उत्तर प्रदेश राज्य

उन्नाव की इस सीट पर आजतक नहीं खुला भाजपा का खाता भगवा लहर भी नहीं आई काम !

राजधानी लखनऊ और रायबरेली की सीमा से सटे पुरवा विधानसभा क्षेत्र बीजेपी के लिए चुनौती बना है. अब तक 17 चुनाव हो चुके हैं लेकिन इस सीट पर भाजपा की जीत का खाता अबतक नहीं खुला सका है.

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर तमाम सियासी दलों की तैयारियां तेज हैं. प्रदेश की कुछ सीटें ऐसी हैं जिनका इतिहास दिलचस्प है. राजधानी लखनऊ और रायबरेली की सीमा से सटे उन्नाव जिले का पुरवा विधानसभा क्षेत्र भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनौती बना है. अब तक 17 चुनाव हो चुके हैं लेकिन इस सीट पर भाजपा की जीत का खाता अबतक नहीं खुला सका है. 2017 में जब जिले की पांच सीटों पर भगवा फहराया तो पुरवा ही एकमात्र सीट थी जिस पर बहुजन समाज पार्टी ने जीत दर्ज की थी. अब इस बार भी भाजपा के लिए ये सीट बड़ी चुनौती है.

कभी पुरवा विधानसभा सीट कांग्रेस व सपा के लिए सुरक्षित मानी जाती थी. यहां की जनता ने इन दोनों पार्टियों को बराबर-बराबर मौका दिया. दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों को पांच-पांच बार जिताकर विधानसभा भेजा. कांग्रेस और सपा ने 25-25 साल तक इस सीट पर अपना कब्जा बनाए रखा. बीच के कुछ चुनाव में निर्दलीय जनता दल ने कब्जा किया. लेकिन भाजपा एक जीत के लिए तरस गई है. पार्टी कई चुनाव में रनर अप रही लेकिन जीत का आकंड़ा नही नहीं छू पाई. 2017 में भाजपा की लहर में भी बसपा के टिकट पर चुनावी मैदान उतरे अनिल सिंह ने यहां पर जीत का परचम लहराया था लेकिन एमएलसी चुनाव में भाजपा को वोट देकर अपने को भाजपाई बताते हैं.

1993 के बाद पांच चुनाव में चली SP की साइकिल

1993 में सपा ने पुरवा विधानसभा सीट पर जीत का सिलसिला शुरू किया था. इसके बाद पार्टी ने लगातार पांच चुनावों में जीत की हैट्रिक लगाई. शायद इसी कारण पुरवा सीट सपा के लिए सबसे मजबूत सीटों में शुमार मानी जाती है. सपा मुखिया मुलायम सिंह विधानसभा चुनाव में अपनी पहली चुनावी रैली की शुरुआत यहीं से करते रहे हैं. यह बात अलग है कि पुरवा को कभी कैबिनेट में जगह नहीं मिल पाई.

1985 के बाद फीका पड़ा कांग्रेस को जादू

वर्तमान में विधानसभा अध्यक्ष और भगवंतनगर से भाजपा विधायक हृदय नारायण दीक्षित ने वर्ष 1985 में निर्दलीय जीत दर्ज की थी. इससे पहले वर्ष 1957 में परमेश्वरदोन वर्मा ने निर्दलीय चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी. पुरवा विधानसभा क्षेत्र के लडक सिंह खेड़ा ग्राम पंचायत ने इस विधानसभा को आठ बार विधायक भी दिया. इनमें हृदय नारायण दीक्षित और उदयराज यादव चार बार विधायक चुने गए. 25 साल तक राज करने वाली कांग्रेस को विकास व जनता की अनदेखी भारी पड़ी. जनता ने कांग्रेस को सिरे से नकार दिया. हालत यह हुई कि 1985 से कांग्रेस जीतना तो दूर मुख्य मुकाबले में भी कभी नहीं आई.

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Pooja Pandey

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