ट्रक चालकों ने अपने करीब 70 किमी लंबे काफिले को ‘फ्रीडम कान्वॉइ’ नाम दिया है. बताया जा रहा है कि यह एक जगह पर ट्रकों का दुनिया का सबसे बड़ा जमावड़ा है. ट्रक चालक कनाडा के झंडे के साथ ‘आजादी’ की मांग वाले झंडे भी लहरा रहे हैं.

कनाडा मुश्किल दौर से गुजर रहा है. इस मुश्किल की वजह भले ही प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडोके एक मूर्खतापूर्ण बयान को बताया जा रहा हो, लेकिन असली कहानी तो कुछ और ही है. दरअसल, पूरी दुनिया में कोविड महामारी से निपटने के लिए वैक्सीन लगाने पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन कोरोना कॉन्सपिरेसी थ्योरी में वैक्सीन को लेकर जिस तरह की चिंताजनक बातें की जा रही हैं उसकी वजह से बहुत सारे लोग वैक्सीन नहीं लगवाना चाहते हैं.
ऐसे में अलग-अलग देशों की अलग-अलग सरकारें ऐसी गाइडलाइंस जारी कर रही हैं जिससे आम लोगों की जिंदगी कठिन और उसे जीना महंगा साबित हो रहा है. यहां तक कि लोगों को जीविकोपार्जन तक की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. जबकि वैक्सीन लगाना कानूनी तौर पर अनिवार्य की श्रेणी में नहीं है. ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि वैक्सीन लगवाने को लेकर दुनियाभर की सरकारें इतनी जागरुक क्यों हैं जबकि वैक्सीन की डबल डोज के साथ बूस्टर डोज लगवाने के बाद भी लोग कोरोना संक्रमित हो रहे हैं, मौतें भी हो रही हैं? कहीं इसके पीछे वैक्सीन लॉबी का मायाजाल तो नहीं?
ट्रक चालकों के आंदोलन की पूरी कहानी
कनाडा में ट्रक चालकों ने जिस तरह के आंदोलन की शुरुआत की है यह एक ट्रेलर है. आने वाले वक्त में यह बड़ी मुश्किल का सबब बनने वाली है न सिर्फ कनाडा में बल्कि दुनिया के अलग-अलग देशों में भी. दरअसल, इस पूरे आंदोलन की शुरुआत उस वक्त हुई जब अमेरिका-कनाडा सीमा पर कोरोना वैक्सीन को जस्टिन ट्रूडे की सरकार ने अनिवार्य कर दिया. इस नए आदेश का असर यह हुआ कि कनाडा के जिन ड्राइवरों ने वैक्सीन नहीं लगवाई थी, उन्हें अब अमेरिका से वापस आने पर कनाडा के अंदर क्वारंटाइन होना पड़ रहा था. इसके विरोध में कनाडा के पश्चिमी हिस्से में ट्रक ड्राइवरों के बीच एक गठबंधन बनने लगा.
आनन-फानन में पीएम ट्रूडो को परिवार समेत किसी सुरक्षित गुप्त स्थान पर ले जाया गया. प्रदर्शनकारी संसदीय परिसर में घुस चुके हैं जहां वह कोरोना वैक्सीन जनादेश और अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिबंधों को समाप्त करने की मांग कर रहे हैं. ट्रक चालकों ने अपने करीब 70 किमी लंबे काफिले को ‘फ्रीडम कान्वॉइ’ नाम दिया है. बताया जा रहा है कि यह एक जगह पर ट्रकों का दुनिया का सबसे बड़ा जमावड़ा है. ट्रक चालक कनाडा के झंडे के साथ ‘आजादी’ की मांग वाले झंडे भी लहरा रहे हैं. प्रदर्शन कर रहे ट्रक चालकों को टेस्ला कंपनी के मालिक और दुनिया के सबसे अमीर इंसानों में से एक एलन मस्क ने समर्थन देते हुए ट्वीट करके कहा, ‘कनाडाई ट्रक चालकों का शासन’.
क्यों फेल हो रहा है कोविड वैक्सीन जनादेश?
