काम की बात कृषि

कैला लिली की खेती में लागत से दोगुनी होती है कमाई, मांग बढ़ने से किसानों के बीच लोकप्रिय हो रहा यह फूल

कैला लिली बेहद खूबसूरत और खुशबूदार गमलों में उगाया जाने वाला फूल है. अभी इस फूल की खेती काफी कम मात्रा में हो रही है. लेकिन जिस तरह से इसकी मांग बढ़ रही है, उसे देख कर लगता है कि जल्द ही दूसरे राज्य के किसान भी कैला लिली की खेती करने लगेंगे.

हमारे देश में करीब 15 हजार तरह के फूल पाए जाते हैं. पिछले कुछ वर्षों में कई अन्य फूलों और उनकी किस्मों ने दस्तक दी है. सबसे खास बात है कि बाजार में इन फूलों की अच्छी खासी कीमत भी मिल जाती है. ऐसे में आधुनिक कृषि में विश्वास रखने वाले किसान इन फूलों को हाथों-हाथ ले रहे हैं और इनकी खेती कर रहे हैं. ऐसा ही एक फूल है कैला लिली . कैला लिली बेहद खूबसूरत और खुशबूदार गमलों में उगाया जाने वाला फूल है. अभी इस फूल की खेती काफी कम मात्रा में हो रही है. आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में फिलहाल इसकी व्यावसायिक खेती हो रही है. लेकिन जिस तरह से इसकी मांग बढ़ रही है, उसे देख कर लगता है कि जल्द ही दूसरे राज्य के किसान भी कैला लिली की खेती करने लगेंगे.

कैला लिली को पॉली हाउस में 3 चरणों में उगाया जाता है. किसान पहले नर्सरी तैयार करते हैं. इसके बाद नर्सरी में तैयार पौध की रोपाई की जाती है. तीसरे चरण में रोपाई के 9 महीने बाद कंद प्राप्त होते हैं. इन कंदों को गमलों में लगाकर किसान फूल प्राप्त करते हैं.

कंदो के लिए 9 महीने तक करना पड़ता है इंतजार

कैला लिली के बीजों को अंकुरित होने में ज्यादा समय लगता है और इसकी अंकुरण दर भी कम है, इसलिए इसे टिशू कल्चर विधि से उगाना बेहतर माना जाता है. टिशू कल्चर से उगाने पर फूलों की जीवन अवधि लंबी होती है और एक ही तरह के फूल प्राप्त होते हैं.

कैला लिली को पॉली हाउस के अंदर आधुनिक ट्रे में लगाया जाता है. ट्रे में सबसे पहले कोकोपिट, भूसा, केंचुआ खाद और कोयले की राख से तैयार मिट्टी रखी जाती है. 10 किलो मिश्रण में 2.5 किलो कोको पिट, 2.5 किलो भूसा, 2.5 किलो केंचुआ खाद और 2.5 किलो कोयले की राख होती है.

पौधे को इस मिश्रण में 9 माह तक विकसित होने के लिए छोड़ दिया जाता है. ध्यान रहे कि इन पौधों का रोपण फूल के लिए नहीं बल्कि अच्छी गुणवत्ता वाले कंद के लिए किया जाता है. इस बीच सूखे और पीते पत्ते की छंटाई भी करतें है और टपक विधि से रोजाना सिंचाई की जाती है.

लागत से दोगुनी होती है कमाई

पौध को पानी के ठहराव से बचाना होता है वरना जड़ों में फफूंद लगने की आशंका रहती है. 9 माह बाद पौधों को जड़ सहित उखाड़ लिया जाता है. इन जड़ों में गोल कंद होते हैं. कंदों को ही किसान गमलों या खेतों में लगाते हैं और फूल प्राप्त करते हैं. इन कंदों को नर्सरी विक्रेता वातानुकूलित कक्ष में पांच दिन तक रखते हैं और फिर किसानों को बेचते हैं.

कंद की रोपाई के फौरन बाद सिंचाई की जाती है. कंद रोपाई के 12 दिनों बाद जब पौध हल्की-हल्की दिखाई देने लगे तो तापमान 25 से 30 डिग्री के बीच करने की सलाह दी जाती है. कैला लिली के पौधों पर कभी भी कीटों का हमला हो सकता है. ऐसे में किसानों को सलाह दी जाती है कि वे समय-समय पर दवा का छिड़काव करते रहें.

रोपाई के 45 दिन बाद कलियां निकलने लगती हैं. किसान इन्हीं को गमलों में भरकर बेचते हैं. एक गमले की कीमत करीब 300 रुपए होती है जबकि कुल लागत 125 रुपए के आसपास आती है.

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Pooja Pandey

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