#बजट 2022 काम की बात देश

देश के बजट से संतुष्ट नहीं फिच,स्ट्रक्चरल सुधारों को लेकर घोषणाओं में बताई कमी!!

फिच की मानें तो वित्त वर्ष 2022-23 में सकल राज्य घरेलू उत्पाद के चार प्रतिशत कर्ज से राज्यों के स्तर पर घाटे का दबाव बढ़ेगा. कुल मिलाकर इससे केंद्र एवं राज्यों के स्तर पर राजकोषीय घाटे के मोर्चे पर दबाव बढ़ा सकता है.

भारत का 2022-23 का बजट पूंजीगत व्यय में तेज वृद्धि के साथ चल रहे आर्थिक पुनरुद्धार को बढ़ावा देने पर केंद्रित है. हालांकि, वृद्धि को गति देने वाले संरचनात्मक सुधारों की घोषणाओं के मामले में इसमें ज्यादा कुछ नहीं है. रेटिंग एजेंसी फिच ने बुधवार को ये बात कही. फिच रेटिंग्स के निदेशक और प्राथमिक सरकारी साख विश्लेषक जेरेमी जूक ने कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा मंगलवार को पेश बजट में घाटे का लक्ष्य हमारे अनुमान से अधिक हैं. ‘‘जब हमने भारत को बीबीबी/ नकारात्मक रेटिंग दी थी, घाटे का अनुमान कम रखा था.’’ इस बात की पूरी उम्मीद थी कि 2021-22 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 6.8 प्रतिशत से कम रहेगा. हालांकि, बजट में इसके 6.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है.

वित्त मंत्री ने पेश किया 39.45 लाख करोड़ रुपये का बजट

फिच ने कहा, ‘‘हमारा अनुमान था कि चालू वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा पिछले साल के बजटीय लक्ष्य से कम होगा लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा. बजट में इसके जीडीपी का 6.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है जबकि हमारा अनुमान था कि यह 6.6 प्रतिशत रहेगा.’’ वित्त मंत्री सीतारमण ने 39.45 लाख करोड़ रुपये का बजट पेश किया. इसमें अर्थव्यवस्था को गति देने के इरादे से राजमार्ग से लेकर सस्ते मकानों के लिये आवंटन बढ़ाया गया है.

जेरेमी जूक ने कहा, ‘‘इस बजट में सरकार का जोर मौजूदा आर्थिक पुनरुद्धार को गति देना है. इसके लिये पूंजीगत व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि की गयी है.’’ उन्होंने कहा कि हालांकि वृद्धि को गति देने वाले संरचनात्मक सुधारों की घोषणाओं के मामले में ज्यादा कुछ नहीं है.

राज्यों के स्तर से बढ़ेगा घाटे का दबाव

फिच के अनुसार, 2022-23 में सकल राज्य घरेलू उत्पाद के चार प्रतिशत कर्ज से राज्यों के स्तर पर घाटे का दबाव बढ़ेगा. कुल मिलाकर इससे केंद्र एवं राज्यों के स्तर पर राजकोषीय घाटे के मोर्चे पर दबाव बढ़ा सकता है.

रेटिंग एजेंसी के अनुसार, ‘‘रेटिंग के दृष्टिकोण से हमारा मानना है कि भारत के पास सीमित वित्तीय गुंजाइश है. इसका कारण केंद्र एवं राज्य सरकारों का कर्ज अनुपात किसी भी ‘बीबीबी- रेटिंग वाले उभरते बाजारों के मुकाबले अधिक है. यह जीडीपी के 90 प्रतिशत से थोड़ा ही कम है.’’

जूक ने कहा, ‘‘हम यह आकलन करेंगे कि क्या पूंजीगत व्यय का वृद्धि पर प्रभाव घाटे की भरपाई करने और ऋण अनुपात को थोड़ा नीचे लाने को पर्याप्त है. हमारा वृद्धि अनुमान 2022-23 के लिये 10.3 प्रतिशत है. जबकि 2026-27 तक यह करीब औसतन सात प्रतिशत रहेगा.’’ फिच ने कहा कि बुनियादी ढांचे पर प्रस्तावित व्यय से निकट और मध्यम अवधि में वृद्धि को गति मिलने की उम्मीद है.

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Pooja Pandey

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