ओपिनियन कर्नाटक राज्य

लव जिहाद के हौवे के बाद अब हिजाब पर पाबंदी, क्या कर्नाटक के वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रयास है?

लड़कियां कॉलेज में निर्धारित यूनिफॉर्म पहनकर आती हैं और इसलिए उन पर कॉलेज के यूनिफॉर्म कोड के उल्लंघन का आरोप नहीं लगाया जा सकता है. सिर पर हिजाब रखने मात्र से यूनिफॉर्म का उल्लंघन नहीं होता है. और हिजाब रखने से ऐसा भी नहीं है कि उन्हें पहचानने में किसी तरह की दिक्कत आएगी.

कर्नाटक की बसवराज बोम्मई सरकार अपने कुशासन की वजह से राजनीतिक संकट में फंसी हुई है. सरकार कोरोना महामारी से निपटने में बुरी तरह असफल रही है साथ ही राज्य की अर्थव्यवस्था को भी दयनीय हालात में लाकर छोड़ दिया है. सरकार लोगों का ध्यान इन मुद्दों से हटाना चाहती है. और इसके लिए उसे सांप्रदायिक रूप से भावनात्मक मुद्दों की सख्त जरूरत है. तथाकथित लव जिहाद कानून (यह राज्य सरकार के पास लंबित है) की तरह हिजाब पर प्रतिबंध भी हिन्दू मतों के ध्रुवीकरण का महज एक हथकंडा ही है. इस हथकंडे के जरिए मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने के अधिकार के खिलाफ हिंदुओं को एकजुट करने का प्रयास किया जा रहा है.

ऐसा नहीं है कि भाजपा सरकार को यह मालूम नहीं है कि मुस्लिम लड़कियों को इस मौलिक अधिकार से वंचित करने की किसी भी कोशिश को न्यायपालिका विफल कर देगी. कर्नाटक उच्च न्यायालय पहले ही दो याचिकाओं पर विचार कर रहा है जिसमें राज्य सरकार को प्रतिबंध हटाने का निर्देश देने की मांग की गई है.

प्रिंसिपल के कंधे का इस्तेमाल

उडुपी कॉलेज के प्रिंसिपल अचानक ही यूनिफार्म कोड की जरूरत पर जाग गए हैं. अपने दम पर हिजाब पर प्रतिबंध लगाने की कार्रवाई वे कतई भी नहीं कर सकते थे. मुमकिन है कि उन्हें हिजाब पर प्रतिबंध लगाने और एक अनावश्यक विवाद को तूल देने के लिए पहले से ही सरकारी मदद का भरोसा दिया गया हो. राज्य के गृह और शिक्षा मंत्रियों ने काफी तत्परता से प्रिंसिपल के फैसले का समर्थन किया है. उससे इस संदेह की पुष्टि होती है कि भाजपा सरकार अपने हिंदुत्व एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए प्रिंसिपल के कंधे का इस्तेमाल कर रही है. इतने सालों तक यूनिफॉर्म ड्रेस कोड पर उनकी खामोशी को क्या समझा जाए? अचानक उन्होंने एक फरमान जारी किया कि क्लास रूम में हिजाब की अनुमति नहीं है.

भावनाओं को भड़काने की साजिश

यदि प्रिंसिपल इस तरह अपने दम पर असंवैधानिक तरीके से काम कर रहे थे, तो मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को मुस्लिम लड़कियों की तरफ से तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए था. लेकिन पूरी सरकार ही प्रिंसिपल के समर्थन में उतर आई है. इससे भी बुरी बात यह है कि अन्य कॉलेज भी उडुपी के इस बदतर मिसाल का अनुसरण करने के लिए उत्साहित दिख रहे हैं.

इस मामले पर दशकों से संवैधानिक स्थिति स्पष्ट है. और जब ऐसा है तो ऐसी समिति की क्या आवश्यकता है, इसे समझने में किसी तरह की दिक्कत नहीं होनी चाहिए. देश के सभी नागरिकों को अपने धर्म का पालन करने का मौलिक अधिकार है. और कर्नाटक की इन लड़कियों ने ये बता रखा है कि हिजाब का इस्तेमाल उनके धर्म को पालन करने के तौर-तरीके का एक हिस्सा माना जाना चाहिए.

