजों के असर का कुल 403 सीटों पर कितना पड़ेगा, ये अनुमान लगाना मुश्किल है. लेकिन इतना ज़रूर है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर सभी पार्टिंयों का फोकस है. मुद्दों पर चलें या जातीय समीकरणों पर, पार्टी देखें या चेहरा ये तो लोग ही तय करेंगे. उम्मीद और उद्देश्य एक ही होना चाहिए. राज्य का विकास और जनता का भला.