अभी तक विदेशी निवेश पाने वाली ई-कॉमर्स कंपनियां अपने ग्राहकों को भारी छूट देती हैं. इसका सीधा असर परंपरागत कारोबारियों पर पड़ता है.

देश के ई कॉमर्स कारोबार के लिए सरकार नई नीति बना रही है. इसका लक्ष्य ऑनलाइन रिटेल कंपनियों की जिम्मेदारी तय करना है. इसका क्या होगा फायदा, आइए आपको बताते हैं. देश में ई कॉमर्स कारोबार से जुड़ी कंपनियों की मनमानी पर अब जल्द अंकुश लगने वाला है. ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए सरकार ने राष्ट्रीय ई कॉमर्स नीति लाने की कवायद तेज कर दी है. नई नीति के तहत खुदरा कारोबारियों को अपने ग्राहकों को डिस्काउंट, कैशबैक और रिवॉर्ड देते समय उचित कारोबारी व्यवहार अपनाना होगा. विक्रेताओं के साथ ई कॉमर्स कंपनियां भेदभाव नहीं कर पाएंगी. दरअसल, नए नियमों के जरिए सरकार की मंशा देश के ई कॉमर्स क्षेत्र पर अपना नियंत्रण करना है. इस दिशा में कई बार कदम उठाए गए हैं. लेकिन सरकार और उद्योग के प्रतिनिधियों के बीच कई मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई. जाहिर है बात आगे नहीं बढ़ पाई.
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने तैयार किया ड्राफ्ट
अब उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने राष्ट्रीय ई कॉमर्स नीति का संशोधित ड्राफ्ट तैयार किया है. इसके जरिए सरकार ऑनलाइन रिटेल कंपनियों की जिम्मेदारी तय करना चाहती है ताकि ग्राहकों के साथ-साथ परंपरागत कारोबारियों के हित प्रभावित न हों उन्हें भी व्यापार के समान अवसर मिलें.
देश का ई कामर्स क्षेत्र तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है. वर्ष 2020 में इस सेक्टर का कारोबार 46.2 अरब डालर था. वर्ष 2025 में इसके बढ़कर 114.4 अरब डालर पर पहुंचने का अनुमान है. देश की ग्रामीण आबादी में जिस हिसाब से स्मार्टफोन की पहुंच बढ़ रही है उसे देखते हुए इस कारोबार का दायरा और भी व्यापक हो सकता है.
एक्सक्लूसिव प्रोडक्ट के नाम पर बाजार में नहीं आता सामान
अभी तक विदेशी निवेश पाने वाली ई-कॉमर्स कंपनियां अपने ग्राहकों को भारी छूट देती हैं. इसका सीधा असर परंपरागत कारोबारियों पर पड़ता है. कई बार एक्सक्लूसिव के नाम पर स्मार्टफोन जैसे प्रोडक्ट सिर्फ एक ही वेबसाइट पर मिलते हैं. इन उत्पादों को बाजार में नहीं उतारा जाता जो व्यापार की दृष्टि से उचित नहीं है.
इन खामियों को देखते हुए राष्ट्रीय ई कॉमर्स नीति में फ्लैश सेल, बंपर डिस्काउंट और कैशबैक पर कुछ हद तक अंकुश लग सकता है लेकिन ग्राहकों के हितों की सुरक्षा मजबूत हो जाएगी.