धर्म सनातन धर्म

जब ब्रह्माजी के मानस पुत्र महर्षि भृगु ने ली थी त्रिदेव की परीक्षा, पढ़िए ये पौराणिक कथा !

सप्त ऋषि मंडल में से एक महर्षि भृगु ने एक बार ऋषि और मुनियों के बीच त्रिदेव की श्रेष्ठता को लेकर हुई बहस को विराम देकर त्रिदेव की परीक्षा ली. इसके बाद ये निष्कर्ष निकाला कि वास्तव में तीनों में सबसे श्रेष्ठ कौन है.

संसार में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश को सबसे शक्तिशाली माना गया है. सृष्टि की रचना, पालन और संहार का जिम्मा भी त्रिदेव पर ही है. हर कोई अपनी अपनी तरह से प्रभु की आराधना करता है और उनकी कृपा भी प्राप्त करता है. ऐसे में किसको श्रेष्ठ माना जाए, ये निर्धारित करना बहुत मुश्किल है. कहा जाता है कि एक बार सरस्वती नदी के तट पर ये बहस ऋषि और मुनियों के बीच भी हो गई. हर कोई अपने आराध्य की महिमा के गुणगान कर रहा था. जब कोई निष्कर्ष नहीं निकला, तो सप्त ऋषि मंडल में से एक महर्षि भृगु ने सोचा कि क्यों न इस बार त्रिदेव की परीक्षा ली जाए. महर्षि भृगु को ब्रह्माजी का मानस पुत्र माना जाता है. भृगु का ये विचार अन्य ​ऋषि और मुनियों को भी पसंद आया और वे सभी इसके लिए तैयार हो गए. यहां पढ़िए पूरी कथा.

सबसे पहले ब्रह्मा जी के पास गए भृगु

भृगु सर्वप्रथम अपने पिता ब्रह्माजी के पास गए और उनको न तो प्रणाम किया और न ही उनकी स्तुति की. ये देखकर ब्रह्माजी को बहुत क्रोध आया. उनके चेहरे के भाव बदल गए. लेकिन जब उन्हें याद आया कि महर्षि भृगु उन्हीं के पुत्र हैं, तो उन्होंने किसी तरह अपने क्रोध को शांत कर लिया.

ब्रह्म लोक के बाद भृगु पहुंचे कैलाश

ब्रह्मा जी का क्रोध देखने के बाद महर्षि कैलाश पर महादेव से मिलने के लिए गए. महादेव ने देखा कि भृगु आ रहे हैं तो वे प्रसन्न हो गए और अपने आसन से उठे और उन्हें अपने गले लगाने के लिए हाथ फैला दिए. लेकिन भृगु तो उनकी परीक्षा लेने के लिए आए थे, इसलिए उन्होंने महादेव का आलिंगन स्वीकार नहीं किया और कहा कि आप हमेशा वेदों और धर्म की मर्यादा का उल्लंघन करते हैं. आप ही से वरदान पाकर दुष्ट और पापी सृष्टि पर संकट लेकर आते हैं. ऐसे में मैं आपका आलिंगन भला क्यों स्वीकार करूं. इस पर शिव जी क्रोध से आग बबूला हो उठे और उन्होंने अपना त्रिशूल उठा लिया. तब माता पार्वती ने किसी तरह उनके क्रोध को शांत कराया.

अंत में बैकुंठ पहुंचे भृगु

अब बारी थी जगत के पालनहार भगवान विष्णु की परीक्षा की, इसलिए मुनि वैकुंठ लोक पहुंच गए. उस समय भगवान श्रीहरि देवी लक्ष्मी के साथ क्षीरसागर में विश्राम कर रहे थे. महर्षि भृगु ने जाते ही उनके वक्ष पर तेजी से लात मार दी. भक्त-वत्सल भगवान विष्णु तुरंत ही अपने स्थान से उठे और हाथ जोड़कर बोले, महर्षि कहीं पैर में चोट तो नहीं आयी? मुझे आपके आगमन का भान नहीं था, क्षमा कीजिए आपका स्वागत न कर सका. आइए और आसन ग्रहण कीजिए. आपके चरणों का स्पर्श तो तीर्थों को पवित्र करने वाला है. ये सुनते ही महषि भृगु की आंखों से अश्रु बहने लगे.

ऋषि मुनियों ने निकाला ये निष्कर्ष

इसके बाद भृगु लौट कर ऋषि-मुनियों के पास पहुंचे और ब्रह्माजी, शिवजी और श्रीहरि के लोकों के अनुभवों को विस्तार से बताया. इसके बाद सभी ऋषि-मुनि के सभी संशय दूर हो गए और वे श्रीहरि को श्रेष्ठ मानकर उनकी पूजा और अर्चना करने लगे.

Avatar

Pooja Pandey

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Welcome to fivewsnews.com, your reliable source for breaking news, insightful analysis, and engaging stories from around the globe. we are committed to delivering accurate, unbiased, and timely information to our audience.

Latest Updates

Get Latest Updates and big deals

    Our expertise, as well as our passion for web design, sets us apart from other agencies.

    Fivewsnews @2024. All Rights Reserved.