राज्य में बीजेपी के 14 बागी प्रत्याशी चुनावी मैदान हैं जबकि कांग्रेस के 12 बागी अपने अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. लिहाजा दोनों ही दल किसी बड़े सिसायी फेरबदल से डरे हुए हैं.

उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव की नामांकन प्रक्रिया के तहत नाम वापसी की तारीख खत्म हो गई है और चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक राज्य में 31 जनवरी तक ही नाम वापस लिए जा सकते थे. फिलहाल अब राज्य की सभी सीटों की चुनावी तस्वीर साफ हो गई है और 70 सीटों पर नाम वापस लेने के बाद अब 632 उम्मीदवार मैदान में बचे हैं. इसमें सबसे ज्यादा प्रत्याशी गढ़वाल के सात जिलों में हैं. यहां पर सात जिलों की 41 सीटों पर 391 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. जबकि कुमाऊं की 29 सीटों के लिए 241 उम्मीदवार मैदान में हैं. वहीं राज्य की जनता 14 फरवरी को होने वाले मतदान के दिन इन प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेगी.
राज्य की 70 विधानसभा सीटों के लिए 750 उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया था और नामांकन पत्रों की जांच के बाद 23 प्रत्याशियों के नामांकन खारिज कर दिए हैं. वहीं नाम वापसी के आखिरी दिन राज्य में 95 प्रत्याशियों ने अपने नाम वापस लिए हैं. फिलहाल देहरादून जिले की 10 सीटों पर 117, हरिद्वार जिले की 11 सीटों पर 110 उम्मीदवार, उत्तरकाशी जिले की तीन सीटों पर 23 उम्मीदवार और चमोली जिले की तीन सीटों पर 31 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. जबकि रुदप्रयाग जिले की दो विधानसभा सीटों पर 25, टिहरी जिले की छह विधानसभा सीटों पर 38, पौड़ी जिले की छह विधानसभा सीटों के लिए 47 उम्मीदवार और पिथौरागढ़ जिले की चार विधानसभा सीटों के लिए 28 उम्मीदवार मैदान में हैं और अपनी अपनी जीत के दावे कर रहे हैं.
देहरादून की धर्मपुर विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा प्रत्याशी
वहीं कुमाऊं के ही बागेश्वर जिले की दो विधानसभा सीटों के लिए 14 उम्मीदवार, अल्मोड़ा जिले की छह विधानसभा सीटों के लिए 50 उम्मीदवार, चंपावत जिले की दो विधानसभा सीटों के लिए 14 उम्मीदवार, नैनीताल जिले की छह विधानसभा सीटों के लिए 63 उम्मीदवार और उधम सिंह नगर जिले की नौ विधानसभा सीटों के लिए 72 उम्मीदवार उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं. जानकारी के मुताबिक सबसे ज्यादा 19 उम्मीदवार देहरादून की धर्मपुर विधानसभा सीट पर हैं.
दिनभर बागियों को मनाते रहे कांग्रेस और बीजेपी के नेता
राज्य में बीजेपी के 14 बागी प्रत्याशी चुनावी मैदान हैं जबकि कांग्रेस के 12 बागी अपने अधिकृत प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. लिहाजा दोनों ही दल किसी बड़े सिसायी फेरबदल से डरे हुए हैं. दोनों दलों को लग रहा है कि बागी उनकी सत्ता में जाने के रास्ते को रोक सकते हैं. इसलिए दोनों ही दलों के बड़े नेता नाम वापसी की आखिरी तारीख से पहले बागियों को मनाते रहे.