स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी का उद्घाटन, रामानुजाचार्य की वर्तमान में चल रही 1000 वीं जयंती समारोह यानी 12 दिवसीय रामानुज सहस्राब्दी समारोहम का एक भाग है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज हैदराबाद का दौरा करेंगे. इस दौरान वह शाम लगभग 5 बजे ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी’ प्रतिमा राष्ट्र को समर्पित करेंगे. 216 फीट ऊंची ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी’ प्रतिमा 11वीं सदी के भक्ति शाखा के संत श्री रामानुजाचार्य की याद में बनाई गई है. रामानुजाचार्य ने आस्था, जाति और पंथ सहित जीवन के सभी पहलुओं में समानता के विचार को बढ़ावा दिया था. यह प्रतिमा ‘पंचलोहा’ से बनी है, जो पांच धातुओं सोना, चांदी, तांबा, पीतल और जस्ता का एक संयोजन है और दुनिया में बैठने की अवस्था में सबसे ऊंची धातु की मूर्तियों में से एक है. यह 54-फीट ऊंचे आधार भवन पर स्थापित है, जिसका नाम ‘भद्र वेदी’ है.
इसको लेकर पीएम मोदी ने एक ट्वीट किया है. उन्होंने कहा, ‘मैं शाम 5 बजे ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी’ के उद्घाटन के कार्यक्रम में शामिल होऊंगा. यह श्री रामानुजाचार्य स्वामी को एक उचित श्रद्धांजलि है, जिनके पवित्र विचार और शिक्षाएं हमें प्रेरित करती हैं.’ प्रधामंत्री कार्यालय के अनुसार, भद्र वेदी में वैदिक डिजिटल पुस्तकालय और अनुसंधान केंद्र, प्राचीन भारतीय ग्रंथ, एक थिएटर, एक शैक्षिक दीर्घा हैं, जो संत रामानुजाचार्य के कई कार्यों का विवरण प्रस्तुत करते हैं.इसको लेकर पीएम मोदी ने एक ट्वीट किया है. उन्होंने कहा, ‘मैं शाम 5 बजे ‘स्टैच्यू ऑफ इक्वालिटी’ के उद्घाटन के कार्यक्रम में शामिल होऊंगा. यह श्री रामानुजाचार्य स्वामी को एक उचित श्रद्धांजलि है, जिनके पवित्र विचार और शिक्षाएं हमें प्रेरित करती हैं.’ प्रधामंत्री कार्यालय के अनुसार, भद्र वेदी में वैदिक डिजिटल पुस्तकालय और अनुसंधान केंद्र, प्राचीन भारतीय ग्रंथ, एक थिएटर, एक शैक्षिक दीर्घा हैं, जो संत रामानुजाचार्य के कई कार्यों का विवरण प्रस्तुत करते हैं.
जानिए कौन हैं रामानुजाचार्य स्वामी?
रामानुजाचार्य स्वामी का जन्म 1017 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में हुआ था. उनके माता का नाम कांतिमती और पिता का नाम केशवचार्युलु था. भक्तों का मानना है कि यह अवतार स्वयं भगवान आदिश ने लिया था. उन्होंने कांची अद्वैत पंडितों के अधीन वेदांत में शिक्षा प्राप्त की. उन्होंने विशिष्टाद्वैत विचारधारा की व्याख्या की और मंदिरों को धर्म का केंद्र बनाया. रामानुज को यमुनाचार्य द्वारा वैष्णव दीक्षा में दीक्षित किया गया था. उनके परदादा अलवंडारू श्रीरंगम वैष्णव मठ के पुजारी थे. ‘नांबी’ नारायण ने रामानुज को मंत्र दीक्षा का उपदेश दिया. तिरुकोष्टियारु ने ‘द्वय मंत्र’ का महत्व समझाया और रामानुजम को मंत्र की गोपनीयता बकरार रखने के लिए कहा, लेकिन रामानुज ने महसूस किया कि ‘मोक्ष’ को कुछ लोगों तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, इसलिए वह पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से पवित्र मंत्र की घोषणा करने के लिए श्रीरंगम मंदिर गोपुरम पर चढ़ गए.