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अयोध्या सदर और गोरखपुर सदर के बीच का जातियों का चुनावी अंकगणित

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस सीट से चुनाव लड़ रहे हैं वह गोरखपुर सदर सीट 1989 से अब तक हुए हर चुनाव में गोरखनाथ मठ के पास ही रही है. 1989 से 2017 तक हुए 8 विधानसभा चुनावों में से सात बार यह सीट बीजेपी और एक बार हिन्दू महासभा के पास रही है.

पिछले हफ्ते बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने अपनी पहली सूची जारी करने के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अयोध्या या मथुरा से चुनाव लड़ने की अटकलों को विराम दे दिया. गोरखपुर सदर सीटसे योगी आदित्यनाथ को टिकट देकर बीजेपी नेतृत्व ने स्वामी प्रसाद मौर्या और हरिशंकर तिवारी के परिवार के समाजवादी पार्टी में जाने से उपजे इलाकाई हड़कंप को रोकने एवं गोरखपुर-बस्ती मंडल की 41 सीटों को वापस अपने खेमे में लाने के क्रम में यह कदम उठाया है.

फिलहाल गोरखपुर मंडल के चार जनपदों क्रमशः गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज की 28 सीटों में से 24 पर बीजेपी का कब्ज़ा है. इसी तरह बस्ती मंडल के तीन जनपदों क्रमशः बस्ती, संत कबीर नगर और सिद्धार्थनगर की सभी 13 सीटें बीजेपी के पास हैं. ऐसे में हरिशंकर तिवारी, स्वामी प्रसाद मौर्या एवं ओम प्रकाश राजभर के सपा खेमे में जाने के बाद शीर्ष नेतृत्व के पास इन दोनों मंडलों को बचाने के लिये योगी आदित्यनाथ के सिवा कोई अन्य विकल्प नहीं था.

गोरखपुर सदर सीट का इतिहास

वर्ष 1951 में आज़ादी के बाद हुए पहले चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इस्तीफा हुसैन यहां से पहले विधायक बने और उसके बाद उन्हें 1957 के चुनाव में भी जीत मिली. 1962 में इस सीट से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नियमतुल्लाह अंसारी निर्वाचित हुए. 1967 में भारतीय जनसंघ के यू प्रताप ने कांग्रेस से इस सीट को छीन लिया , लेकिन 1969 में कांग्रेस के रामलाल भाई ने इस सीट से जीत दर्ज की। 1974 में भारतीय जनसंघ के अवधेश कुमार यहां से विजयी हुए, 1977 में जनता पार्टी के अवधेश श्रीवास्तव को इस सीट से जीत मिली लेकिन बाद में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र सुनील शास्त्री ने 1980 और 1985 में इस सीट को कांग्रेस के कब्जे में रखा.

गोरखपुर सदर अर्थात अब मठ की सीट

दूसरी तरफ गोरखपुर सदर की सीट 1989 से अब तक हुए हर चुनाव में गोरखनाथ मठ के पास ही रही है. 1989 से 2017 तक हुए 8 विधानसभा चुनावों में से सात बार यह सीट बीजेपी और एक बार हिन्दू महासभा के पास रही है. 1989 से 1996 तक लगातार चार बार जीतने वाले शिव प्रताप शुक्ल उसके बाद 2002 में हिन्दू महासभा से जीतकर 2007 से लेकर 2017 तक बीजेपी से लगातार जीतने वाले डॉ राधामोहन दास अग्रवाल को देखने से स्पष्ट है कि 1989 से गोरखनाथ मठ का राजनीतिक दखल इस सीट पर बना हुआ है.

क्या है अयोध्या सदर का गणित

अनुमानित आकंड़ों के अनुसार अयोध्या सदर सीट में ब्राह्मण वोटों की संख्या लगभग 70 हजार है इसके अलावा 32 हजार यादव वोटर भी हैं. 50 हजार हरिजन वोटरों के अलावा राजपूत, बनिया, मौर्या कुर्मी वोटर भी 20-25 की संख्या के बीच हैं, निषाद एवं अन्य जातियों की भी अच्छी खासी संख्या है. सपा के पवन पांडेय ने इस सीट के जातीय समीकरण का लाभ उठा कर 2012 में यह सीट जीत ली थी. ऐसे में अयोध्या सदर की सीट को आज के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में योगी आदित्यनाथ की जीत के लिहाज से बहुत मजबूत किला नहीं माना जा सकता था.

गोरखपुर सदर का जातिगत समीकरण

4 लाख से अधिक मतदाताओं वाली गोरखपुर सदर सीट में निषाद/केवट/ मल्लाह मतदाता 40 हजार से अधिक हैं. 30 हजार दलित वोटर भी हैं जिनमें पासवान समाज की संख्या सर्वाधिक है, वैश्य वोटरों में बनिया के अलावा जायसवाल 20-25 हजार हैं, ब्राह्मण 30 हजार से अधिक हैं साथ ही इतनी ही संख्या में राजपूत वोटर भी हैं, 20 – 25 हजार मुस्लिम वोटर भी हैं. लेकिन सबसे अधिक संख्या में यहां कायस्थों के वोट हैं जो बीजेपी को हर हाल में जाते हैं. बंगाली समुदाय के वोट भी हैं शहर सीट पर निर्णायक होते हैं. माना जाता है कि मल्लाह, ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ एवं बनिया समेत आधे से अधिक संख्या में दलितों का वोट मठ की आज्ञा के अनुसार ही वोट करेगा और इस बात पर फिलहाल कोई संशय नहीं है.

बीजेपी के अंदरखाने में भी नेतृत्व इस बात से आश्वस्त है कि इस सीट पर योगी आदित्यनाथ को कोई चिंता नहीं है और वे अपना ध्यान दोनों मंडलों की शेष सीटों पर लगा सकते हैं. योगी आदित्यनाथ अपने दम पर बिना बीजेपी से समर्थन लिये 2002 में राधा मोहन दास अग्रवाल को जीत दिलवाकर यह स्पष्ट कर चुके हैं कि इस सीट के चुनाव का नतीजा मठ के हाथ में है. लेकिन गोरखपुर एवं बस्ती मंडलों की शेष सीटों में समीकरण तेजी से बन बिगड़ रहे हैं , बीजेपी को बसपा के प्रत्याशियों के घोषित होने का इंतजार है और माना जा रहा है कि बीजेपी इस इलाके की अन्य सीटों के टिकट आखिरी समय में ही घोषित करेगी. पूर्वांचल के इस हिस्से से शेष पूर्वांचल की सीटों पर भी असर पड़ना तय है ऐसे में आने वाले हफ़्तों में निर्णायक दृष्टिकोण से भारी फेरबदल की उम्मीद भी की जा रही है.

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Pooja Pandey

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