हिंदू शास्त्र के अनुसार मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को षटतिला एकादशी कहते हैं। इस बार षटतिला एकादशी का व्रत 28 जनवरी को रखा जाएगा। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है।

- षटतिला एकादशी में भगवान विष्णु की जाती है पूजा इस बार यह व्रत 28 जनवरी दिन शुक्रवार को रखा जाएगा.षटतिला एकादशी व्रत कथा में बताया गया है तिल दान का महत्व
हिंदू धर्म में षटतिला एकादशी का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार यह व्रत हर साल माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस साल यह व्रत 28 जनवरी दिन शुक्रवार को रखी जाएगी। इस व्रत में तिल दान करना बेहद लाभकारी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन यदि व्यक्ति 6 तरीकों से तिल दान करें, तो उसे हजारों वर्ष स्वर्ग में रहने का फल मिलता हैं।
षटतिला एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस व्रत को विधि-पूर्वक करने से व्यक्ति के जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। यदि आप भी इस व्रत को करते हैं या करने की सोच रहे हैं, तो यहां आप इसकी कथा शुद्ध-शुद्ध देखकर पढ़ सकते हैं।
षटतिला एकादशी व्रत की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार किसी नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भक्ति थी। वह भगवान विष्णु के सभी व्रतों को श्रद्धा-पूर्वक करती थी। एक बार उस ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु का व्रत एक महीना रखा। 1 महीना व्रत रखने की वजह से उसका शरीर बेहद कमजोर हो गया। लेकिन ऐसा करने से उसका तन शुद्ध हो गया। ब्राह्मणी के शुद्ध तन को देखकर भगवान विष्णु ने सोचा कि क्यों न मैं इसका मन भी शुद्ध कर दू ताकि इसे विष्णु लोक में निवास करने का सौभाग्य मिल सकें।
यह सोच कर भगवान विष्णु ब्राह्मणी के पास दान मांगने गए। लेकिन उस ब्राह्मणी ने भगवान को दान में मिट्टी का एक पिंड दे दिया। भगवान विष्णु ब्राह्मणी के दिए गए दान को लेकर वहां से चले गए। कुछ समय बाद ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई और वह सीधे विष्णु लोक पहुंच गई। विष्णु लोक पहुंचने के बाद उसे वहां रहने के लिए एक कुटिया मिला। वह कुटिया पूरी तरह खाली थी।
खाली कुटिया को देखकर ब्राह्मणी के मन में खयाल आया कि मैंने जीवन भर भगवान विष्णु की सेवा की, लेकिन मुझे इससे क्या मिला? यही खाली कुटिया। उसकी यह सोच को सुनकर भगवान विष्णु ने कहा कि तुमने अपने मनुष्य जीवन में कभी भी अन्य धन का दान नहीं किया। इसी वजह से तुम्हें स्वर्ग लोक में खाली कुटिया मिला है। यह सुनकर ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु से इस समस्या के समाधान के बारे में पूछा।
तब भगवान विष्णु ने ब्राह्मणी से कहा कि जब देवकन्या तुमसे मिलने आएंगी, तो तुम उनसे षटतिला एकादशी व्रत करने की विधि पूछ लेना। इस व्रत को विधिपूर्वक करना। तब ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु की बात सुनकर वैसा ही किया। वह देव कन्याओं से षटतिला एकादशी का व्रत करने की पूरी विधि पूछ ली और श्रद्धा पूर्वक उस व्रत को करना शुऱू कर दी।
व्रत के प्रभाव से उसकी खाली कुटिया सामानों से भर गई और वह भी काफी सुंदर हो गई। शास्त्र के अनुसार षटतिला एकादशी के दिन तिल का दान करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है और दरिद्रता हमेशा के लिए दूर हो जाती हैं।
षटतिला एकादशी के दिन किसी पवित्र नदी में स्नान का विशेष महत्व है, लेकिन यदि संभव ना हो तो पानी में गंगाजल डालकर स्नान कर लें। इसके बाद तांबे के लोटे में जल में तिल डालकर सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और विधिवत भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना करें।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन किसी पात्र व्यक्ति या ब्राह्मण को दान करने से व्यक्ति को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है तथा दरिद्रता का नाश होता है और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। ध्यान रहे एकादशी व्रत का पारण अगले दिन होता है तथा व्रत का पारण योग्य समय पर ना करने से पूर्ण फल नहीं मिलता है।