सरकार प्राइवटाइजेशन के मोर्चे पर तेजी से कदम आगे बढ़ाना चाहती है. अगले साल गैर-रणनीतिक सेक्टर की कई कंपनियों को बेचने की तैयारी है. आखिर क्या है ये पूरी कवायद?

सरकार प्राइवटाइजेशन के मोर्चे पर तेजी से कदम आगे बढ़ाना चाहती है. अगले साल गैर-रणनीतिक सेक्टर की कई कंपनियों को बेचने की तैयारी है. आखिर क्या है ये पूरी कवायद. विनिवेश लक्ष्य से हमेशा चूक रही सरकार ने एक बार फिर निजीकरण की राह पर तेज दौड़ लगाने की योजना बनाई है. सरकार की मंशा अगले वित्त वर्ष में गैर-रणनीतिक सेक्टर की कई सरकारी कंपनियों को बेचने की है. यानी सरकार अगले साल अपनी इन कंपनियों में हिस्सेदारी बेचकर पैसे कमाना चाहती है. इसके लिए सरकार ने 50 कंपनियों की पहचान की है. कंपनियों की इतनी बड़ी संख्या देखकर कहा जा सकता है कि सरकार बम्पर सेल का आयोजन करने जा रही है.
आइए जानें सरकार का नया प्लान
नई पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज पॉलिसी से सरकार की योजना का खुलासा हुआ है. अब आप सोच रहे होंगे कि स्ट्रैटेजिक यानी रणनीतिक और नॉन-स्ट्रैटेजिक या गैर-रणनीतिक सेक्टर आखिर क्या हैं?
गैर-रणनीतिक सेक्टर में स्टील, हॉस्पिटैलिटी, टूरिज्म, अर्बन डेवलपमेंट, हेल्थकेयर समेत ऐसे दूसरे सेक्टर की सार्वजनिक कंपनियां आती हैं जिनकी देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिए ज्यादा अहमियत नहीं होती है.
दूसरी ओर, स्ट्रैटेजिक सेक्टर में एटॉमिक एनर्जी, स्पेस और डिफेंस, ट्रांसपोर्ट और टेलीकम्युनिकेशंस, पावर, पेट्रोलियम, कोल और अन्य मिनरल्स, बैंकिंग, इंश्योरेंस और फाइनेंशियल सर्विसेज आते हैं.
देश में नॉन-स्ट्रैटेजिक सेक्टर में करीब 150 सरकारी कंपनियां हैं. सरकार की मंशा इन्हीं गैर-रणनीतिक सेक्टर की कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने की है.
जिन कंपनियों का निजीकरण किया जा सकता है और जिनमें निजी निवेश हासिल किया जा सकता है उनकी पहचान के लिए एक कमेटी बनाई गई है. इसकी अगुवाई नीति आयोग के CEO अमिताभ कांत कर रहे हैं.
एक फरवरी को वित्त वर्ष 2022-23 के लिए पेश होने वाले बजट में सरकार इस बाबत एक रोडमैप भी पेश कर सकती है. दरअसल, इन नॉन-स्ट्रैटेजिक सेक्टर की कंपनियों में पहले भी निजी सेक्टर की खासी दिलचस्पी देखी गई है और सरकार इसका फायदा उठाना चाहती है.
सरकार इन कंपनियों में कम हिस्सेदारी बेचने की अपनी पहले की पॉलिसी के उलट अब इन्हें पूरी तरह से या ज्यादा हिस्सेदारी बेचने की नीति को अपना रही है..
वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में सरकार ने डिसइन्वेस्टमेंट के जरिए एक लाख पचहत्तर हजार करोड़ रुपये जुटाने का टारगेट रखा था.. हालांकि, ये टारगेट एलआईसी के आईपीओ पर निर्भर करेगा. एयर इंडिया की सफल बिक्री के बाद अब सरकार को निजीकरण की राह पर तेजी से आगे बढ़ने का समर्थन जरूर मिला है.