कनाडा सरकार के आदेशानुसार, 15 जनवरी 2022 से ट्रक ड्राइवरों को सीमा पार करने के लिए टीकाकरण का सबूत दिखाना जरूरी हो गया है. बिना वैक्सीन वाले ट्रक ड्राइवरों को अमेरिका से लौटने पर आइसोलेट होना होगा और कोविड-19 की जांच भी करानी होगी. ट्रक ड्राइवरों के लिए इसी तरह का नियम 22 जनवरी 2022 से अमेरिका में भी लागू किया गया है. इन नियमों के कारण दोनों ही देशों में सप्लाई चेन बुरी तरह से बाधित हो रही है और खाने-पीने की चीजों के दाम काफी बढ़ गए हैं. कनाडा की अर्थव्यवस्था उन पुरुषों और महिलाओं पर बहुत हद तक निर्भर है जो सीमा पार से देश में उपभोग किए जाने वाले अधिकांश भोजन और सामानों को लेकर आते हैं.
दबी जुबान में दुनिया के सभी देशों में इस तरह की बातें लोग कर रहे हैं कि कोविड वैक्सीन सरकारी टुलकिट की तरह काम कर रहा है. चाहे आंदोलन को दबाने का मसला हो या फिर चुनाव जीतने की बात, विपक्षी दलों को कमजोर करने का मामला हो या फिर कोई भी कानून थोपने की बात, इसके जरिए सरकारें अपनी जनता को अपने हिसाब से कंट्रोल कर रही हैं.
दुनियाभर की सरकारों पर वैक्सीन लॉबी का दबाव
सरकार के वैक्सीन जनादेश को वैक्सीन लॉबी के दबाव के तौर पर भी देखा जा रहा है. दरअसल, वैक्सीन बनाने वाली कंपनियां इसमें मोटा मुनाफा कमा रही हैं. ब्रिटिश अखबार द गार्जियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फाइजर को वैक्सीन का एक डोज तैयार करने में 1 डॉलर यानि करीब 75 रुपए का खर्च आता है. इसे कंपनी 30 डॉलर में बेचती है. 24 फरवरी 2021 की एक घटना पर गौर करें तो बात ज्यादा अच्छे से समझ में आएगी कि वैक्सीन बेचने के लिए किस-किस तरह की तिकड़म कंपनियां कर रही हैं.
डाउन टु अर्थ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रस्ताव को रोकने के लिए अमेरिकी फार्मा कंपनियों के संगठन ‘द फार्मास्यूटिकल रिसर्च एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ अमेरिका’ ने महज कुछ दिनों में 50 मिलियन डॉलर, यानि करीब 3 हजार 700 करोड़ रुपए से अधिक नेताओं पर और लॉबिंग में खर्च कर दिए. परिणाम यह हुआ कि दवा कंपनियों की मजबूत लॉबिंग की वजह से भारत का यह प्रस्ताव नामंजूर हो गया.
एक तरह से कनाडा में राजनीतिक और संवैधानिक संकट पैदा हो गया है
वैक्सीन को लेकर इस तरह की खबरों से लोगों के दिल और दिमाग में यह बात अंदर तक बैठ गई है कि कोरोना कोई महामारी नहीं है, बल्कि यह सब कुछ धनकुबेरों और वैक्सीन कंपनियों की गहरी साजिश का नतीजा है. ये लोग दुनिया से लोकतंत्र को खत्म करना चाहते हैं. दुनिया को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं. दुनिया में एक नई वैश्विक व्यवस्था को जन्म देना चाहते हैं.सरकार के ‘कोविड वैक्सीन जनादेश’ के खिलाफ कनाडा में शुरू हुआ ट्रक चालकों का आंदोलन क्या रूख अख्तियार करता है यह तो आने वाले वक्त में पता चलेगा, लेकिन दुनिया के अन्य देशों और भारत जैसे देश में राज्य सरकारों को इसे एक एक सबक के रूप में लेना चाहिए. राजस्थान की गहलोत सरकार, पंजाब की चन्नी सरकार और हरियाणा की खट्टर सरकार ने जिस तरह से वैक्सीन को लेकर आदेश जारी किया है, एक न एक दिन उसकी प्रतिक्रिया जरूर सामने आएगी. वैक्सीन लगाना अनिवार्य हो या ऐच्छिक? यह बहस सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची और केंद्र सरकार ने इस बारे में दायर अपने हलफनामे कहा भी है कि यह ऐच्छिक है. ऐसे में नीति तो यही कहती है कि कोई भी सरकार जन-जागरूकता फैलाकर लोगों में वैक्सीन के प्रति भरोसा कायम करे. न कि तुगलकी फैसले के तहत वैक्सीन नहीं लगवाने पर वेतन रोकने, यात्रा पर प्रतिबंध जारी कर दिया जाए. इस तरह की नीति किसी भी लोक-कल्याणकारी सरकार की सेहत के लिए अच्छा संकेत नहीं है.