सिर्फ मुस्लिम लड़कियां ही क्यों निशाने पर?

यह दावा करना गलत है कि कॉलेज परिसर या क्लास के भीतर इस अधिकार का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. क्या पगड़ी पहनने वाले सिख छात्र को यूनिफॉर्म कोड के उल्लंघन के रूप में देखा जाएगा और उसे क्लास में जाने से रोका जाएगा? क्या धार्मिक चिह्न के रूप में ब्राह्मण लड़कों के सिर पर बालों के गुच्छे (चोटी) को समान संहिता का उल्लंघन माना जाएगा और उन्हें क्लास में जाने से रोका जाएगा?

लड़कियां कॉलेज में निर्धारित यूनिफॉर्म पहनकर आती हैं और इसलिए उन पर कॉलेज के यूनिफॉर्म कोड के उल्लंघन का आरोप नहीं लगाया जा सकता है. सिर पर हिजाब रखने मात्र से यूनिफॉर्म का उल्लंघन नहीं होता है. और हिजाब रखने से ऐसा भी नहीं है कि उन्हें पहचानने में किसी तरह की दिक्कत आएगी. बहरहाल, किसी भी कॉलेज या राज्य द्वारा लगाया गया कोई भी यूनिफॉर्म रूल संविधान द्वारा दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को समाप्त नहीं कर सकता है.

यह उनका संवैधानिक अधिकार है

संविधान सभी को अपने धर्म का पालन और प्रचार करने की इजाजत देता है. और ये आज़ादी सभी को तभी तक मिलती है जब तक कि वे अन्य व्यक्तियों के धर्म में हस्तक्षेप या दूसरे के धर्म का अनादर न करे. कुछ सीमाओं के साथ भारतीय संविधान सभी को अपने धर्म का पालन करने का मौलिक अधिकार देता है. संविधान का अनुच्छेद 25 (1) कहता है कि “अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार है”. लेकिन किसी भी अन्य मौलिक अधिकार की तरह यह भी पक्का नहीं है. इसे संविधान द्वारा हासिल अन्य मौलिक अधिकारों के आधार पर रेगुलेट किया जा सकता है.

2016 में भी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ने हिजाब पहनने वाले उम्मीदवारों को प्रवेश परीक्षा में शामिल होने से मना किया था. लेकिन तब केरल उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि छात्र हिजाब पहनकर परीक्षा दे सकते हैं क्योंकि यह उम्मीदवारों की धार्मिक आस्था का एक अनिवार्य हिस्सा है. भारत के राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन में सभी धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं के प्रति सम्मान का भाव रखा जाता है. देश में तमाम सार्वजनिक जगहों और संस्थानों में धर्म की सार्वजनिक अभिव्यक्ति और धर्म के चिह्नों का काफी प्रयोग होता है. हिजाब पहनना भी ठीक उसी तरह का सामाजिक तौर-तरीका है, जैसा कि मंगलसूत्र, बिंदी, चूड़ियां, क्रॉस या अन्य धार्मिक प्रतीकों को पहना जाना.

हिजाब क्या है?

हिजाब मुस्लिम महिलाओं द्वारा अपने धर्म के प्रति आस्था और सम्मान के प्रतीक के तौर पर पहना जाने वाला एक तरह का हेडस्कार्फ़ है. यह कंधों से नीचे गिरकर पूरे बाल, गर्दन और ऊपरी सीने को ढकता करता है. यह केवल कपड़े का टुकड़ा नहीं है बल्कि मर्यादा का एक प्रतीक है. यह मुस्लिम महिलाओं का सबसे महत्वपूर्ण और सम्मानित पहलू है. हिजाब इस्लाम की कई अन्य प्रथाओं की तरह एक आवश्यक घटक है. हिजाब मुसलमानों की पहचान में से एक है और यह उन्हें ताकत देता है.

Avatar

Pooja Pandey

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Welcome to fivewsnews.com, your reliable source for breaking news, insightful analysis, and engaging stories from around the globe. we are committed to delivering accurate, unbiased, and timely information to our audience.

Latest Updates

Get Latest Updates and big deals

    Our expertise, as well as our passion for web design, sets us apart from other agencies.

    Fivewsnews @2024. All Rights Reserved.