आंध्र प्रदेश में एक जिन्ना टॉवर है, जो अभी तिरंगे की वजह से खबरों में हैं. तो आज जानते हैं इस टावर की कहानी और कैसे इसका नाम जिन्ना पर पड़ा था.

इन दिनों एक जिन्ना टावर के नाम की इमारत सुर्खियों में है. खास बात ये है कि यह इमारत भारत में ही है और इन दिनों तिरंगे की वजह से इसकी बात हो रही है. वैसे तो बहुत कम लोग जिन्ना के नाम की इस इमारत के बारे में जानते हैं, क्योंकि भारत में मोहम्मद अली जिन्ना के नाम से इमारतों का नाम कम ही होता है. जिन्ना टावर पर विवाद लंबे समय से चला आ रहा है और अब नाम बदलने से लेकर, इस पर तिरंगा लगाने को लेकर यह खबरों में हैं. ऐसे में आज हम आपको इस जिन्ना टावर की कहानी बताते हैं और इसे लेकर हो रहे विवाद के बारे में बताते हैं.
दरअसल, ये जिन्ना टावर आंध्र प्रदेश के गुंटूर में है. इसके खबरों में आने की वजह ये है कि वाईएसआरसीपी के विधायक मोहम्मद मुस्तफा ने टॉवर को तिरंगे के रंग से पेंट करा दिया है. साथ ही इस टावर पर तिरंगा भी लगा दिया गया है, जिसे गुरुवार को फहराया जाएगा. इससे पहले 26 जनवरी के करीब हिंदू वाहिनी के कार्यकर्ताओं ने जिन्ना टॉवर पर तिरंगा फहराने की कोशिश की थी, जिस वक्त भी इस टावर की चर्चा हुई थी. अब टॉवर के करीब तिरंगा को फहराने की भी व्यवस्था होगी.
बता दें कि इसके नाम को लेकर कई बार विवाद हो चुका है. वहीं बीजेपी पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम के नाम पर टॉवर का नाम बदलने की मांग कर रही है. इसे लेकर 26 जनवरी को बवाल भी हुआ था और उस वक्त कुछ लोगों ने जबरदस्ती इसपर तिरंगा फहराने की कोशिश की थी, जिन्हें बाद में हिरासत में लिया गया था.
क्या है इस टावर का इतिहास?
बता दें कि जिन्ना टावर आंध्र प्रदेश के गुंटूर शहर में है और जिस रोड पर यह टावर बना है, उसका नाम महात्मा गांधी रोड है. भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे गतिरोध के बीच इस टावर का भारत में होना सद्भाव का प्रतीक भी माना जाता है. यह टावर 6 पिलर पर टिका हुआ है. अब बात करते हैं कि इस टावर को कब और क्यों बनाया गया था.
बताया जाता है कि यह टावर गुंटूर के लोकल मुस्लिम नेता लाल जन बाशा ने बनाया था. कहा जाता है कि उन्होंने यह टावर पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री और जिन्ना के प्रतिनिधि लियाकत अली खाने के गुंटूर विजिट के बाद इसे बनाया था. बता दें कि अभी जिस तरह इसके नाम बदलने की मांग हो रही है, वैसे ही 1966 में भी इसका नाम बदलकर हामिद मीनार करने को लेकर प्रस्ताव लाया गया था, जिसे यहां की नगर निगम ने रिजेक्ट कर दिया था. साथ ही इसे हिंदू-मुस्लिम एकता प्रतीक बताया जाता है. वैसे इस टावर को लेकर नगर निगम पर भी आरोप लगते हैं कि इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है, जिस वजह से क्षतिग्रस्त हो सकता है.
नाम बदलने पर क्या है दलील?
दरअसल, एक वर्ग इसे हिंदू-मुस्लिम एकता प्रतीक मानता है. साथ ही यह कहा जाता है कि यह महात्मा गांधी रोड पर है और जिन्ना का टावर भी है, इसलिए इसे खास माना जाता है. वहीं, गुंटूर ईस्ट से विधायक मोहम्मद मुस्तफा का कहना है, ‘स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मुस्लिम नेताओं ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है. आजादी के बाद कुछ मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान में बस गए. लेकिन हम भारतीयों के रूप में अपने देश में रहना चाहते थे और हम अपनी मातृभूमि से प्यार करते हैं.’