सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि विधानसभा से एक साल के लिए निलंबन का किसी उद्देश्य से जुड़ा होना चाहिए.इसके लिए कोई ‘प्रबल’ कारण होना चाहिए जिससे सदस्य को अगले सत्र में भी शामिल होने की अनुमति न दी जाए.

महाराष्ट्र विधानसभा से 1 साल के लिए निलंबित 12 बीजेपी विधायकों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा. सभी पक्षों से 1 हफ्ते में अपनी दलीलों पर लिखित नोट जमा करवाने को कहा. पिछले साल 5 जुलाई को विधानसभा ने ध्वनिमत से प्रस्ताव पारित कर इन विधायकों को 1 साल के लिए निलंबित किया था. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि विधानसभा से एक साल के लिए निलंबन का किसी उद्देश्य से जुड़ा होना चाहिए.
इसके लिए कोई ‘प्रबल’ कारण होना चाहिए जिससे सदस्य को अगले सत्र में भी शामिल होने की अनुमति न दी जाए. शीर्ष अदालत पीठासीन अधिकारी के साथ कथित दुर्व्यवहार करने पर महाराष्ट्र विधानसभा से एक साल के लिए निलंबित किए गए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 12 विधायकों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. इसने कहा कि असली मुद्दा यह है कि निर्णय कितना तर्कसंगत है.
निलंबन निष्कासन से भी बदतर’
सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था कि एक साल के लिए विधानसभा से निलंबन निष्कासन से भी बदतर है क्योंकि इसके परिणाम बहुत भयानक हैं और इससे सदन में प्रतिनिधित्व का किसी निर्वाचन क्षेत्र का अधिकार प्रभावित होता है. मंगलवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सी टी रविकुमार की पीठ ने महाराष्ट्र की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता ए सुंदरम से कहा, ‘निर्णय का कोई उद्देश्य होना चाहिए.एक प्रबल कारण होना चाहिए जिससे कि उसे (सदस्य) अगले सत्र में भी भाग लेने की अनुमति न दी जाए. मूल मुद्दा तर्कसंगत निर्णय के सिद्धांत का है.
सुंदरम ने सीमित दायरे के मुद्दे पर दलील दी
सुंदरम ने राज्य विधानसभा के भीतर कामकाज पर न्यायिक समीक्षा के सीमित दायरे के मुद्दे पर दलील दी. उन्होंने कहा कि सदन में जो हो रहा है उसकी न्यायिक समीक्षा घोर अवैधता के मामले में ही होगी, अन्यथा इससे सत्ता के पृथककरण के मूल तत्व पर हमला होगा. सुंदरम ने कहा, ‘अगर मेरे पास दंड देने की शक्ति है, तो संविधान, कोई भी संसदीय कानून परिभाषित नहीं करता है कि सजा क्या हो सकती है. यह विधायिका की शक्ति है कि वह निष्कासन सहित इस तरह दंडित करे जो उसे उचित लगता हो. निलंबन या निष्कासन से निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधित्व से वंचित होना कोई आधार नहीं है.
पीठ ने कहा कि संवैधानिक तथा कानूनी मानकों के भीतर सीमाएं हैं. इसने कहा, ‘जब आप कहते हैं कि कार्रवाई तर्कसंगत होनी चाहिए, तो निलंबन का कुछ उद्देश्य होना चाहिए और और उद्देश्य सत्र के संबंध में होना चाहिए. इसे उस सत्र से आगे नहीं जाना चाहिए. इसके अलावा कुछ भी तर्कहीन होगा.’असली मुद्दा निर्णय के तर्कसंगत होने के बारे में है और यह किसी उद्देश्य के लिए होना चाहिए. पीठ ने कहा, ‘कोई प्रबल कारण होना चाहिए. एक वर्ष का आपका निर्णय तर्कहीन है क्योंकि निर्वाचन क्षेत्र छह महीने से अधिक समय तक प्रतिनिधित्व से वंचित हो रहा है.’