त्रिेवेंद्र सिंंह रावत को 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने वेस्टा यूपी का सह प्रभारी बनाया था. वहीं इसके बाद उन्हेंम झारखंड विधानसभा चुनाव में प्रभारी बनाया गया था. दोनों ही चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन बेहतर रहा.

उत्तराखंड की राजनीति में त्रििवेंद्र सिंंह रावत का नाम प्रमुखता से लिया जाता है. उत्त.राखंड के पूर्व मुख्यीमंत्री रहे त्रिेवेंद्र सिंंह रावत का राजनीतिक सफर बड़ा उतार-चढ़ाव भरा रहा है. जिसमें उनके नाम कई उपलब्िसे यों के साथ ही विवाद भी दर्ज हैं. राष्ट्री य स्वऔयं सेवक संघ (आरएसएस) से अपनी सामाजिक व राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले त्रिबवेंद्र सिंह रावत 19 साल की उम्र में ही आरएसएस के साथ जुड़ गए थे. यहां से उन्होंीने एक प्रचारक से मुख्य मंत्री तक का सफर तय किया, लेकिन वह अपना मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा करने में असफल रहें.
त्रिवेंद्र सिंह रावत का जन्म 20 दिसंबर 1960 को पौड़ी जिले की खैरासैंड़ गांव में हुआ था. त्रिवेंद्र रावत 1979 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े और 1985 में वह देहरादून महानगर के प्रचारक बने. इसके बाद 1993 में त्रिवेन्द्र रावत बीजेपी के क्षेत्रीय संगठन मंत्री बनाए गए. 1997 में वह बीजेपी के प्रदेश संगठन महामंत्री बने. वहीं 2002 में फिर वह भाजपा प्रदेश संगठन महामंत्री बने.
2002 में पहली बार डोईवाला से बने विधायक
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी सक्रिय राजनीति की शुरुआत 2002 से की. उत्तराखंड बनने के बाद जब 2002 में उत्तराखंड का पहला विधानभा चुनाव आयोजित किया गया तो त्रिवेंद्र सिंंह भी सक्रिय राजनीति में आ गए. जिसके तहत उन्हें 2002 में बीजेपी की तरफ से डोईवाला विधानसभा से टिकट मिला. इस चुनाव में त्रिवेंद्र सिंंह रावत विजय हुए. वहीं 2007 में भी त्रिवेंद्र सिंंह रावत ने इस विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और विजय हुए. इस दौरान बीजेपी की सरकार बनने के बाद उन्हें उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया. वहीं 2012 के चुनाव में वह रायपुर से उम्मीदवार बनाए गए, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा.
2014 में बीजेपी की यूपी फतेह और झारखंड की जीत में त्रिवेंद्र सिंंह रावत ने अहम भूमिका निभाई
2014 में केंद्रीय सत्ता में वापसी के लिए जब बीजेपी ने यूपी जीतने का प्लान बनाया, तो उसमें त्रिवेंद्र सिंंह रावत की भूमिका अहम रही. इससे पहले ही त्रिवेंद्र सिंह रावत को बीजेपी राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय कर चुकी थी, लेकिन 2014 से पहले जब अमित शाह को यूपी चुनाव की जिम्मेदारी मिली तो उन्होंने अपनी टीम में त्रिवेंद्र सिंह को शामिल किया और उन्हे पश्चिमी उत्तर प्रदेश का सहप्रभारी बनाया. इसका फायदा बीजेपी को मिला और बीजेपी ने इस क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन किया और बीजेपी ने केंद्र में सरकार बनाई. वहीं इसके बाद हुए झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए त्रिवेंद्र सिंह रावत को प्रभारी बनाया गया. यहां भी बीजेपी की सरकार में वापसी हुई.
2017 में मुख्यमंत्री बने त्रिवेंद्र, चार साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले छोड़ना पड़ा पद
यूपी में बीजेपी का बेहतर प्रदर्शन और झारखंड में सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाने का फायदा त्रिवेंद्र सिंह रावत को 2017 में मिला. इस चुनाव में त्रिवेंद्र सिंह रावत एक बार फिर डोईवाला से चुनाव लड़े और विजय रहे. वहीं मुख्यमंत्री के लिए हुई विधायक दल की बैठक में उन्हें मुख्यमंत्री चुना गया. इसके साथ ही त्रिवेंद्र सिंह का बतौर मुख्यमंत्री सफर शुरू हुआ. इस दौरान कई विवादों को लेकर वह सुर्खियों में बने रहे, लेकिन उनका पद अजेय बना रहा, लेकिन 2020 में उनकी एक घोषणा के बाद उनका पद संकट में आ गया. उन्होंने उत्तराखंड को तीन मंडलों में बांटने का फैसला लिया. इसके बाद बीजेपी में उनके खिलाफ पनप रहे असंतोष को एक चेहरा मिल गया. जिसके तहत त्रिवेंद्र सिंंह रावत को अपने कार्यकाल के चार साल पूरे होने से 9 दिन पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.
विवादों से भी रहा है नाता
मुख्यमंत्री बनने के बाद त्रिवेंद्र सिंंह रावत का विवादोंं से भी नाता रहा. शिक्षिका उत्तरा पंत बहुगुणा से हुए विवाद ने जमकर सुर्खिया बटोरी थी. वहीं जुलाई 2019 में त्रिवेंद्र रावत के एक बयान के लेकर विवाद हुआ था. अपने बयान में उन्होंने कहा था कि गाय एकमात्र जानवर है जो ऑक्सीजन को बाहर निकालती है. गाय की ऑक्सीजन बाहर निकालने की प्रक्रिया तपेदिक जैसी बीमारी को ठीक कर सकती है. इस अवैज्ञानिक बयान की बड़ी आलोचना हुई थी.