हल्द्वानी: देवभूमि उत्तराखंड में ऐसे अनगिनत सिद्ध पीठ हैं जहां की महिमा अपरंपार है। यहां की अलौकिक शक्तियां बरबस की श्रद्धालुओं को अपनी ओर छिंचती हैं। कुमाऊं के प्रवेश द्वार हल्द्वानी के मुख्य चौराहे पर स्थित कालू सिद्ध बाबा का मंदिर भी उन्हीं सिद्ध पीठों में से एक है जहां सालभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
कालू सिद्ध बाबा के मंदिर में रोजाना सैकड़ों श्रद्धालु शीष नवाने आते हैं। मन में मुरादें लेकर आने वाला हर श्रद्धालु यहां गुड़ की भेली लेकर पहुंचता है। इसके अलावा मंदिर परिसर में भगवान विष्णु, शिव, मां दुर्गा और शनिदेव की मूर्तियां भी हैं। मुख्य चौराहे पर स्थित होने के कारण यहां सुबह से देर शाम तक श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।

कुछ लोग कालू सिद्ध बाबा को हिंदू तो कुछ मुस्लिम मानते हैं। किवदंतियों के अनुसार, कालू सैयद बाबा का जन्म तुर्की (तुर्किस्तान) के कफ्काज नामक स्थान में हुआ था। तुर्की में ही इन्होंने धार्मिक शिक्षा ग्रहण की। गंगा- जमुनी तहजीब, सामाजिक सद्भाव और समरसता के प्रतीक कालू सैयद बाबा के देवभूमि उत्तराखंड में कई जगह मंदिर और मजार मिल जाते हैं। हिंदू हो या मुस्लिम हर किसी की आस्था बाबा से जुड़ी है। अल्मोड़ा कैंट में कालू सैयद बाबा की सातवीं शताब्दी पुरानी मजार है। मजार के पास में ही बाबा के घोड़े की कब्र भी है।
बताया जाता है कि कालू सैयद बाबा को आकाशीय आदेश हुआ कि वह भारत जाकर हजरत निजामुद्दीन औलिया से रूहानी ज्ञान हासिल करें। जिसके बाद बाबा अफगानिस्तान के बीहड़ रास्ते को पैदल पार कर भारत पहुंचे। हजरत निजामुद्दीन औलिया के दर पर कव्वाली की महफिलें भी सजा करती थीं। एक दिन एक कव्वाल के कलाम से प्रभावित होकर उन्होंने उससे कुछ मांगने को कहा।
जिस पर कव्वाल ने कहा कि हुजूर का दिया सब कुछ है, बस मेरी उम्र एक दिन बढ़ा दी जाए। इस अनूठे सवाल से बाबा का शरीर तेज और प्रताप से भर गया। जिसके बाद हजरत औलिया ने बाबा को शांत किया और अपने चेलों को कालू सैयद बाबा को हिमालय की ठंडी गोद में ले जाने को कहा। जिसके बाद बाबा कई चेलों और एक सफेद घोड़े को लेकर उत्तराखंड की धरती पर पहुंचे।
बाबा का सफर जसपुर, काशीपुर, कालाढूंगी, हल्द्वानी और रानीखेत होते हुए अल्मोड़ा पहुंचा। इस दौरान उन्होंने कई चमत्कार किए, जिसे लोगों की आस्था उनसे जुड़ गई। हल्द्वानी के अलावा जसपुर, काशीपुर, कालाढूंगी, बसानी, भीमताल और लोहाघाट में कालू सैयद बाबा की मजार हैं।
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