धर्म

पढ़े, भगवान की आरती करने के नियम और महत्व

आरती के महत्व की चर्चा सर्वप्रथम “स्कन्द पुराण” में की गयी है। आरती हिन्दू धर्म की पूजा परंपरा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य है। किसी भी पूजा पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान के अंत में देवी-देवताओं की आरती की जाती है। 

आरती की प्रक्रिया में, एक थाल में ज्योति और कुछ विशेष वस्तुएं रखकर भगवान के समक्ष घुमाते हैं। थाल में अलग- अलग वस्तुओं को रखने का अलग- अलग महत्व होता है, पर सबसे ज्यादा महत्व होता है, आरती के साथ गाई जाने वाली स्तुति का। जितने भाव से आरती गाई जायेगी, उतना ही ज्यादा यह प्रभावशाली होगी।

क्या हैं आरती करने के नियम ?

  • बिना पूजा उपासना, मंत्र जाप, प्रार्थना या भजन के सिर्फ आरती नहीं की जा सकती.
  • हमेशा किसी पूजा या प्रार्थना की समाप्ति पर ही आरती करना श्रेष्ठ होता है.
  • आरती की थाल में कपूर या घी के दीपक, दोनों से ही ज्योति प्रज्ज्वलित की जा सकती है.
  • अगर दीपक से आरती करें तो यह पंचमुखी होना चाहिए.
  • इसके साथ पूजा के फूल और कुंकुम भी जरूर रक्खें.
  • आरती की थाल को इस प्रकार घुमाएं कि ॐ की आकृति बन सके.
  • आरती को भगवान् के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, मुख पर एक बार और सम्पूर्ण शरीर पर सात बार घुमाना चाहिए.
  • आरती के उपरान्त थाल में रक्खे हुए फूल देने चाहिए और कुंकुम का तिलक लगाना चाहिए.

किस प्रकार आरती से ऊर्जा ग्रहण करें ?

  • आरती से ऊर्जा लेते समय सर ढंका रखें.
  • दोनों हाथों को ज्योति के ऊपर घुमाकर नेत्रों पर और सर के मध्य भाग पर लगायें.
  • कम से कम पांच मिनट तक जल का स्पर्श न करें.
  • दक्षिणा दानपात्र में डालें, आरती की थाल में नहीं.

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Jyoti Kumari

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